प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 1000, 500 के नोटों पर प्रतिबंध लगाने के एक हफ्ते बाद भारत की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गयी है। नोट प्रतिबन्ध की इस नीति को भारत के काले धन को बाहर निकालने के लिए बनाया गया था। जहां ये नीति पहले मोदी का मास्टरस्ट्रोक लग रही थी वही अब ये संगीन गलत अनुमान के रूप में दिख रही है।
नरेंद्र मोदी के हाल के भाषण कुछ विचित्र प्रतीत होते है, जिसमे एक जगह तो वो जो उनकी नोट प्रतिबन्ध की नीति से सहमत नहीं है उन पर हँसते है, दूसरी ओर वे देश के लिए अपने दिए गए बलिदानों की बात कर के रोने लगते हैं, और चेतावनी देते हैं कि लोग अपना काला धन बचाने के लिए मेरी हत्या भी कर सकते हैं। लेकिन यहाँ एक बात तो साफ़ है कि सरकार की इस नीति को लागु करने में लापरवाह रही। आज तक़रीबन 86 प्रतिशत भारत की मुद्रा मान्य नहीं है। केंद्र बैंक नए नोट छापने में पूरी तरह से संघर्षमय है और जो नए नॉट बनाये गए है वो एटीएम के हिसाब से आकार में छोटे हैं।
मोदी ने लोगो को 50 दिन संयम रखने को कहा है लेकिन इनकी नीति की स्तिथि और लापरवाही को देखते हुए लगता है कि 50 दिन से ज़्यादा समय लग सकता है। यहां पर एक बार फिर यह देखना होगा की क्या मोदी ने नीति को बनाने और लागु करने में विशेषज्ञों को सलाह ली है या फिर से छोटे और अपने विश्वसनीय नेताओं से बात कर के योजना को लागू कर दिया है। ऐसे महत्वपूर्ण फैसले देश की विविधता जटिलता और वयस्कता को देखते हुए लेने चाहिए। भारत की 80 प्रतिशत जनता अपने सभी काम कैश के द्वारा करती है। इस योजना के बाद से वेस्ट बंगाल के मछली कारोबार में भारी गिरावट आयी है।
वहीं उत्तर पश्चिमी इलाकों में पैसे न होने के कारण किसान अपनी फसल को बो नहीं पाए हैं। कुछ गाँव वालों के पास ही सिर्फ एटीएम की सुविधा है बाकी किसान अपने पैसे बदलने के लिए बैंकों की लंबी लंबी कतारों में लगे हुए है जिसकी वजह से उनकी मजदूरी का पूरा दिन खराब हो रहा है। बहुत से भारतीय खासकर महिलाओं के बैंकों में खाते ही नहीं है। वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि कितने गरीब लोगों के पास 1000 के नोट होंगे, कोई उनको समझाये की इसका जवाब देश की अर्थव्यवस्था बंद करने से पहले तलाशना चाहिए था।
मध्य वर्गों में मोदी के इस ब्लैक मनी सर्जिकल स्ट्राइक को काफी सराहना मिली है लेकिन ये सिर्फ एक भृम के समान है। बहुत से लोग ख़ुशी से इस पीड़ा का स्वागत कर रहे है इस भृम की ज़रूर ये महान हित के लिए है। कतार में खड़े रहने से आपकी नैतिकता दिखती है और इस तरह कतार में खड़े होकर आप सरहद पर खड़े जवानों को सम्मान दे रहे हैं। लेकिन भारत की ये योजना भविष्य के लिए प्रभावहीन है । अर्थशास्त्रियों के अनुसार इसका कोई प्रभाव आने वाली पीढ़ी के काले धन पर नहीं पड़ेगा। काले धन पर आशावादी लोग सोचते है कि काला धन रखने वाले लोग अपने धन को बर्बाद कर देंगे और इस तरह बैंक सरकार को भारी लाभ चूका पायेगा।
बाकि लोग कहते है कि बहुत कम लोग अपने काले धन को कैश द्वारा तब्दील कराएंगे। और लोगों के पास काले धन को साफ़ करने के बहुत से रास्ते हैं। मोदी के नोटबंदी की घोषणा से पहले ही कुछ अफवाहे फ़ैल चुकी थी जिसकी वजह से बहुत से लोग अपने धन को ठिकाने लगा चुके होंगे। नोट पर प्रतिबंध लगा कर मोदी ने ये साफ़ कर दिया की व्यापारियों के लिए अब काले समय का आरम्भ हो चूका है। हालाँकि गुप्त काल आ ही चूका है। मोदी प्रशासन ने राजनीती मुआवज़े को आर्थिक मुआवजे के ऊपर रख दिया है। यहां पर बड़ी बड़ी कतारों में खड़े लोगो के कारण सरकार की इज़्ज़त को हमेशा के लिए हानी हो जायेगी