यमन की ज़ंग: लड़ाई में इस्तेमाल हथियार कहां से आये?

जर्मनी इस बात पर नाज करता आया है कि वह बेहद जिम्मेदारी से अपने हथियारों का निर्यात करता है. फिर यमन के युद्ध में जर्मन हथियारों का इस्तेमाल होने की नौबत कैसे आई.

हथियारबंद विवादों और हिंसा से ग्रस्त देशों को अपने हथियार ना निर्यात करने की नीति पर जर्मनी नाज करता आया है. लेकिन डॉयचे वेले की खोजी पत्रकारिता से पता चला है कि यमन युद्ध में सऊदी अरब नीत गठबंधन जर्मनी में बने हथियार और तकनीकें इस्तेमाल करता है.

अब पता चला है कि यमन युद्ध में जर्मन हथियार और तकनीक अब तक के अनुमान से कहीं ज्यादा बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. खोजी रिसर्च प्रोजेक्ट #GermanArms ने दिखाया है कि संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब की सेनाएं यमन में जर्मन हथियारों और टेक्नॉलजी का इस्तेमाल जल, थल और वायु अभियानों में कर रहे हैं.

#GermanArms एक ऐसा संयुक्त प्रोजेक्ट है जिसमें डॉयचे वेले और उसके जर्मन मीडिया पार्टनर, सरकारी प्रसारण सेवा बायरिषर रुंडफुंक का ‘रिपोर्ट म्युनषेन’ और श्टैर्न पत्रिका के अलावा एक स्वतंत्र डच मीडिया संगठन लाइटहाउस रिपोर्ट्स और खोजी नेटवर्क बेलिंगकैट ने मिल कर काम किया.

जर्मन सरकार के प्रतिनिधि यमन में जर्मन हथियारों के इस्तेमाल को लेकर उठाए गए सवालों पर हमेशा अपनी अनभिज्ञता जाहिर करते आए हैं.रिसर्च टीम ने यमन विवाद में जर्मन हथियारों के इस्तेमाल को साबित करने के लिए वहां की वीडियो फुटेज, उपग्रह से मिले चित्रों के अलावा जर्मन हथियारों में मौजूद जियोलोकेशन तकनीक के आधार पर मिले डाटा का विश्लेषण किया.

इन आंकड़ों के आधार पर यमन के दो शहरों आदेन और अल खावखाह में यूएई के कई सैन्य वाहनों के होने का सटीक रूप से पता चल पाया. यह वाहन फेवास वेपन स्टेशन नामकी तकनीक से लैस थे, जो कि जर्मन हथियार कंपनी डाइनामिट नोबेल डिफेंस (डीएनडी) ने बनाया था.

अक्टूबर 2018 के एक वीडियो में रिसर्च टीम ने एक फ्रेंच लेकलेर्क टैंक को भी पहचाना, जिस पर डीएनडी कंपनी का ही एक और अतिरिक्त हथियार क्लारा टाइप भी लगा था.

प्रोजेक्ट #GermanArms ने अपने शोध में यमन के मोखा बंदरगाह पर जर्मनी में बनने वाले एमिराटी युद्धक पोत भी खड़े पाए. इसके अलावा, पड़ोसी एरिट्रिया के असब बंदरगाह पर भी ऐसे पोत खड़े थे, जो कि यमन में नौसैनिक ऑपरेशनों के लिए एक बेस की भूमिका निभाता है.

रिसर्च में रॉयल सऊदी एयरफोर्स की तरफ से वहां यूरोफाइटर और टॉरनेडो फाइटर जेट तैनात होने के नए साक्ष्य भी मिले हैं. इसके अलावा, एयरबस 330 MRTT से हवाईजहाजों में ईंधन भरने का काम लेने के भी सबूत मिले हैं. इन सभी हवाईजहाजों में लगने वाले अहम हिस्से जर्मनी से आते हैं.

जर्मन सरकार ने हथियारों के इस्तेमाल के मामले पर उठाए गए सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया है. वहां, इन हथियारों के निर्माताओं ने टीम को बताया कि उन्होंने सभी जर्मन कायदे कानूनों का पालन किया है.

जर्मनी अपने आर्म्स कंट्रोल के सिद्धांतों पर गर्व करता आया है. जर्मन हथियारों के खरीददारों को एक ऐसे एंड-यूजर समझौते पर हस्ताक्षर करने होते हैं, जिसमें वे शपथ लेते हैं कि हथियार आगे किसी भी समूह या देश को बेचे या दिए नहीं जाएंगे.

इसके अलावा, जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के सत्ताधारी गठबंधन ने 2018 में एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जो “सीधे तौर पर” यमन युद्ध से जुड़े किसी भी देश को हथियार भेजने पर प्रतिबंध लगाता है. सऊदी अरब और यूएई दोनों ही जर्मनी के अहम कूटनीतिक पार्टनर माने जाते हैं.

साभार- ‘डी डब्ल्यू हिन्दी’