मैं फ़ौजी की हैसियत से याद किया जाना पसंद करूंगा :वे के सिंह

सरबराह फ़ौज जनरल वे के सिंह ने जो कल अपने ओहदा( पोस्ट)से सबकदोश (उतारना )होजाएंगे, दावा ( पव )किया है के इन का वज़ारत-ए-दिफ़ा (प्रधान मंत्री )के साथ कोई तनाज़ा(झगडा ) नहीं है। हालाँकि उन की इस ओहदा( पोस्ट) पर फ़ाइज़(कायम) रहने की मुद्दत तनाज़आत(झगडा) से भरपूर रही है।

उन्हों ने कहा के वो चाहते हैं कि उन्हें एक फ़ौजी की हैसियत से याद किया जाय। वो चाहते हैं कि उन्हें ऐसा फ़ौजी समझा जाय जिस ने फ़ौज के मक़सद( अर्जु ) को हमेशा सरबलंद(उपेर ) रखा है। क़ौमी दिफ़ाई एकेडेमी में एक प्रैस कान्फ़्रैंस से ख़िताब(कहते ) करते हुए उन्हों ने कहा के उन्हों ने फ़ौज में इन्क़िलाबी तबदीलीयों (बदलना) का एक निशाना मुक़र्रर किया है ताकि उसे ज़्यादा (बहुत्) मोस्सर, चौकस (हुश्यार )और मुस्तक़बिल(अन्य वाला कल ) के लिए बिलकुल दरुस्त बनाया जाय।

उन्हों ने कहाकि उन के ख़्याल में वो फ़ौज को इस राह पर डाल चुके हैं ये ऐसा कोई मक़सद (इरादा )नहीं है जो एक या दो साल में हासिल किया जा सके। इस के हुसूल के लिए 15 ता 20 साल की मुद्दत दरकार होगी। उन्हों ने कहा के उन्हें यक़ीन है के ये सिलसिला जारी रहेगा। उन्हों ने परज़ोर अंदाज़ में कहा के फ़ौज को ग़ैर सयासी , मुकम्मल तौर पर सैकूलर और ग़ैर जांबदार रहना चाहीए। उन्हों ने कहा के फ़ौज ने वही कुछ किया है जो इस का क़ौल था। उन्हों ने कहा के ये मुल़्क की फ़ौज है किसी की शख़्सी फ़ौज नहीं। हमें अपनी फ़ौज पर फ़ख़र होना चाहीए।

उन्हों ने हुकूमत के साथ ग़लत फ़हमियों की इत्तिलाआत को मुस्तर्द( तर्क ) करते हुए कहा के वज़ीर-ए-दिफ़ा ए के अनटोनी, मुसल्लह अफ़्वाज की वाज़िह तौर पर क़ियादत करते हैं और उन्हों ने फ़ौज की ताईद(तरफदारी ) में हरमुमकिन कोशिश की है। वज़ारत-ए-दिफ़ा के साथ उन के कोई इख़तिलाफ़ात( तनोऊ) नहीं हैं। फ़ौज हुकूमत का एक हिस्सा है, हम सब एक हैं और जो कुछ हिदायत दी जाती है के सुनते और इस पर अमल करते हैं।

जनरल वे के सिंह ने अपनी मीयाद( मुदत ) के आख़िरी दिनों में कई तनाज़आत ( झगडा )खड़े किए थे। इन की तारीख़ पैदाइश उन के तालीमी सर्टीफिकट के बमूजब जो उन्हों ने अपने तक़र्रुर के वक़्त दाख़िल किया था, उन के ब्यान के मुताबिक़ ग़लत थी। इन की हक़ीक़ी उमर सर्टीफिकट में दर्ज उमर से एक साल कम थी। ताहम हुकूमत और अदालत( कोर्ट )दोनों ने उन के दावे को मुस्तर्द (इंकार )कर दिया।

बादअज़ां (बादमे )उन्हों ने फ़ौज के लिए ट्रिक्स की ख़रीदारी के मुआहिदे को ये कहते हुए मुतनाज़ा बनादिया था कि इस मुआहिदे की मंज़ूरी के लिए उन्हें ख़तीर( ज्यादा ) रक़म( रुपया ) बतौर रिश्वत पेश की गई थी और कहा था कि ये पेशकश एक रिटायर्ड फ़ौजी ओहदेदार ने की थी ताहम वो इस इल्ज़ाम को भी साबित ( जहर )नहीं कर सके।