हुकूमत की जानिब से क़ानून हक़ तालीम के अहकाम के नाम पर ख़ान्गी तालीमी इदारों पर दबाव डालना कोई नई बात नहीं है बल्कि हुकूमत क़ानून हक़ तालीम पर मोअस्सर अमल आवरी को यक़ीनी बनाने के इक़दामात के नाम पर ख़ान्गी तालीमी इदारों को हिरासाँ करने का महकमा तालीम के ओहदेदारों को लाईसेंस दे चुकी है।
लेकिन ये क़ानून शायद सरकारी ओहदेदारों पर लागू नहीं होता चूँकि सरकारी ओहदेदार ही जब सरकारी स्कूलों की तबाही और बर्बादी के मूजिब बनने लग जाएं तो सरकारी स्कूल में तालीम हासिल करने वाले गरीब कहाँ जाएं और किस से शिकायत करें।
हैदराबाद में मेट्रो ट्रेन के नाम पर स्कूलों के इन्हिदाम के ज़रीए जो पैग़ाम दिया गया है इस से ऐसा महसूस होता है कि हैदराबाद मेट्रो रेल के ओहदेदारों के लिए ज़रीए मआश अहमियत का हामिल है लेकिन तालीम की कोई अहमियत नहीं है।
चूँकि सुल्तान बाज़ार जहां के कारोबारी अफ़राद अपने कारोबार के मुतास्सिर होने के ख़द्शात के सबब हैदराबाद मेट्रो रेल के नक़्शा में तरमीम का मुतालिबा करते हुए इस इलाक़ा में तामीरी सरगर्मियों के आग़ाज़ को रोके हुए हैं।
और तेलंगाना राष़्ट्रा समीति इस मसअले पर सुल्तान बाज़ार ताजिरीन के शाना बाशाना खड़ी है लेकिन चादर घाट में वाक़े सरकारी स्कूलों के मुआमले में शायद किसी को कोई दिलचस्पी नहीं है चूँकि इन स्कूलों में गरीब अवाम के बच्चे पढ़ते हैं जिन के पास ख़ान्गी स्कूलों की फीस की अदाएगी के लिए पैसे नहीं होते।
इसी लिए गुज़िश्ता बरसों से ही इस मुतास्सिर होने वाले इलाक़ा के ताजिरीन, मेट्रो रेल के ओहदेदारों से मुज़ाकरात कर रहे हैं और ख़ुद हैदराबाद मेट्रो रेल सुल्तान बाज़ार के मसअले को तात्तुल का शिकार क़रार देने से भी गुरेज़ नहीं करती लेकिन अकलीयती ग़ालिब तलबा वाले इन स्कूलों के औलियाए तलबा,
असातिज़ा या मुक़ामी अवामी नुमाइंदों से मुज़ाकरात का अमल तक शुरू नहीं किया गया बल्कि तलबा को भी उस वक़्त हैरत हुई जब वो अपने स्कूल के लिए हस्बे मामूल पहुंचे लेकिन उन के स्कूल की जगह उन्हें बुल्डोज़र, जे सी बी और काम करते हुए कुछ मज़दूर नज़र आए जो उन के स्कूल की इमारत को पूरी तरह से मुनहदिम कर चुके थे।