मौत को कसरत से याद करने की तलक़ीन: मौलाना ममशाद अली

कड़पा, 28 अप्रैल: दुनिया की हर चीज़‌ फ़ना ,हर आबादी बर्बाद, हर इमारत गिरने वाली है, हर जानदार को फ़ना के घाट से गुज़रना है , मौत एक ऐसा यक़ीनी अमर है जिस के लिए कोई दलील की ज़रूरत नहीं , मौत का तसव्वुर इंसान को हर तरह की बुराइयों से रोकता है। सहीफ़ा मुहम्मदी -ओ-अहादीसे नबवी में जाबजा मौत का तज़किरा किया गया है ताकि इंसान अपनी ख़ाहिशात, दुनियवी लज़्ज़ात में उलझ कर चंदरोज़ा ज़िंदगी की रौनक‍ और ख़ूबसूरती में मस्त-ओ-मगन होकर अपनी हक़ीक़ी-ओ-दाइमी ज़िंदगी आख़िरत से बेख़बर ना होजाए। रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम‌ ने फ़रमाया लज़्ज़तों को फ़ना करदेने वाली चीज़ मौत को कसरत से याद किया करो।

इस‌ का इज़हार मौलाना मुहम्मद ममशाद अली सिद्दीक़ी ने जामा मस्जिद कड़पा में तंज़ीम इस्लाही मुआशरा व अज़ाला मुनकिरात के इजतिमा से किया। मौलाना ने कहा कि आज मुआशरे में हर तरफ़ ज़ुल्म-ओ-ज़्यादती है, क़त्ल-ओ-ग़ारतगरी, लूट मार का बाज़ार गर्म है, इफ़्फ़त-ओ-इस्मत इंसानी जानों की हिफ़ाज़त का बड़ा मसला बन चुका है। ऐसे में मौत का ख़्याल तमाम जराइम के इंसिदाद में एक मोस्सर और अहम रोल अदा कर सकता है।मौत का याद रखना ना सिर्फ़ मुआशरती ज़िंदगी के लिए फ़ायदेमंद है बल्कि इंसान को दीगर मोहलिक-ओ-ख़तरनाक बीमारियों से भी महफ़ूज़ रखता है।

रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम‌ ने फ़रमाया कि क़ब्रों की ज़ियारत किया करो क्योंकि वो मौत को याद दिलाती हैं। दुनिया आख़िरत की खेती है इस लिए हमें यहां ऐसे काम करने चाहिए जो मरने के बाद आख़िरत में नजात का ज़रिया बने।मौलाना रईस अंसारी ने सय्यदना हज़रत साद बिन उबादा (रज़ि.) का तज़किरा करते हुए कहा कि ईमान वालों को वैसी मौत मरना चाहिए जिन की नमाज़े जनाज़ा में सत्तर हज़ार फ़रिश्तों ने शिरकत की और जब उन की रूह अर्शे बरीं पर पहुंची तो ख़ुशी के मारे अल्लाह का अर्श भी झूमने लगा।

अफ़सोस कि आज हम ने मौत को भुला कर दिया है, क्योंकि जायज़-ओ-नाजायज़ , हलाल-ओ-हराम की तमीज़ हम से जाती रही, आख़िरत में जवाबदेही की फ़िक्र से हम बेफ़िक्र होगए। अगर आज हमारे अंदर आख़िरत की फ़िक्र आजाए तो अमन आलम वापिस आ जाएगा।