म्यांमार की पचास सालों में पहली लोकतांत्रिक सरकार ने अपने कार्यकाल के 100 दिन पूरे कर लिए हैं। सालों से सेना के शासन के बाद अब लोगों के चुने सरकार में नई नीति और प्राथमिकताएं उभर रही हैं।
संविधान के जिस खंड के चलते आंग सान सूची देश की राष्ट्रपति नहीं बन पाई उस पर लंबी बहस चली। लेकिन अब नहीं। अपने विश्वसनीय दोस्त तिनच्यो को राष्ट्रपति बनाने और खुद के लिए स्टेट काउंसलर का नया पद बनने से वो ज्यादा ताकतवर बन गई हैं। पिछले साल चुनाव प्रचार के दौरान सूची ने सेना की राजनीतिक ताकत को कम करने की बात कही थी।
लेकिन अब इस पर उन्होंने चुप्पी साध ली है। लगता है मानों उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि संविधान, सेना के लिए “लाल रेखा” है। कैंपों में रहने वाले एक लाख़ रोहिनग्या शरणार्थियों की हालात बेहद ख़राब है। यही हाल रखाइन प्रांत में रहने वाले रोहिनग्या मुसलमानों की भी है।
अब तक सूची ने केवल एक समिति का गठन किया है लेकिन इस समुदाय की परेशानियों का कोई स्थाई समाधान नहीं ढूंढा है जिन्हें मानवाधिकार भी नहीं दिए गए। क्या सूची मुस्लिम विरोधी हैं? उनकी पार्टी ने पिछले साल के चुनावों में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में नहीं उतारा था।
इसका कारण दिया गया था कि पार्टी कट्टर बौद्ध भिक्षुओं को नाराज़ नहीं करना चाहती थी। सत्ता में आने के बाद सूची ने कई समुदायों की तरफ हाथ बढ़ाया लेकिन देश की आबादी के पांच फीसदी मुसलमानों को अलग-थलग महसूस होता है।
हाल के हफ्तों में रखाइन प्रांत में ज़बरदस्त मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई है, लेकिन सूची इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है।