ईमान का लफ्जी मायनी तस्दीक है और सिद्क इसका एक शोबा है। यह वह फजीलत और अखलाक है जो आदमी को हर बुरे और नामुनासिब काम से रोकता है। किताबे सुन्नत और अक्ल व फितरत बंदो में सच को जिंदा करने की तरगीब देते हैं। इसीलिए मुसलमान हमेशा सच्चा होता है।
वह अपने जाहिरी व बातिनी कौल व अमल में सच को लाजिम पकड़ता है और सच ही को महबूब रखता है। क्योंकि सच नेकी की तरफ रहनुमाई करता है और नेकी जन्नत का रास्ता दिखाती है और जन्नत ही मुसलमान का आला मकसद और आखिरी आरजू है और झूट इसके बरअक्स उसकी तकीज है। मुसलमान सच का इल्तिजाम इसलिए करता है क्योंकि सच से उसके ईमान और इस्लाम की तकमील होती है और कमाले ईमान की हिफाजत का सच के सिवा कोई रास्ता नहीं है। फिर सच पर जमने के पाकीजा नतीजे इस पर मुस्तजाद हैं कि जिसका फल सच्चे लोग हासिल करते हैं जैसे जमीर की राहत और नफ्स का सुकून व इत्मीनान वगैरह। नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद है कि सच में सुकून है। (तिरमिजी)
सच कमाई में बरकत और खैर की ज्यादती लाता है। नबी करीम (स०अ०व०) का फरमान है कि बेचने वाले और खरीदने वाले को अख्तियार है जब तक कि जुदा न हों। इसलिए अगर दोनों ने सच बोला और साफ बयान कर दिया तो दोनों की खरीद फरोख्त में बरकत डाल दी जाएगी और अगर दोनों ने छिपाया तो दोनों से खरीद फरोख्त की बरकत उठा ली जाएगी।
सच की बदौलत ही आदमी शहादत के दर्जे पर फाईज होता है। नबी करीम (स०अ०व०) का फरमान है जिसने सिद्क दिल से अल्लाह पाक से शहादत मांगी तो अल्लाह तआला उसको शहीदो के दर्जों पर पहुंचाएगा अगरचे वह अपने बिस्तर पर ही फौत हो जाए।
यह सच नापसंदीदा चीजों से निजात का सबब है। कहते हैं कि एक भागे हुए गुलाम ने एक नेक आदमी की पनाह ली और उनसे कहा कि कोई अगर मेरे बारे में पूछे तो बताना नहीं। उस नेक आदमी ने कहा कि तुम यहां सो जाओ और खजूर के पत्तो की गठरी उसके ऊपर रख दी। जब उसको ढूंढने वालों ने आकर पूछा तो उस नेक आदमी ने उनसे कहा कि इन खजूर के पत्तो के नीचे है। उन्होंने समझा कि शायद यह हमारे साथ मजाक कर रहा है और छोड़कर चले गए। यूं वह भागा हुआ गुलाम उस नेक आदमी के सच बोलने की बरकत से बच गया।
अबू दाऊद में हजरत अब्दुल्लाह बिन खमसा (रजि0) से रिवायत है कि नबुवत से पहले मैंने नबी करीम (स०अ०व०) से खरीद-फरोख्त का एक मामला किया। कुछ बकाया आप को अदा करने रह गए। मैंने आप से वादा किया कि अभी इसी जगह मैं वह रकम लाकर आप को दे देता हूं। लेकिन मैं (यह वादा करके) भूल गया। तीन दिन बाद मुझे याद आया। इसलिए मैं उसी जगह आया तो क्या देखता हूं कि नबी करीम (स०अ०व०) अभी तक उसी जगह बैठे मेरा इंतेजार फरमा रहे हैं। आप ने फरमाया कि ऐ भाई! तुम ने तो मुझे मशक्कत में डाल दिया। मैं तीन दिन से यहां खड़ा तुम्हारा इंतेजार कर रहा हूं।
यह हदीस हमें बतलाती है कि नबी करीम (स०अ०व०) सच का किस कदर एहतेमाम फरमाया करते थे। झूट आदमी के एतबार को खत्म कर देता है और उसकी अदालत को साकित कर देता है। इमाम बुखारी के बारे में रिवायत है कि वह एक आदमी के पास तलबे हदीस के लिए गए।
उन्होंने देखा कि उस आदमी का घोड़ा भाग गया है और वह अपनी चादर की तरफ उस घोड़े को इशारा कर रहा है गोया उसमें जौं हैं। घोड़ा (लालच में) करीब आया तो उसने उसे पकड़ लिया। इमाम बुखारी ने पूछा कि क्या तुम्हारे पास जौं हैं। उस आदमी ने कहा नहीं। मैंने तो उसको शुब्हे में डाला था। इमाम बुखारी ने फरमाया कि मैं उस आदमी से हदीस नहीं लेता जो जानवरों से झूट बोलता है।
तो उस आदमी के बारे में क्या ख्याल है जो आदमियों से झूट बोले? सच की अजमत का अंदाजा हम इस किस्से से लगा सकते हैं। कहते हैं कि एक दिन हजाज बिन यूसुफ ने खुतबा दिया और खुतबा लम्बा कर दिया। इतने में हाजिरीन में से एक ने कहा कि नमाज का वक्त हो गया है और वक्त तेरा इंतेजार नहीं करेगा और रब तेरा उज्र कुबूल नहीं करेगा।
हजाज ने उसके कैद करने का हुक्म दे दिया। उसकी कौम उसके पास आई और ख्याल किया कि वह आदमी पागल हो गया। हजाज ने कहा कि अगर वह पागल होने का इकरार कर ले तो मैं उसे जेल से रिहा कर दूंगा। उस आदमी ने कहा कि मेरे लिए यह मुनासिब नहीं कि मैं अल्लाह की इस नेमत का इंकार करूं जो उसने मुझ पर की है और अपने लिए उस जुनून को साबित करूं जिससे अल्लाह ने मुझे पाक रखा है। जब हजाज ने उसका सच पर डट जाना देखा तो उसे छोड़ दिया।
सच का एक पहलू यह है कि दूसरों पर हुस्ने जन हो और उनपर सोए जन न हो। इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है कि हजरत ईसा (अलै0) ने एक आदमी को चोरी करते देखा। आप ने उससे पूछा कि तूने चोरी की? आदमी ने कहा कि अल्लाह की कसम! मैंने चोरी नहीं की। हजरत ईसा (अलै0) ने फरमाया मैं अल्लाह पर ईमान लाता हूं और अपनी आंखों को झुटलाता हूं।
इसलिए बाज उलेमा यह कहा करते थे कि जिसने अल्लाह की कसम खाकर हमें धोका दिया तो हम उससे धोका खा लेंगे। इमाम मालिक फरमाया करते थे कि एक आदमी के अन्दर निनान्वे एहतमालाते कुफ्र के हों और एक एहतमाल ईमान का हो तो हम मुसलमान उसे अच्छा गुमान करते हुए उसे ईमान पर महमूल करेंगे।
(मौलाना आसिफ नसीम)
———बशुक्रिया: जदीद मरकज़