सामाजिक संगठन ‘अनहद’ ने मंगलवार को गृह मंत्रालय की तरफ से रद्द किए विदेशी अंशदान विनियमन (एफसीआरए) को लेकर प्रेस कांफ्रेंस किया। इस दौरान संस्था ने कहा कि यह खबर उसके लिए एक सम्मान सूचक तमगा है कि भारत सरकार ने उनका एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया।
संस्था ने कहा कि मोदी सरकार भारत की सबसे असहिष्णु सरकार है। संस्था ने आरोप लगाया कि ये सरकार किसी भी तरह के लिबरल और प्रगतिशील नागरिक विरोध प्रदर्शन का खुलेआम दमन कर रही है। इस प्रेस कांफ्रेंस में संस्था की संस्थापक शबनम हासमी, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद, योजना आयोग की पूर्व सदस्य सय्यैदा हमीद, वरिष्ठ पत्रकार जौन दयाल और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने भाग लिया।
अनहद ने मीडिया को बताया कि गृह मंत्रालय ने जून 2014 में संस्था के खिलाफ जांच शुरू की, उसके बाद मार्च 2016 में संस्था का एफसीआरए पंजीयन को दोबारा रिन्यू कर दिया गया था। उससे पहले नवंबर 2015 में गृह मंत्रालय ने एक और जांच गठित की, जिसके लिए चार बक्सा भर कर सामग्री मंत्रालय को भेजी गई थी। उसके बाद मार्च 2016 में अनहद के एफसीआरए पंजीयन का नवीनीकरण किया गया था। लेकिन नौ महीने के भीतर इसकी एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दी।
अनहद की संस्थापक शबनम हासमी ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उनकी संस्था मोदी सरकार के निरंकुश कार्रवाइयों से डर कर खामोश नहीं रहने वाली है और न ही राष्ट्रीय हित, राष्ट्रवाद और देशभक्ति के झूठे और भावनात्मक बातों के दबाव में आने वाली है। उन्होंने कहा कि हमारा विश्वास है कि कोई भी राष्ट्र उसके जनता से ही बनता है। चूंकि दमन और उत्पीड़न की शिकार समस्त जनता है, इसलिए हम राष्ट्रप्रेम का अर्थ सामाज के वंचित लोगों के साथ खड़ा होना समझते हैं।
हासमी ने कहा कि अनहद के एफसीआरए पंजीयन को रद्द किए जाने को हम अपने लिए एक सम्मानसूचक तमगा समझते हैं। क्योंकि यह इस इस बात की पुष्टि करता है कि हम अत्यधिक वंचित लोगों, न्याय, सत्य और संविधान के साथ खड़े हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या संस्था गृह मंत्रालय के इस कार्यवाई के खिलाफ कोर्ट जाएगी तो हासमी ने कहा कि हम कोर्ट नहीं जाने वाले, चाहे जो हो। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को जो कुछ हमारे खिलाफ करना है वो करें, पर हम अपने कार्यों को करते रहेंगे और सामाज के वंचितों के पक्ष में आवाज उठाते रहेंगे।
इससे पहले संवादाताओं क सम्बोधित करते हुए प्रोफेसर अपूर्वा नंद ने कहा कि अनहद किसी एक समूदाय के लिए काम करने वाली संस्था नहीं है। यही वजह है कि इस संस्था को समय-समय पर देश के बुद्धिजीवीयों ने साथ दिया है। उन्होंने कहा कि अनहद ने केवल गुजरात दंगों के पीड़ितों के लिए ही सिर्फ काम नहीं किया बल्कि भारत के अगल-अलग समूदायों को लेकर काम करने वाले संघठनों को लेकर एकजुटता कायम की। उन्होंने उसके आगे कहा कि गृह मंत्रालय का यह कहना कि यह संस्था राष्ट्रहित के विरूद्ध काम कर रहा है, ये ऐसे शब्द हैं, जो इन जैसे संस्थाओं के विरुद्ध हर तरह के दुष्प्रचारक का रास्ता खोल देते है। उन्होंने कहा कि मतभेद का अधिकार तो स्वस्थ्य जनतंत्र का एक स्तंभ होता है और इसको राष्ट्रविरोधी बताकर कार्रवाई राजनीतिक माहौल तैयार करना बेहद अलोकतांत्रिक है।
वहीं सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने कहा कि सरकार एक तरफ तो रक्षा क्षेत्र में सौ फीसद एफडीआई को सही ठहराती है, तो दूसरी तरफ खुद से मतभेद रखने वाले संस्थाओं के विदेशी फंड को रोक रही है। यह सरकार के दोहरी मानसिकता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि अगर पूंजी के लिए पूरी दुनिया एक है तो लिबरल एवं प्रगतिशील सिविल सोसाइटी के लिए यह दुनिया एक क्यों नहीं हो सकती है?
आखिर में सय्यैदा हमीद ने अपनी बातों को रखते हुए कहा कि जब प्लीनिंग कमिशन के सदस्य थें तो हमने ‘अनदह’ के साथ मिकर एक मजबूत पार्टनरशिप बनाई थी, खासतौर से उन संस्थाओं के साथ जिनके पिछले पंद्रह दिन में एफसीआरए पंजीकरण कैंसिल हुए है। उसके आगे उन्होंने कहा कि हमें लगता था कि योगना आयोग में रहते हुए हमने बहुत से संस्थाओं के साथ मिलकर लोगों तक पहुंचने की कोशिश की है। लेकिन आज हमारे पास वो साधन नहीं कि हम उस गहराई तक पहुंच सके, जहां तक अनहद, नौसर्जन, सबरंग, लायर्ज कलेक्टिव जैसी संस्थाएं पहुंची। गौरतलब है कि 15 दिसबंर को अनदह को विदेशों से चंदा लेने के लाइसेंस को रद्द कर दिया था। इसके ठीक एक दिन पहले सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड की गैर-सरकारी संस्था सबरंग पर भी सरकार ने कड़ी कार्यवाई की थी।