मैं मोदी को क्यूँ नहीं पसंद करता…

मुझे याद है दोपहर का वक़्त था समाचार में देखा कि गुजरात में कहीं किसी ट्रेन में आग लग गयी है. कुछ देर बाद और ख़बर आई कि गोधरा नाम के किसी शहर में साधुओं से भरी ट्रेन में आग लगा दी गयी. मैं बचपन से ही धार्मिक रहा हूँ इसलिए मुझे दुःख और ज़्यादा हुआ और दिल से एक आवाज़ आई और जो लोग मरे थे उनके लिए दुआ मांगी. कुछ देर बाद ये हुआ कि गुजरात के मुख्यमंत्री ने लोगों को मुआवज़ा देने का एलान किया. ये एक तसल्ली की बात थी.

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शाम के बाद से ये ख़बर आने लगी कि कहीं गोधरा की वारदात को लेकर दो गुटों में झड़प हुई है, किसी ने किसी को चाक़ू मार दिया. फिर ये ख़बरें बढ़ गयीं और एक ख़तरनाक माहौल तय्यार हो गया. सुबह शाम हम टीवी से लगे रहते थे, ये पता करने के लिए कि कब ये ख़त्म होगा. शाम को टीवी पे बहसें आती थीं,हम देखते थे…मैं उन बातों को नहीं दोहराना चाहता, ये ज़रूरी नहीं है लेकिन एहसान जाफ़री के क़त्ल ने शायद बची खुची सभी उमीदों पर मिटटी डाल दी थी. मुझे याद है मीडिया ने उस वक़्त अच्छा रोल निभाया, शायद मीडिया ने हज़ारों लोगों की जान बचा ली. ये वो दौर था जब मैं पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के नाम से वाकिफ हुआ. नरेन्द्र मोदी.. मैंने उस वक़्त अटल बिहारी बाजपाई को सुना था, वो भी ख़फ़ा थे मोदी से लेकिन वो मजबूर थे. शायद ये पहली बार था जब मैंने गुजरात को क़रीब से जानने की कोशिश की लेकिन तब मुझे गुजरात जाने के नाम से चिढ़ होने लगी.
बदायूं की गलियाँ छोड़ मैं 2003 में लखनऊ आ गया, यूनिवर्सिटी में दाख़िला हो गया. यहाँ पहली बार मेरी राजनितिक बहस में मुझसे पूछा गया “अटल बिहारी पसंद है तुम्हें या नहीं..” मैंने कहा “नहीं”.
इसके बाद मेरी दोस्ती कुछ लोगों से इतनी गहरी हो गयी कि हम घर आने जाने लगे, इसी दौरान मेरी कुछ लोगों से मुलाक़ात हुई जो गुजरात दंगों की वजह से नरेंद्र मोदी को अच्छा समझते थे. मुझे जानकार बहुत हैरानी हुई…उनका कहना था “अगर गोधरा हुआ तो गुजरात दंगे भी होने चाहिए थे”,मुझसे वो न्यूटन के नियम की बात करने लगते, मैं इस बात का जवाब बस यही देता कि “तुम्हारे कहने का मतलब ये है कि जो दाऊद ने किया बम्बई में वो सही है क्यूंकि उसने भी यही बहाना दिया है कि बम्बई में दंगे हुए तो ये ज़रूरी था”. वो इस बात पर चुप हो जाता लेकिन नरेंद्र मोदी को बुरा नहीं कहता.
खैर, ये वो लोग हैं जो 300 साल से भी ज़्यादा पहले की बातें आपको बार बार याद कराते हैं, ये आपको बताएँगे कि औरंगज़ेब ने अपने दौर में किस तरह से कितने लोग मरवाए लेकिन 2002 की बात पे तुरंत कहते हैं.. “उसे भूल क्यूँ नहीं जाते”. बात सिर्फ़ इतनी सी है कि सैंकड़ों सालों की बात कोई याद रखे और दस साल से कम की भूल जाए..ये कौन सी बात है. बहरहाल, मैं ना ही औरंगज़ेब की सच्चाई जानता हूँ और ना ही नरेन्द्र मोदी की लेकिन अगर किसी के कार्यकाल में इतना  बड़ा हत्याकांड हुआ है तो वो उसकी ज़िम्मेदारी है.

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ये वो वक़्त है जब मैं किसी अच्छे कॉलेज से MBA करना चाहता था लेकिन उस लिस्ट से मैंने पहले ही आईआईएम-अहमदाबाद का नाम हटा दिया था और उसका कारण सिर्फ़ गुजरात दंगे थे, देश का सबसे अच्छा बिज़नस स्कूल लेकिन मैं उसमें पढना नहीं चाहता था.
मुझे इस बात से बड़ी उलझन होती थी कि जो लोग अपने को देशभक्त कहते हैं वो भी धर्म के नाम पे हुई इस मारकाट का समर्थन करते हैं, ऐसे लोग आम चाय की दुकानों पर, ट्रेनों में, हर जगह मिल जाते थे जो खुले आम गुजरात दंगों में हुई मारकाट की तारीफ़ करते थे.
2014 के चुनावों से पहले जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी उनकी पार्टी ने दी तो इसके पीछे भी वही बात थी. मुझसे किसी ने कहा कि मोदी ने बड़ा काम किया है गुजरात में.. जब मैंने पुछा “क्या किया है?” तो उसके पास कोई ख़ास जवाब नहीं होता था फिर मैं उससे पूछता कि जो इंसान अपने छोटे से राज्य में दंगा नहीं रुकवा पाया उसको आप कैसे अच्छा मुख्यमंत्री मानते हैं?, इस बात पे वो तुरंत कहता “गोधरा में क्या हुआ?”, मैं उसके सामने ये तर्क देता कि “भाई वो भी तो उसी की ज़िम्मेदारी थी, क्यूंकि सरकार तो केंद्र में भी बीजेपी की ही थी…” वो फिर चुप हो जाता.
एक हिन्दू लड़की है, मैं उसे बहन मानता हूँ और वो मुझे भाई मानती है.. वो एक रोज़ मुझसे कहने लगी “आप बायस्ड हैं”, मैंने कहा “ऐसा क्यूँ लगता है तुम्हें..जबकि मैं तो कई पार्टियों के पक्ष की बात करता हूँ..” वो कहती है “हाँ, लेकिन बीजेपी के पक्ष की बात कभी नहीं करते… आप बाक़ी पार्टियों पे बायस्ड नहीं हो लेकिन बीजेपी के ख़िलाफ़ हो”.. मैंने उससे कहा कि “ये तुम ठीक कहती हो लेकिन इसका एक कारण है.. और ऐसा नहीं है मैं बीजेपी के पक्ष में नहीं जा सकता लेकिन उसके लिए बीजेपी को काम करना होगा, बीजेपी मुसलमानों के ख़िलाफ़ काम करती है…हाँ अगर बीजेपी मुसलमानों के लिए भी काम करेगी, मैं उसकी बात भी करूंगा… लेकिन बीजेपी को काम करने होंगे और ये काम उसे लगातार कम से कम दो साल करने होंगे…” मैंने उसे यक़ीन दिलाने की कोशिश की कि अगर ऐसा होगा तो मैं भी बदलूंगा.
दो साल होने को आ भी गए हैं नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार को लेकिन अफ़सोस के साथ मुझे ये कहना पड़ रहा है कि इस सरकार ने मुसलमानों को अपने क़रीब लाने का कोई काम नहीं किया. मुसलमानों ही के लिए क्यूँ मुझे तो नहीं पता कि इनके काम काज से कोई खुश है, हो सकता है कुछ एक लोग साध्वी प्रज्ञा और दूसरे आतंक के आरोपियों पे नरमी से खुश हो जाएँ लेकिन क्या ये किसी को रोटी दिला सकता है. मैं अभी भी इन्तिज़ार में हूँ कि ये सरकार मेरा मन बदले और मैं उनकी तारीफ़ लिखने लगूं, करने लगूं.

 

(अरग़वान रब्बही)