हैदराबाद 21 नवंबर: नरेंद्र मोदी सरकार 500 और 1000 रुपये के नोटस को रद्द करने के बाद उत्पन्न होने वाली उथल पुथल से निपटने के लिए संघर्ष में मसरूफ़ है जबकि ज़ेर गशत 86 प्रतिशत नोट वापस कर दिए गए हैं।
हालांकि 11 दिन बीत चुके हैं, लेकिन आम आदमी अभी भी केंद्र सरकार के जादू के तोड़ में मसरूफ़ है। आम आदमी नहीं जानता कि वह नोटों की मंसूख़ पर प्रधानमंत्री की तारीफ़ करे या उन्हें आलोचना बनाए। दो बातों का जवाब अब तक नहीं हो सका है।
पहला सवाल यह है कि जुलाई से सितंबर की अवधि के दौरान बैंक में डिपाजिट की जाने वाली रकमों में काफी वृद्धि क्यों हुई। ‘कया काला धन संग्रहण वालों को इत्तेला थी’ इन तीन महीनों के दौरान सितंबर खत्म तक कम से कम छह लाख करोड़ रुपये बैंकों में जमा किए गए। पिछले 19 साल की यह आज़िमतरीन नोटों की संख्या है।
एक विश्लेषक के मुताबिक जो फर्स्ट पोस्ट शोध टीम ने किया है। सरकार और आरबीआई बैंकों में जमा की जाने वाली राशि में अचानक वृद्धि का जो जुलाई से दिसंबर की सहि माही में हुआ क्या वज़ाहत करेगी। यह ऐसा वृद्धि है जो अर्थशास्त्री भी हैरान है। अधिकांश बैंकों के मुताबिक यह नकारात्मक तरक़्क़ी है और अर्थव्यवस्था अभी भी गिरावट के चरण में है। आरबीआई को फ़राहम करदा आदाद-ओ-शुमार के मुताबिक 5.9 लाख करोड़ रुपये जून से सितंबर के दौरान जमा करवाए गए।
इस तरह 5.893 अरब रुपये की वृद्धि देखा गया। 30 सितंबर तक 5.89 लाख करोड़ रुपये जमा करवाए गए। जैसा कि पहले कहा गया है जमा में वृद्धि अतीत में कोई मिसाल नहीं मिलती। निश्चित तोर पर यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर डिपाज़िटस के ज़राए जानना जरूरी हो गया है।
यह आरबीआई की ओर से स्पष्टीकरण की जरूरत है। पूर्व महानिदेशक डीजी एम एसबी आई नरेश मल्होत्रा ने फर्स्ट पोस्ट के साथ बातचीत के दौरान कहा कि सीएनबीसी। टीवी 18 द्वारा इस वृद्धि की इत्तेला के बाद केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने इस मुद्दे के महत्व कम करते हुए कहा कि इसकी वजह सातवें पै आयोग के बक़ायाजात की भुगतान है।
बकाया राशि 70 हजार करोड़ रुपये है। अगर दी जाने वाली रियायतों को इस में शामिल कर लिया जाए तो यह 1.5 लाख करोड़ रुपये से बहरहाल अधिक नहीं हो सकती। केंद्रीय वित्त मंत्री की वज़ाहत उलझन दूर करने के लिए काफ़ी नहीं थी। इस बात का प्रबल संभावना है कि काला धन के होर्डिंग जिन्हें इस बात की खबर मिल चुकी थी बड़ी होशियारी से अपनी गैर परिकलित धन का जो 500 और 1000 के नोटों शामिल थी बैंकों में जमा करवा रहे थे।
अगर ऐसा नहीं है तो और क्या वजह हो सकती है। इस गुप्त धन को बैंकिंग प्रणाली में शामिल करने में मोदी सरकार ‘आरबीआई और बैंकों के सदस्यों स्टाफ की मिलीभगत का खुलासा होता