यमन में फिर हालात बिगड़े, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने ज़ंग बंद करने की अपील की!

यमन में फिर सऊदी अरब गठबंधन ने हमला तेज कर दिया है। खबरों की माने तोगड़िया पिछले छह दिनों में करीब 200 लोगों की मौत हो चुकी है।

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इसी बीच इंटरनैशनल फ़ेडरेशन फ़ार ह्यूमन राइट्स, भुखमरी निरोधक एनजीओ, आक्सफ़ाम, डाक्टर्ज़ विदाउट बार्डर्ज़ सहित 35 ग़ैर सरकारी संगठनों ने एक बयान जारी करके चेतावनी दी है कि सूखे और भुखमरी से 14 मिलियन से अधिक यमनी नागरिकों की जानें ख़तरे में हैं इसलिए सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि वह संघर्ष विराम के लिए तत्काल क़दम उठाएं और यमन युद्ध में प्रयोग होने वाले हथियारों की सप्लाई को स्थगित करें।
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इन संस्थाओं ने यमन में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के हनन का हवाला देते हुए अमरीका, ब्रिटेन और फ़्रांस से मांग की है कि वह यमन युद्ध में अपनी भागीदारी पर पुनरविचार करें।
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लगभग चार साल से अमरीका की मदद से सऊदी अरब ने यमन पर युद्ध थोप रखा है जिसमें अब तक दस हज़ार से अधिक आम नागरिक मारे गए हैं और देश का बुनियादी ढांचा ध्वस्त होकर रह गया है।

यमन की जनता अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करते हुए अपने देश की रक्षा कर रही है और यमन की जनता की इसी बहादुरी ने हमलावरों के उद्देश्यों को नाकाम कर दिया है।

इस स्थिति को देखते हुए पश्चिमी देश भी सऊदी अरब पर दबाव डाल रहे हैं कि वह यमन युद्ध बंद करे मगर यह भी सच्चाई है कि इन्हीं पश्चिमी देशों की मदद से यमन युद्ध जारी भी है।

अमरीका ने जब यमन युद्ध रोकने की बात की और अमरीकी युद्ध मंत्री और विदेश मंत्री ने बयान दिया कि नवंबर महीने के भीतर युद्ध बंद हो जाए और यमनी पक्षों के बीच वार्ता शुरू हो जाए तो यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन ने अपनी प्रतिक्रिया में यही बात कही कि यदि अमरीका युद्ध रुकवाना चाहता है तो यह उसके हाथ में है, बस हमले करना बंद कर दे युद्ध अपने आप रुक जाएगा।

इसका मतलब यह है कि अमरीका तो ख़ुद इस युद्ध में लिप्त है और वही युद्ध रोकने की मांग कर रहा है तो यह एसा ही है जैसे अमरीका अपने आप से यह मांग कर रहा हो कि युद्ध रोक दिया जाना चाहिए।

यमन पर युद्ध तो सऊदी गठबंधन ने थोपा है लेकिन यह भी सच्चाई है कि इस युद्ध में अमरीका और इस्राईल पूरी तरह शामिल हैं जबकि फ़्रांस और ब्रिटेन को इस युद्ध के कारण बड़े पैमाने पर हथियार बेचने का मौक़ा मिल गया है।

इससे यह सच्चाई भी सामने आती है कि जब मामला आर्थिक और वित्तीय हितों का हो तो पश्चिमी सरकारों को सिद्धांत और मानवाधिकार जैसी बातें याद नहीं रहतीं।

साभार- ‘parstoday.om’