मैंने औसत तबक़ा का मुज़हका (मज़ाक) नहीं उड़ाया और ना सरज़निश (डांट फटकार) की

मर्कज़ी वज़ीर दाख़िला पी चिदम़्बरम ने आज मनमाने बयान मसख़ करने पर सदमा पहुंचने और ब्रहम हो जाने का इज़हार किया और कहा कि ज़राए इबलाग़ ने औसत तबक़ा के कीमतों में इज़ाफ़ा के बारे में रवैय्या के सिलसिला में उन के दीए हुए बयान को मसख़ कर के पेश किया है।

उन्होंने कहा कि उन्होंने ना तो औसत तबक़ा का मुज़हका उड़ाया था और ना उस की सरज़निश की थी। वज़ारत-ए-दाख़िला (गृह मंत्री) से आगे बयान जारी किया गया जिस में कहा गया है कि चिदम़्बरम को मुताल्लिक़ा सवाल और इस के जवाब को दानिस्ता तौर पर मसख़ कर के ज़राए इबलाग़ की जानिब से पेश किए जाने पर सदमा पहुंचा है और वो इंतिहाई ब्रहमी महसूस कर रहे हैं।

10 जुलाई 2012 को बैंगलौर की एक प्रेस कान्फ्रेंस में मर्कज़ी वज़ारत-ए-दाख़िला ने एक हक़ीक़त पसंद बयान दिया था। उन्होंने किसी की भी सरज़निश की थी और ना मज़ाक़ उड़ाया था। अगर इस इंटरव्यू का मुशाहिदा ( निरीक्षण) किया जाय तो ये देखा जा सकता है कि मर्कज़ी वज़ीर दाख़िला ने हक़ीक़त पसंद अंदाज़ में इंटरव्यू दिया था जिस बयान का हवाला अख़बारी इत्तिलाआत में किया गया है वो कल उन की प्रेस कान्फ्रेंस का एक हिस्सा था जिस में उन्हें ये कहते हुए बयान किया गया है कि अवाम आइसक्रीम के एक कौन केलिए 20 रुपय अदा करने तैयार हैं लेकिन गेहूं और चावल की कीमतों में एक रुपया इज़ाफ़ा पर एहतिजाज करने लगते हैं।

चिदम़्बरम ने अपने बयान में लफ़्ज़ हम इस्तेमाल किया था। उन्होंने अलफ़ाज़ वो कीमत में इज़ाफ़ा पर इतना शोर-ओ-गुल क्यों करते हैं, इस्तेमाल नहीं किए थे। आज जारी करदा बयान में कहा गया कि उन्होंने ये कभी नहीं कहा था कि कीमत में इज़ाफ़ा के ख़िलाफ़ किसी शिकायत की ज़रूरत नहीं है जबकि अशिया की कीमतें गरीब काश्तकारों की मदद के लिए बढ़ाई जाती हैं।

बयान में कहा गया है कि चुनांचे ये ख़बर उन के ब्यानात को मुकम्मल तौर पर मसख़ कर के पेश कर रही है। मर्कज़ी वज़ीर दाख़िला ने आम आदमी पर बोझ के बारे में एक सवाल का जवाब दिया था और आबादी के मुख़्तलिफ़ एहसासात और मुख़्तलिफ़ तबक़ात के लिए फ़ायदाबख्श स्कीमों का हवाला दिया था।

उन्होंने आला तर अक़ल्ल तरीन इमदादी कीमत का हवाला दिया था जिस से काश्तकारों को फ़ायदा होता है, महात्मा गांधी क़ौमी देही रोज़गार तमानियत स्कीम का हवाला दिया था जिस से देही अवाम को फ़ायदा हो रहा है, दोपहर के खाने की स्कीम का हवाला दिया था जिस से लाखों बच्चे इस्तिफ़ादा कर रहे हैं और उन्होंने पी एम जी इस वाई का हवाला दिया था जिससे हज़ारों देहातों को फ़ायदा पहुंचा है।

मर्कज़ी वज़ीर दाख़िला ने ख़ाम तेल की कीमत का हवाला दिया था कि हुकूमत ने इस तरह पेट्रोल की कीमत में पहला इज़ाफ़ा मजबूरन किया था और इस के बाद इस ने दो बार इस में कमी कर दी ताकि औसत तबक़ा को फ़ायदा पहुंचाया जा सके। जवाब का हक़ीक़ी मतन दुहराते हुए बयान में कहा गया है कि इस के बाद चिदम़्बरम ने कहा था कि आप अनाज की ज़्यादा कीमत का तज़किरा करते हैं।

बेशक ग़िज़ाई इफ़रात‍ ए‍ ज़र बहुत ज़्यादा है लेकिन कीमत खरीद इस बात की अक्कासी करती है कि ग़िज़ाई अजनास की कीमतों में मामूली सा इज़ाफ़ा हुआ है लेकिन खरीदारी की कीमतों में इस इज़ाफ़ा से लाखों काश्तकारों को फ़ायदा पहुंचा है। वज़ारत-ए-दाख़िला के बयान में कहा गया कि अगर आप नीशकर की कीमत में इज़ाफ़ा करते हैं तो शुक्र पहले से ज़्यादा सस्ती नहीं हो सकती।

अगर गेहूं यह धान ज़्यादा कीमत में खरीदा जाता है तो सारिफ़ीन ( ग्राहक) के लिए चावल यह गेहूं की कीमत में कमी नहीं हो सकती। बाअज़ औक़ात जैसा कि चिदम़्बरम एक बार पहले तहरीर कर चुके हैं, हम एक बोतल पानी के लिए 15 रुपय अदा करने के लिए तैयार हैं लेकिन हम एक किलो गेहूं यह एक किलो चावल की कीमत में एक रुपया का इज़ाफ़ा बर्दाश्त नहीं करना चाहते।