अक़वाम-ए-मुत्तहिदा के सरबराह बैन की मून ने मक़बूज़ा मग़रिबी किनारा में तीन नई फ़ौजी चौकीयों को क़ानूनी हैसियत देने के इसराईल फ़ैसले पर नाराज़गी का इज़हार करते हुए उसे बैन-उल-अक़वामी क़वानीन के तहत नाजायज़ क़रार दिया है। इसराईल ने 1967 की जंग के दौरान क़ब्ज़ा किए गए मग़रिबी किनारा पर तामीर कर्दा तीन नई चौकियों परोशीन, संस्ना और रीशलीम को क़ानूनी क़रार दे दिया है।
इसराईल फ़लस्तीनी मिल्कियत वाली इस ज़मीन को सरकारी ज़मीन क़रार देता है। बैन की मून के दफ़्तर से जारी एक ब्यान में कहा गया है कि अक़वाम-ए-मुत्तहिदा के जनरल सेक्रेटरी ने इसराईली हुकूमत से मग़रिबी किनारा पर तीन नई फ़ौजी चौकीयों को क़ानूनी क़रार देने के फ़ैसले पर नाराज़गी का इज़हार किया है।
इन का कहना है कि बैन-उल-अक़वामी क़वानीन के तहत वहां कोई भी तामीर गै़रक़ानूनी है।
इसराईली हुक्काम ने ताहम इल्ज़ामात की तरदीद की है कि हुकूमत ने गुज़श्ता 20 बरसों में पहली मर्तबा मग़रिबी किनारा पर नई बस्तीयों की तामीर को मंज़ूरी दी है। इसराईल का मानना है कि बस्तीयां और फ़ौजी चौकियां दोनों अलग अलग चीज़ें हैं। बस्तीयों को हुकूमत की तरफ़ से मंज़ूरी हासिल है जब कि फ़ौजी चौकीयों को हुकूमत की मंज़ूरी कभी नहीं मिली है।
गोका अक़वाम-ए-मुत्तहिदा का मौक़िफ़ है कि मग़रिबी किनारा में इसराईल की तरफ़ से तामीर करदा कोई भी यहूदी बस्ती गै़रक़ानूनी है