मोहम्मद अली जिंदा होते तो ओरलेंडो पर रोते: हाना यासमीन अली

मैं और मेरा परिवार गहरे सदमे डूब गया जब हमने ओरलेंडो के दुखद घटना को सुना। यह घटना मेरे पिता के अंतिम संस्कार के दो दिन बाद सामने आई। उनका अंतिम संस्कार उनके जीवन के जश्न के रुप में मनाया गया। दुनियाभर के नेताओं और मुख्तलिफ मजहब में आस्था रखने वालों ने उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए। सबने मिलकर शांति सद्भाव, और प्रेम कि भावना के साथ उनको श्रंद्धाजलि दी। मोहम्मद अली ऐसे मुसलमान थे, जिन्होंने अपनी जिंदगी अपने धर्म को सर्मपित किया, हमेशा अपने जमीर की सुनी और सच का साथ देते हुए गुजारा। मुझे यकीन है कि मेरे पिता जिंदा होते तो इस कायरता और निर्दयता भरी घटना को सुनकर दुख और निराशा में डूब जाते, जिसमें एक तथाकथित मुस्लिम बंदूकधारी ने धर्म के नाम पर बेरहमी से इंसानो की जान ली।

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जितना वह अपने धर्म से प्यार करते थे, उतना ही वह दूसरों के धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करते थे। उन्होंने कभी भी किसी को धार्मिक आधार पर जज नहीं किया। वे अक्सर कहते थे कि किसी भी इंसान के अंदर ईश्वर को पूरी तरह समझ पाने की सलाहियत नहीं है। वे अक्सर एक इस्लामिक संदेश का हवाला दिया करते थे कि दुनिया के समूंद्रो को स्याही के शक्ल में बदल दो और दरख्तों को कलम बना लो फिर भी ये ईश्वर के बारे में पूरी तरह वर्णन नहीं कर पाओगे।

मेरे पिता किसी की आलोचना नहीं करते, सभी को माफ कर देते थे। हमेशा उनके लिए दिल में प्यार रखते थे। वह कहते थे हाना इस दुनिया में सिर्फ एक ही सच्चा मजहब है और वह है दिल का मजहब। ईश्वर ने अपने मजहब का कभी नाम यहुदी, ईसाई, इस्लाम,या बौद्ध नहीं रखा। यह काम इंसानो ने किया। इंसानो ने ही मजहब के आधार पर इंसानियत को बांटा। मेरे पिता का एक ही सपना था कि एक दिन सारी दुनिया एकजुट हो इंसानियत के नाम पर। और सभी मिलकर इंसानियत को बचाने के लिए संघर्ष करे।
मेरे पिता को सम्मानित और प्रभावित शख्सियत में गिने जाने के पीछे कई वजहें हैं। उनमें एक उनका अपने दिल में हमेशा प्यार को बनाये रखना चाहे हालात कैसे भी हों। जिंदगी में कितनी भी उथल-पथल आये लेकिन उनका दिल कभी कड़वाहत से नहीं भरा। प्यार हमेशा उनके दिल की नुमाइंदगी करता रहा।

उनका मानना था किसी के गलत कामों के जिम्मेदार उसकी पूरी जाति को नहीं ठहराया जा सकता। ना ही किसी चरमपंथी संगठन के कृत्यों को आधार बनाकर उसके पूरे धर्म के लोगों को निशाना बनाना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो यह न्यायसंगत नहीं कहा जाएगा।
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आज अगर मेरे पिता जिंदा होते तो ओरलेंडों में बेगुनाह इंसानों जानों के शांति के लिए प्रार्थना करते । वे कहते जरुरी नहीं है कि दुनिया तुम्हारे साथ खड़ी हो, हो सकता है कि तुम अकेले हो इस दुनिया में कोई तुम्हारा साथ ना दे लेकिन इसके बावजूद शुरुआत तुम्हे खुद से करनी होगी। सही और गलत को पहचानने के लिए तुम्हे दिल की आवाज सुननी होगी।

हमारी संवेदना उन परिवारों के साथ है जिन्होने इस बेवकूफी और कायरतापूर्व हमलें में अपनो को खोया है। उनमें से कईयों के लिए ना भुलाया जाने वाला हादसा है । शायद, यह कायरता भरा हमला हम और आपके दिल में सदा के लिए घाव छोड़ दे, लेकिन इन सब के बावजूद हमें अपने आसपास मोहब्बत और माफ करने के जज्बे को पनपने देना होगा।

(यह पत्र है उस आवाम जिन्होनें ओरलेंडो जैसी दुखद घटना में अपने परिवार को खोया। हाना यासमीन अली मोहम्मद अली की छोटी बेटी है। इन्होंने अपने पिता की ऑटो बायोग्राफी “The Soul of a Butterfly: Reflections on Life’s Journey,” सहायक लेखिका है।

इसका हिन्दी रूपांतरण फ़हद सईद ने किया है
fahadsaeedmi@gmail.com