मेघालय हाईकोर्ट ने अपने पूर्व न्यायाधीश जस्टिस सुदीप रंजन सेन द्वारा दिए विवादास्पद ‘हिंदू राष्ट्र’ संबंधी फैसले को शुक्रवार को बदल दिया है। जस्टिस सेन ने अपने फैसले में कहा था कि भारत को विभाजन के बाद ही हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाना चाहिए था लेकिन यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहा। उनके इस फैसले पर देशभर में काफी विवाद हुआ था।
मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद याकूब मीर और जस्टिस एचएस थंगकियू ने अपने फैसले में कहा कि जस्टिस सेन का फैसला कानूनी रूप से गलत है और सांविधानिक मूल्यों के अनुरूप नहीं है। दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि हम इस मामले पर विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 10 दिसंबर 2018 को दिया गया फैसला कानूनन गलत है। इसलिए इसमें जो भी राय दी गई है और निर्देश जारी किए गए, पूरी तरह से निरर्थक हैं। इन्हें पूरी तरह से हटाया जाता है।
अन्य देशों से आए लोगों को नागरिकता देने के संबंध में जस्टिस सेन के फैसले पर पीठ ने कहा कि ये तो मुद्दे ही नहीं थे और इसमें देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप और संविधान के प्रावधानों को ठेस पहुंचाने वाली बातें हैं। जस्टिस सेन के आदेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी एक अपील दायर की गई थी और सुप्रीम कोर्ट के सामने इस मामले में एक जनहित याचिका भी लंबित है। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका डिवीजन पीठ के सामने तुरंत आए मामले में फैसला सुनाने से कोई रोक नहीं लगती।
पिछले साल अपने फैसले में जस्टिस सेन ने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, कानून मंत्री और सांसदों को ऐसा कानून लाने के लिए कहा था जिसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में रहने आए हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के लोगों को नागरिकता दी जा सके। मूल निवास प्रमाण पत्र से जुड़े एक मामले पर जस्टिस सेन ने उक्त टिप्पणी की थी। अपने फैसले पर हुए विवाद के बाद उन्होंने अपनी सफाई में कहा था कि वह धार्मिक उन्मादी नहीं हैं और सभी धर्मों का आदर सम्मान करते हैं।