मोदी सरकार के उर्दू प्रेम ने किया हद पार, महात्मा गांधी बने महरौली बदरपुर

शम्स तबरेज़, सियासत ब्यूरो लखनऊ।
नई दिल्ली: 2014 के लोक सभा चुनाव जीतने के बाद देश में एक सत्ता परिवर्तन आया देश को नए प्रधानमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी और नए शिक्षामंत्री के तौर पर स्मृति ईरानी मिली लेकिन जब स्मृति ईरानी की कथित फर्जी डिग्री के मामले में विवाद पकड़ा तो पूरे देश को जो नहीं पता था वो भी सार्वजनिक हो गया। आज स्मृति ईरानी को दूसरा मंत्रालय पकड़ा दिया गया, लेकिन रह रह कर उनकी यादे ताज़ा हो जाया करती है। शब्दों में मात्राएं और वाक्य बनाने में वो जितनी दक्ष हैं उससे भी ज्यादा उनके कर्मचारी और सलाहकार।

प्रधानमंत्री जब सबका सा​थ सबका विकास की बाते करते हैं तो देश का अल्पसंख्य जो सरकारी फाईलों में दलितों से भी नीचे ज़िन्दगी गुज़ारता है उसे प्रधानमंत्री की बाते कुछ समझ में भी नहीं आती होगी कि आखिर देश में इतनी सांप्रदायिकता होने के बाद भी किस प्रकार की समानता की बात की जा रही है। जो जुबान अल्पसंख्यकों की जागीर समझी जाती है वो है उर्दू भाषा जिसकी जन्मभूमि हिन्दुस्तान है लेकिन उसे उतना मान—सम्मान नहीं मिलता उतना अन्य सरकारी भाषा को सम्मान दिया जाता है।

जिन राज्यों में उर्दू भाषा को राज्य की दूसरी भाषा का दर्जा ले लिया है। उसका हाल तो ये है कि उनके यहां उर्दू के जानकार ही नहीं और जहां पूरा मंत्रालय है सोचिए उर्दू को कितनी इज्ज़त मिलती होगी अगर मामला देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की करें तो यहां उर्दू बोलने वालों की कमी नहीं है। लेकिन सरकारे चाहे कोई भी उर्दू भाषा से सौतेला व्यवहार करने में सरकार कोई कोर कसर नहीं छोड़ती। आपको लग रहा होगा कि हम सरकार के खिलाफ बात कर रहे हैं लेकिन जो बात दूर दूर तक गलत ही हो उसे हम किसी भी तरह से सहीं नहीं मान सकते। राजधानी दिल्ली में महात्मा गांधी मार्ग है, जिस पर एक साइन बोर्ड लगा है जिस पर तीन भाषाओं में सड़क का नाम लिख हुआ है। हिन्दी और अंग्रेजी में लिखे शब्दो में कोई अन्तर नहीं लेकिन जब तीसरी भाषा के तौर पर उर्दू की बारी आती है तो वो सबसे जुदा हो जाता है उस बोर्ड पर उर्दू में लिखा गया है कुछ और ही हकीकत बयान करता है उर्दू में लिखा गया है महरौली बदरपुर रोड। यानी हिन्दी में महात्मा गांधी मार्ग, अंग्रेज़ी में महात्मा गांधी रोड और उर्दू में महरौली बदरपुर रोड। जी सोशल मीडिया पर सरकार की शिक्षा नीति का आईना बनकर ये बोर्ड इस समय सोशल पर वायरल हो रहा है। देश की शिक्षा नीति कितनी महान हो चुुकी है इसका अंदाज़ा बस इसी बात से लगाया जा सकता है पूर्व मानव ​संसाधन विकास मंत्री के डिग्री को विपक्ष फर्ज़ी मानती है तो वही अब प्रधानमंत्री की डिग्री भी सवालो घेरे में उलझ कर रह गई है। ज़ाहिर सी बात है बोर्ड में छापने वाला को इससे कोई मतलब नहीं कि उस बोर्ड में क्या लिखा है बल्कि वे लोग ज़िम्मेदार हैं जिनको इस बार्ड का लिखित प्रारूप तैयार किया होगा। अब तो ये भी सवाल उठता है कि मजमून लिखने वाला ​सरकारी महकमा अखिर किस पेड़ पर अपनी अकल छोड़ आया था जो इस प्रकार इतनी बड़ी लापरवाही हो गई। उर्दू भाषा के साथ ये कैसा व्यवहार?