मैं अपने माँ-बाप को याद करती हूं, मैं अपने भाइयों को बड़ा होते देखना चाहती हूँ – इनशा मुश्ताक

14 साल की उम्र में, इंशा मुश्ताक अपनी खिड़की से विरोध प्रदर्शन देख रही थी, जब भारतीय पुलिस ने छर्रे उसकी आंखों में डाल दिए थे।

इनशा मुश्ताक को एक साल से भी ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन उसको अब भी रात में नींद नही आती है।

इंशा 11 जुलाई 2016 की शाम को नहीं भूल सकती, जब 14 वर्ष की उम्र में, उसने दक्षिणी कश्मीर में सेदो के गांव में एक लोकप्रिय विद्रोही कमांडर, बुरहान वानी की हत्या के विरोध प्रदर्शन को देखने के लिए खिड़की खोली।

अगले ही पल में, पुलिस ने लोहे की छर्रों से उसकी तरफ अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, जिससे उसके चेहरे, खोपड़ी और उसकी आंखों में गहरी चोट लग गयी। छर्रे उसकी आँखों में बहुत अन्दर चले गये। वह अचानक अंधी हो गयी।

उसने अल जज़ीरा को बताया, “मैं खिड़की के पास खड़ीं थी और पुलिसवाले, जो बाहर थे, उन्होंने मुझे निशाना बनाया। मैं नीचे गिर गयी और मुझे नहीं पता कि उसके बाद क्या हुआ।

परिवार के सदस्यों में, ख़ासकर उनकी मां आफ्रोज़ा बानो, उनकी चोट की वजह से टूट गई हैं।

42 वर्षीय उसकी माँ कहती हैं, “मुझे याद है जब मेरी बच्ची को लगी थी, खिड़की के शीशे टूट गये थे और वह फर्श पर गिर गई थी। जब मैंने इंशा को देखा, तो जो मुझे दिखा वह सिर्फ उसका चेहरा था जो खून से ढाका हुआ था।”

बनो कहतीं हैं, “ऐसा लगता था जैसे हमारे ऊपर भूकंप आ गया हो। हर कोई एक पल के लिए जैसे जम से गये थे, समझ नहीं आ रहा था की यह सब हुआ क्या है, मैंने अपने सिर से अपना स्काफ़ निकाला और अपनी बेटी के चेहरे से खून मिटा दिया. मैं मदद के लिए भी चिल्लाई। उस वक़्त बिजली भी चली गयी और सब जगह अँधेरा सा छा गया।”

उनको लगा शायद उनकी बेटी को गोली लगी है, फिर उनका परिवार उसे शोपियांन के जिला अस्पताल ले गए जहां डॉक्टरों ने उन्हें श्रीनगर में कश्मीर के तृतीयक देखभाल अस्पताल में भेज दिया।

शहरी इलाके से लगभग 65 किलोमीटर की यात्रा के दौरान, लड़की का खून बहुत बह चुका था।

कई गोलियाँ लगने के कारण, बानो कहती हैं, डॉक्टर उसके बहते खून को रोक नहीं सकते थे।

बानो कहती हैं, “हमें श्रीनगर अस्पताल पहुंचने में दो घंटे लग गए, जहां हमने पहली बार छर्रों के बारे में सुना था। सैकड़ों मरीज़ पहले ही थे, इसी तरह की चोटों के साथ जूझ रहे थे।”

इनसा मुश्ताक, जो अब 16 साल की हैं, सैकड़ों लड़कियों में से एक हैं, जिनको इस तरह से गोली मार अपाहिज बना दिया है।

उसके चेहरे पर सौ से ज़्यादा गोली के घाव दिख सकते हैं; कुछ उसकी आंखों में घुसे हैं, तो कुछ उसके मस्तिष्क के करीब जा चुके हैं।

उसकी नाक और मेकिलरी हड्डियां भी टूट गई थीं।

श्रीनगर के महाराजा हरि सिंह अस्पताल (एसएमएचएस) की सर्जिकल इंटेंसिव केयर यूनिट में उसका इलाज करने वाले डॉक्टरों ने उसकी आँखें वापस लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रहे। डॉक्टरों ने बताया की उन्होंने अब तक के रिकॉर्ड में यह मामला सबसे बुरा है, वे उसके दिमाग को बचाने की ज्यादा कशिश कर रहे थे। वह अब ज़िन्दगी भर के लिए अंधी हो गयी है।

विभिन्न अस्पतालों में चार महीने खर्च करने के बाद इनशा अपने घर लौट आई है।

वह पूरी तरह से खाना खाने, नमाज़ पढने या टॉयलेट जाने के लिए अपनी माँ पर निर्भर है। उसके भाई बहन कभी-कभी स्कूल जाने या दोस्तों से मिलने जाने में उसकी मदद करते हैं।

इंशा कहती हैं, “मैं एक दिन डॉक्टर बनने का सपना देखती हूँ। अब, मैं अपने दम पर स्कूल नहीं जा सकती।”

“मैं अपने माँ-बाप को याद करती हूं। उन्हें देखकर मुझे उनकी याद आती है…मैं अपने दो छोटे भाइयों को बड़ा होते देखना चाहती हूँ।”

“मैं कभी-कभी अपने चेहरे को देखना चाहती हूं; मुझे पता है कि छर्रों के कारण मेरा चेहरा ख़राब हो गया है…मैं सिर्फ अंधी नहीं हूँ बल्कि मेरी आंखें ब्लॉक हो गयीं हैं।”