मेयर साहब! हमें कुत्तों से बचाओ … आवारा कुत्तों की दहश्त से ख़ौफ़ज़दा शहरीयों की फ़रियाद

आवारा कुत्तों की तादाद दिन बदिन बढ़ती ही जा रही है,रात दस बजे के बाद सड़कों पर आवारा कुत्तों के झुंड में इज़ाफ़ा हो जाता है ,ये झुंड बना कर इधर उधर घूमते रहते हैं सड़कों और गलीयों से गुज़रने वाले अफ़राद पर ये कब और किस पर हमला करदे कोई नहीं जानता।रात के वक़्त अपनी मुलाज़मत से फ़ारिग़ होकर घरों को लौटने वाले अफ़राद को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

चूँकि ये कुत्ते एक साथ अचानक सामने आ कर हमला करने की कोशिश करते हैं जिस से लोगों को ख़ुद को बचाना भी मुश्किल हो जाता है ।उनकी मुसलसल बढ़ती हुई तादाद के साथ साथ उन की दहश्त भी बढ़ती जाती है।एनीमल वेलफ़रस क़ानून के मुताबिक़,इन आवारा कुत्तों को उन के इलाक़े से दूरनहीं किया जा सकता,इसकी वजह ये बताई जाती है कि ये कुत्ते अपने अपने इलाक़ों की जुग़राफ़ियाई सूरत हाल से वाक़िफ़ होते हैं ,

इसलिए उन्हें अपनी ग़िज़ा तलाश करने में कोई परेशानी नहीं होती ,लेकिन अगर उसे उनके इलाक़े से दूर कर दिया गया तो वो ज़्यादा ख़तरनाक साबित हो सकते हैं। दूसरी तरफ़ मुआमला ये है कि इन कुत्तों को हलाक करने प्रभी पाबंदी ,जबकि फैमिली प्लानिंग यह नसबंदी के मंसूबे भी कामयाब नहीं हो सके हैं,जिसके नतीजे में कुत्तों की बढ़ती हुई तादाद इंसानों के लिए ख़तरनाक साबित होरही है।

सब से तकलीफ दह पहलु है कि ये लावारिस कुत्ते जब मासूम बच्चों और दीगर अफ़राद को काट लेते हैं तो नज़दीकी सरकारी दवा ख़ानों या अर्बन पब्लिक हेल्थ सैंटरस(यूपी एच सी) मेंnti-rabies टीका भी दस्तयाब नहीं है, जिसके नतीजे में लो गों को ,इंस्टीट्यूट आफ़ परिवेनटेव मेडीसिन(IMP) वाक़ै नारायण गौड़ा जाना पड़ता है यह फिर जो लोग किसी मजबूरी की वजहा से वहां नहीं जा सकते उन्हें बाज़ार से मजबूरन महंगी कीमत में एंटी रेबेज़ वैक्सिन लगानी पड़ती है,

आम तौर पर ए एनटी रेबज़ का एक टीका तीन सौ रुपये से ज़ाइद कीमत में दस्तयाब है, जबकि कुत्तों के हमले के बाद कम-अज़-कम उसे पाँच टीके लगाना लाज़िमी बताया जाता है । अवाम का ये दावे है कि इन के इलाक़े में डाग उसको एड कभी नज़र ही नहीं आते।

दूसरी बात ये है कि अगर डाग उसकोएड कभी कभार किसी इलाक़े में नज़र भी आता है तो दिन के औक़ात में ,जबकि आवारा कुत्तों की फ़ौज आम तौर पर रात के औक़ात में दहश्त मजाती है।वाज़ेह रहे कि मजलिस बलदिया की जानिब से लावारिस कुत्तों को पकड़कर रखने के लिए पूरे शहर में सिर्फ पाँच डाग पाऊंडस मौजूद हैं

जोकि अंबर पेट, आटोनगर , जेडी मेटला,पट्टन चीरो,और जुमेरात बाज़ार में वाक़ै है। लोहे के ग्रेलस से बनाए गए इस डाग पाऊंडस (कुत्तों को क़ैद कर के रखने की पिंजरा नुमा कमरा)में से बाअज़ में 6 ता 8 कुते और बाअज़ पिंजरे में 12 ता 15 कुत्तों को ही रखा जा सकता है।

मगर इन लावारिस कुत्तों को बुनियादी सहूलयात मसलन पानी और ज़रूरी ग़िज़ा की यहां मुनासिब सहूलत फ़राहम नहीं की गई है जो बज़ात-ए-ख़ुद एक मसला है।

ज़राए का ये भी कहना है कि लावारिस कुत्तों की बढ़ती हुई तादाद और डाग पाऊंडस की कमी की वजहा से भी डाग उसको एड लावारिस कुत्तों को पकड़ने से गुरेज़ करता रहता है।

मगर अवाम का कहना है कि मुताल्लिक़ा महिकमा यातो डाग पाऊंडस की तादाद में इज़ाफ़ा करे यह फिर बड़े पैमाने पर इस की नसबंदी और फ़ैमिली प्लानिंग पर अमल आवरी को यक़ीनी बनाए,ताकि अवाम को किसी तरह उन कुत्तों की दहश्त से नजात मिल सके।