मैंने अपने पति की रिहाई की उम्मीद कभी नहीं छोड़ी: आतंकवाद के आरोप में बंद 85 वर्षीय हबीब की पत्नी का दर्द

वह ना अब ठीक से देख पाता है और ना ही सुन पाता है. उसे दिल की भी गम्भीर बीमारी है.

यह कहानी है आतंकवाद के आरोपी हबीब अहमद खान की, जिसने जेल में 23 साल से ज्यादा वक्त गुजारे. अब उसकी उम्र 85 साल हो चुकी है. वह ना अब ठीक से देख पाता है और ना ही सुन पाता है. उसे दिल की भी गम्भीर बीमारी है. पिछले महीने जब सुप्रीम कोर्ट ने उसकी आजीवन कारावास की सजा खत्म कर दी तो मानो उसकी जिंदगी में नई रोशनी आई.

हबीब अहमद खान अभी जयपुर की जेल में बंद है. कुछ साल पहले आंख खराब हो गई और जेल प्रशासन ने उसका ऑपरेशन भी कराया, लेकिन आंखों की रोशनी पूरी नहीं लौट पाई. अब तो उसे जेल में घूमने के लिए भी एक सहयोगी की जरूरत होती है. प्रदेश १८  की रिपोर्ट के अनुसार यूपी के रायबरेली की रहनेवाले हबीब अहमद खान की पत्नी जहां खान बताती हैं, ‘मैंने अपने पति की रिहाई की उम्मीद कभी नहीं छोड़ी.

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मुझे उम्मीद थी कि एक न एक दिन जरूर सरकार मेरी अर्जी पर दया दिखाएगी. वैसे भी अब तो हमारी उम्र ढल चुकी है और जल्द ही हमारी जिंदगी खत्म हो जाएगी. मैं बस यही चाहती थी कि उनकी मौत अपने घर पर हों.’ कुछ दिनों पहले जहां खान की घुटनों में चोट लग गई थी, इसलिए वो ठीक से चल नहीं पाती हैं. वो कहती हैं, ‘मैं पिछले पांच-छह सालों से अपने पति को देख भी नहीं पाई हूं. मुझे नहीं पता कि वो कैसे हैं. उनकी तबियत कैसी है.’

हबीब अहमद खान को 14 जनवरी 1994 में टाडा के तहत गिरफ्तार किया गया था. हबीब को ट्रेनों में पांच धमाके करने का दोषी पाया गया था. इन हादसों में दो लोगों की मौत हो गई थी और 8 लोग घायल हो गए थे. ये धमाके बाबरी मस्जिद ढहने के एक साल बाद हुए थे.

मामले में सीबीआई ने 16 लोगों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की थी, जिसमें एक हबीब अहमद खान भी था. हालांकि, हबीब अहमद खान ने कभी भी खुद को दोषी नहीं माना. उसका कहना था कि उसे प्रताड़ित कर जबरन कोरे कागज़ पर दस्तखत करवाए गए. इस मामले में उसे आजीवन कारावास की सजा मिली. बाद में मानवीयता के आधार पर अदालत ने उसकी सजा खत्म कर दी.

साभार : upuklive