भारतीय जनता पार्टी के सीनीयर लीडर नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा कि उनका सियासी सफर अभी खत्म नहीं हुआ है और साथ ही उन्होंने आरएसएस के साथ अपने रिश्ते पर फख्र ज़ाहिर किया |
आडवाणी ने संघ के साथ अपने ताल्लुकात को याद करते हुए अपने ब्लॉग में लिखा, जब मैं आठ दहा के अपनी ज़िंदगी में पीछे मुड़ कर देखता हूं तो मैं अपने आप को हैदराबाद (सिंध) के एक टेनिस कोर्ट में देखता हूँ मैंने तब पहली मरतबा आरएसएस का नाम सुना था और 1942 में मैं इसमें शामिल हो गया |
उन्होंने कहा, मुझे ज़िंदगी का मतलब तब मिला जब मैंने भगवद् गीता पर स्वामी रंगनाथनंदा का गुफ्तगू सुनना शुरू किया मुझे मकसद तब मिला जब मैंने संघ के कारकुन के तौर पर काम करने के लिए घर और खानदान को छोड़ा पहली मरतबा कराची में और दूसरी मरतबा तक्सीम के बाद |
आडवाणी ने आगे लिखा, यह मकसद तब और यकीन मे तब्दील हुआ जब मैंने 55 साल पहले अपने सियासी सफर की शुरूआत की. यह ऐसा सफर है जो अभी तक खत्म नहीं हुआ है अपने ब्लॉग पर आडवाणी ने संघ के साथ ताल्लुकात ने किस तरह मेरी जिंदगी को मकसद दिया टाइटल ( सुर्खी) से पुराने दिनों की यादों को लिखा है |
उन्होंने लिखा है कि जब 1942 में वह संघ के स्वयंसेवक बने, तब उस वक्त सूबे में ज़्यादा लोग उसके नाम से भी वाकिफ नहीं थे. मैंने अपनी सवानेह उम्री (Autobiography) मेरा देश, मेरा जीवन के तीसरे बाब (Chapter) के पहले मरहले में सिंध में बिताए गए मेरी जिंदगी के पहले 20 सालों का ज़िक्र है उसी हिस्से में मेरे संघ में शामिल होने का जिक्र भी किया गया है |
आडवाणी ने लिखा, बचपन में कोई एक ऐसा लम्हा होता है जिसके बारे में कहा जाता है कि जब दरवाजा खुले तो मुस्तकबिल को आने देना चाहिए. मेरे लिए मुस्तकबिल में कदम रखने का लम्हा तब आया जब मैंने संघ की रुक्नियत हासिल की | मैं तब सिर्फ 14 साल और चंद महीनों का था |
उन्होंने अपने ब्लॉग पर मशूर तजुर्बाकार सहामी खुशवंत से हाल में हुई मुलाकात का जिक्र भी किया है और इतनी उम्र में भी लिखने के मैदान में सरगर्म रहने के लिए उनकी तारीफ की |