नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी हुकूमत में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया इस्लामिया शैक्षणिक संस्थानों को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है. भारत सरकार के एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा है कि सेक्युलर हुकूमत माइनॉरिटी इंस्टीटयूट की स्थापना नहीं कर सकती है. इतना ही नहीं जामिया मिलिया के अल्पसंख्यक दर्जे को खत्म करने की दलील भी दी गई है.
सवाल है कि मोदी हुकूमत में अल्पसंख्यक संस्थानों का विरोध क्यों हो रहा है?
देश के इन दो संस्थानों को लेकर एक नया विवाद शुरू हो गया है. केंद्र सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बारे में सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कभी मुस्लिम शैक्षणिक संस्थान था ही नहीं. साथ ही कानून मंत्रालय ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को ये राय भी दी है कि वो जामिया मिल्लिया इस्लामिया का अल्पसंख्यक दर्जा हटा सकती है.
दरअसल जामिया मिल्लिया इस्लामिया अधिनियम, 1988 के अनुच्छेद 7 का हवाला देते हुए सरकार ने कहा है कि विश्वविद्यालय किसी भी लिंग और किसी भी नस्ल, जाति, या वर्ग के लिए खुला रहेगा, और किसी शिक्षक या छात्र के रूप में दाखिले के लिए पात्र बनाने के लिए किसी व्यक्ति पर धार्मिक आस्था या पेशे की कसौटी लागू करना विश्वविद्यालय के लिए वैध नहीं होगा.
केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में दलील के बाद अब दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं.
यूपीए सरकार ने 22 फरवरी 2011 को दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा दिया था.
अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय होने के बाद इसमें मुस्लिम छात्रों के लिए 50 फीसद सीटें आरक्षित हो गई, जबकि एससी/एसटी के आरक्षण खत्म कर दिए गए.
जामिया को मुस्लिम यूनिवर्सिटी का दर्जा देने के खिलाफ भी दिल्ली हाईकोर्ट में मामला चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट में मुकुल रोहतगी ने दलील देते हुए कहा कि सेक्लुयर राज्य होने के नाते हम कोई अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना नहीं कर सकते.
मुकुल रोहतगी की इस दलील को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने भी सही ठहराया है. उन्होंने कहा है कि किसी भी विश्वविद्यालय में धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन गलत है.
हालांकि जामिया मिल्लिया के टीचर एसोसिएशन के वकील सरकार की दलीलों से इत्तेफाक नहीं रखते. उनके मुताबिक हुकूमत को अल्पसंख्यक संस्थान बनाने की इजाजत है.
एएमयू और जामिया मिल्लिया को लेकर विवाद भले कानूनी गलियारों तक सीमित है, लेकिन जल्द ही इस पर राजनीतिक रंग भी चढ़ने की पूरी उम्मीद है.