इतनी मुद्दत बाद मिले हो
किन सोचों में गुम रहते हो
इतने ख़ाएफ़ क्यों रहते हो
हर आहट से डर जाते हो
तेज़ हवा ने मुझसे पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो
काश कोई हमसे भी पूछे
रात गए टुक क्यों जागे हो
कौन सी बात है तुममें ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो
पीछे मुड़ कर क्यों देखा था
पत्थर बन कर क्या तकते हो
कहने को रहते हो दिल में
फिर भी कितने दूर खड़े हो
‘मोहसिन’ तुम बदनाम बहुत हो
जैसे हो फिर भी अच्छे हो
(“मोहसिन” नक़वी)