वॉशिंगटन। अमरीका भले ही यरुशलम को ईस्राइल की राजधानी के तौर पर आधिकारिक मान्यता देने वाला पहला देश बन गया है, लेकिन उसके इस कदम से दुनिया भर में तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। अमरीका के फैसले को शांति प्रयासों को दरकिनार करने वाला कदम माना जा रहा है।

भारत दुनिया का ऐसा पहला गैर अरब देश है, जिसने फिलीस्तीन को मान्यता दी है। इस वर्ष भी फिलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत की यात्रा पर आए थे। गौरतलब है कि भारत के फिलीस्तीन और ईस्राइल दोनों से घनिष्ठ संबंध हैं।

मध्य पूर्व में जब भी तनाव फैलता है तो वहां के विभिन्न देशों में काम करने वाले 80 लाख भारतीयों के जीवन पर असर पड़ने का खतरा हो जाता है। ये भारतीय हर वर्ष 40 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा भेजते हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था में काफी मददगार है।

ऐसे में अरब-ईस्राइल अशांति का भारत पर केवल कूटनीतिक दबाव ही नहीं, बल्कि आर्थिक दबाव भी बढ़ेगा। बढ़ते तनाव का असर कच्चा तेल पर पहले ही दिखने लगा है। भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा बहुत हद तक कच्चे तेल से तय होती है, क्योंकि हम अपनी आवश्यकता का 82 प्रतिशत तेल आयात करते हैं।

ऐसे में मध्य पूर्व में थोड़ी भी अशांति भारत सहित विश्व के लिए खतरनाक हो सकती है। अमरीका के फैसले से हमास एवं इस्लामिक स्टेटस जैसे आतंकी संगठनों को पुनर्जीवित होने का अवसर मिलेगा, जो विश्व के लिए और भी खतरनाक होगा।

इसलिए आवश्यक है कि विश्व समुदाय फिलीस्तीन और इजरायल के तनाव को सूझबूझ के साथ कम करने की कोशिश करे अन्यथा नया अरब-ईस्राइल विवाद भी अतीत की तरह गंभीर दुष्परिणाम दे सकता है।
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