नई दिल्ली: कथनी औऱ करनी में भारी गैप को पाटने के लिए केंद्र सरकार लोगों के सामने फर्जीवाड़ा परोसने से भी नहीं हिचक रही. रिपोर्ट आ रही है कि भारत सरकार ने क्रेडिट एजेंसी मूडीज को लालच देकर उसे अपने पक्ष में रिपोर्ट देने की पेशकश की है. ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी सरकार ने इस तरह का अनैतिक और गैर पेशेवर रास्ता चुना है. बहरहाल मूडीज ने न केवल सरकार की बात मानने से इनकार कर दिया बल्कि उसने इसके लिए सरकार की आलोचना भी की. इस बीच विदेशी अख़बारों ने जनता के दर्द को महसूस करना शुरू कर दिया है. और अब वो भी मोदी के इस फैसले को तुगलकी बता रहे हैं.
नेशनल दस्तक के अनुसार, रेटिंग एजेंसी ने भारत के ऋण स्तर और बैंकों के नाजुक हालत का हवाला दिया था. रॉयटर्स ने कई दस्ताेवेजों की समीक्षा के बाद इस बात की खबर दी है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, डिरॉन से जब इस प्रकरण के बारे में पूछा गया तो उन्होंुने टिप्पाणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि रेटिंग संबंधी बातचीत सार्वजनिक नहीं की जा सकती है. उधर, वित्तक मंत्रालय ने भी इस बारे में कमेंट करने से इनकार कर दिया. वित्तत मंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी अरविंद मायाराम ने सरकार के इस अप्रोच को पूरी तरह असाधारण बताया. उन्हों ने कहा, ‘रेटिंग एजेंसियों पर किसी भी तरीके से दबाव नहीं बनाया जा सकता है. ऐसा नहीं किया जाना चाहिए.’
रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त मंत्रालय ने अक्टूएबर में कई लेटर और ईमेल के जरिए रेटिंग करने की मूडीज की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए थे. इनमें कहा गया था कि हाल के सालों में भारत के कर्ज स्तरर में नियमित तौर पर कमी आई है लेकिन मूडीज ने इसका ध्यांन नहीं रखा. मंत्रालय ने कहा कि मूडीज जब विभिन्नू देशों की राजकोषीय ताकत की समीक्षा कर रही थी तो उसने इन देशों के विकास स्तिर को नजरअंदाज कर दिया. सरकार ने इसके लिए जापान और पुर्तगाल का उदाहरण दिया था. अपनी अर्थव्यवस्थाक से करीब दोगुना कर्ज होने के बावजूद इन देशों की रेटिंग बढ़िया थी.
डिरॉन ने कहा कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत का ना सिर्फ कर्ज संकट ज्यादा बड़ा है बल्कि कर्ज वहन करने की इसकी क्षमता भी काफी कम है.