म्यूज़ीयम के बानी सालार जंग III की क़ब्र की बेहुर्मती

अब्बू एमल- शोहर-ए- आफ़ाक़ सालार जंग म्यूज़ीयम की नुमाइश के लिए आने वाला हर सय्याह ख़ाह वो मुल्की हो या ग़ैरमुल्की म्यूज़ीयम की शानदार इमारत यहां की साफ़ सफ़ाई, तारीख़ी नवादिरात की आब ताब और सलीक़ा मंदी से उन की आराइश की दाद दिए बगै़र नहीं रहता और नवादिरात के इस लासानी विरसा को जमा करने और क़ौम के नाम मानून करने पर नवाब मीर यूसुफ़ अली ख़ां सालार जंग सोम को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करता है।

इस के बरख़िलाफ़ इन नाज़रीन को सालार जंग के मक़बरा की ज़यारत का अगर मौक़ा फ़राहम किया जाय तो वो इस अज़ीमुश्शान म्यूज़ीयम के बानी की क़ब्र को देख कर महव अफ़सोस होजाएंगे कि सीधी सादी मामूली पत्थर की क़ब्र ना तो इस पर कोई गुमबद ना चोखनडी ना ही कोई साइबान बस एक आम क़ब्र की तरह खुले आसमान के नीचे वो शख़्स अबदी नींद सो रहा है। जिस ने इस दुनिया को चालीस से ज़ाइद ममालिक का तहज़ीब तमद्दुन और तारीख़ का बेशबहा सरमाया दिया, जिस पर ना सिर्फ हिंदूस्तानी बल्कि तमाम अक़्वाम नाज़ करती हैं।

मगर अफ़सोस कि ना तो म्यूज़ीयम के हुक्काम ने ना ही रियास्ती हुकूमत ने उन के शायान-ए-शान मक़बरा तामीर किया। सुलतान शाही के दायरा हज़रत मीर मोमिन साहिब में वाक़्य अहाता सालार जंग का दौरा किया तो ऐसे हक़ायक़ सामने आए, जिसे हम सिर्फ इस्लाह की ख़ातिर ज़बत तहरीर कररहे हैं। नवाब सालार जंग बहादुर की मज़ार के क़रीब एक मोटर साईकल खड़ी है और इस क़ब्र और अतराफ़ के क़ुबूर पर शुत्र निजीयाँ, बच्चों की फा लियां और दीगर कपड़े सूखने केलिए डाले गए हैं, जैसे ही हम ने कैमरा निकाला एक शख़्स क़ुबूर पर से कपड़े शुत्र निजीयाँ हटाने लग गया। क़ारईन को ये जान कर और भी अफ़सोस होगा कि अहाता सालार जंग तक़रीबन दो अकऱ् अराज़ी पर मुहीत है, जिस में आशूर ख़ाना, मस्जिद, गुसलखाना और अज़ाख़ाना भी मौजूद है गोका बाब अलद अखिला नया है। शायद हाल ही में तबदील किया गया है।

इस अहाता में साबिक़ ममलकत हैदराबाद के पाँच वुज़रा आज़म दफ़न हैं। नवाब लायक़ ख़ां दोम, नवाब यूसुफ़ अली ख़ां सालार जंग सोम, नवाब तुराब अली ख़ां सालार जंग अव्वल, नवाब आलम अली ख़ां शेरजंग और दीगर हैं। इन सब की क़ुबूर आम क़ुबूर की तरह हैं। मज़ीद ये कि इस क़ब्रिस्तान में कुछ लोग क़ियाम पज़ीर हैं और उन का हमाम बैत उल-ख़ला भी क़ब्रिस्तान ही में है, जिस का गंदा पानी उसी क़ब्रिस्तान में बहता है। अफ़सोस कि म्यूज़ीयम के हुक्काम और रियास्ती हुकूमत इस ज़िमन में लापरवाही बरत रहे हैं।

बानी म्यूज़ीयम और दीगर मदफ़ून हज़रात के क़ुबूर की बेहुरमती कररहे हैं। हुकूमत इस सिलसिला में तवज्जा दे और बैन-उल-अक़वामी शौहरत-ए-याफ़ता सालार जंग जिन्हों ने अपने नवादिरात के विरसा को क़ौम से मानून किया है उन के शायान-ए-शान मक़बरा बनाकर उन्हें हक़ीक़ी मानो में ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करें।