यदि यूरप्पा को जेल

सेयासी क़ुव्वत को अपनी बदउनवानीयों की पर्दापोशी के लिए इस्तिमाल किया जाय तो क़ानून अपना काम कर दिखाता है। जुनूबी हिंद में बी जे पी की पहली हुकूमत क़ायम करने का सेहरा अपने सर पर सजाने वाले साबिक़ चीफ़ मिनिस्टर बी ऐस यदि यूरप्पा ने लोकआयुक्त अदालत की कार्रवाई से बचने की आख़िर तक कोशिश की। कुरप्शन के ख़िलाफ़ मुल्क गीर सतह पर यात्रा निकालने वाले ईल के अडवानी के इमकानात को धक्का पहूँचाने वाले वाक़ियात में यदि यूरप्पा की अदालती तहवील क़ाबिल नोट है। इस वाक़िया से बी जे पी को शदीद दबाओ का सामना करना पड़ेगा। यदि यूरप्पा ,सरकारी आराज़ीयात के मुआमलों, ट्रस्टों के फंड्स और गै़रक़ानूनी कानकनी के मुक़द्दमात का सामना करने के बावजूद वो हुकूमत और इक़तिदार के मज़े हासिल करने की कोशिश करते रहे जब उन्हें दबाओ के तहत अस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया गया तो इक़तिदार से हटने के बाद क़ानून के शिकंजे से बचने की कोशिश की। लोकआयुक्त ने उन की ज़मानत की दरख़ास्त को मुस्तर्द करने के इलावा गिरफ़्तारी वारंट जारी किया तो मज़ीद बदनामी से गुरेज़ करते हुए ख़ुदसपुर्दगी इख़तियार करली। अदालत से गिरफ़्तारी वारंट जारी होने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार करने के लिए उन की क़ियाम गाहों पर धावे शुरू कर दिये। गिरफ़्तारी का मरहला साबिक़ चीफ़ मिनिस्टर के साथ बी जे पी की सारी क़ियादत के लिए बाइस शर्मिंदगी है। एक ऐसी पार्टी जिस ने अपनी बुनियाद ख़ालिस हिंदूतवा नज़रियात को फ़रोग़ देने के लिए क़ायम की आगे चल कर ख़राबियों और लौट खसूट की सियासत से दो-चार होगई। यदि यूरप्पा को जेल की सलाखों के पीछे डालने से पार्टी के सीनीयर लीडर ईल के अडवानी और उन की हिमायत करनेवाली टीम के कई मंसूबों पर पानी फिर सकता है क्योंकि बी जे पी में एक बड़ी तबदीली के इमकानात पाए जाते हैं। वज़ारत-ए-उज़मा की दौड़ के लिए जारी जद्द-ओ-जहद में अपनी पीरानासाली के बावजूद अडवानी ने वज़ारत-ए-उज़मा का ख़ाब देखना तर्क नहीं किया। इस वज़ारत पर बी जे पी के दीगर क़ाइदीन ख़ासकर चीफ़ मिनिस्टर गुजरात नरेंद्र मोदी, अरूण जेटली और सुषमा स्वराज के इलावा सदर पार्टी नतिन गडकरी की भी नज़र है। 84 साल की उम्र में भी अडवानी को इक़तिदार की ऐन ख़ाहिश है इस लिए वो मुल्क भर में 12000 केलो मीटर तवील यात्रा निकाल रहे हैं। इन की यात्रा कर्नाटक पहूंचने से क़बल ही मुख़्तलिफ़ वाक़ियात से दो-चार होरही है। बी ऐस यदि यूरप्पा को जेल में डाल दिए जाने की ख़बरें पार्टी कैडरस के लिए ज़हनी दबाओ का बाइस बन रही हैं। अपनी इमेज बनाने की फ़िक्र करने वाले बी जे पी क़ाइदीन को रिश्वत सतानी के वाक़ियात ने अफ़सोसनाक सूरत-ए-हाल से दो-चार करदिया है। इन क़ाइदीन ने अपनी ख़राबियों का जायज़ा लेने के बजाय सेयासी आरज़ूओं की तकमील पर तवज्जा दी। कर्नाटक में बी जे पी के लिए पहली हुकूमत की तशकील एक नेअमत से कम ना थी मगर पार्टी क़ाइदीन ने इस नेअमत का ग़लत इस्तिमाल किया और पार्टी को बदनामी की खाई में ढकेल दिया। कर्नाटक के अवाम ने पार्टी की मज़हबी वाबस्तगी को एहमीयत दी थी और मज़हबी जज़बात का सहारा लेकर अवाम के वोट हासिल करनेवाली पार्टी के क़ाइदीन ने सेयासी वाबस्तगी के ज़रीया बदउनवानीयों की बद से बदतर मिसाल क़ायम करदी। इस के बावजूद वो अपनी ग़लतीयों पर नादिम नहीं हुए और क़ानून से लड़ने का जज़बा एक दिन जेल की सलाखों के पीछे पहूँचा दिया।गै़रक़ानूनी कानकनी पर कर्नाटक का एक सेयासी टोला मलिक और क़ानून को अपने पंजा में बंद करने की कोशिश कररहा था मगर रेड्डी बिरादरान के ख़िलाफ़ कार्रवाई और जनार्धन रेड्डी को जेल भेज दिए जाने के बाद कर्नाटक के साबिक़ चीफ़ मिनिस्टर के लिए भी जेल की कोठरी तैय्यार रखी गई थी। ये सब कुछ इस हाल में हुआ कि बी जे पी ने अपने क़ाइदीन की ख़राबियों को नजरअंदाज़ करदिया था। सियासत के बुनियादी तक़ाज़ों को नजरअंदाज़ करने अवाम की ख़िदमत के महसोला मौक़ा को ज़ाए करदिया गया। रिश्वत के ख़िलाफ़ मर्कज़ की यू पी ए हुकूमत को घुटने के बल लाने की कोशिशों के दरमयान मुल़्क की असल अप्पोज़ीशन ख़ुद घुटने टेक दे तो फिर क़ौमी सतह पर बेहतर हुक्मरानी का ख़ाब हरगिज़ पूरा नहीं होसकेगा। यदि यूरप्पा को जेल होने से अडवानी की सेयासी बाज़ आबादकारी की कोशिशों को शदीद धक्का पहूँचा है। वैसे आम इंतिख़ाबात के लिए अभी 3 साल बाक़ी हैं। इस वक़्त तक बी जे पी को कई मराहिल से गुज़रना पड़ सकता है क्योंकि गुजरात में नरेंद्र मोदी जिस तरह की हुक्मरानी कररहे हैं और उन का टोला जिस अंदाज़ से सरगर्म है इस से अंदाज़ा किया जा सकता है कि बी जे पी दो हिस्सों में तक़सीम होजाएगी। क़ौमी सतह पर सेयासी ना अहलीयत बतदरीज बुलंदीयों को पहूंच जाय तो बी जे पी आगे चल कर मलिक को ख़राबियों के आख़िरी निशान तक ले जाएगी। रिश्वत सतानी, ख़राब हुक्मरानी और इख़तिलाफ़ात के शिकार माहौल में भी बी जे पी क़ाइदीन को अपने मस्ख़शुदा चेहरे को दरुस्त बनाने की फ़िक्र करने के बजाय ये ख़ुशगुमानी है कि आने वाले इंतिख़ाबात में अवाम एक बार फिर उन की रथ को वोटों से भर देंगी। यू पी ए II हुकूमत को यूपी ए I हुकूमत से ज़्यादा बद उनवान क़रार देने वाली बी जे पी को अपने क़ाइदीन की बदनामी और जेल की ज़िंदगी की परवाह नहीं है बल्कि वो 2008 -ए-में नोट बराए वोट अस्क़ाम में गिरफ़्तार करके जेल की सज़ा काट रहे साबिक़ अरकान-ए-पार्लीमैंट फागुन सिंह और महावीर सिंह को फ़ौरी रिहा करने का मुतालिबा कररही है।