यूपी चुनाव में मुसलमानों को अपना लीडरशिप बनाने का बेहतरीन मौक़ा: हाजी नजीर अहमद

नई दिल्ली। देश के मुसलमानों से अपना नेतृत्व बनाने की अपील करते हुए प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और इकरा इंटरनेशनल स्कूल बेंगलूर के अध्यक्ष हाजी नजीर अहमद ने कहा है कि मुसलमान कब तक देश की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों के उपकरण और वोट बैंक बने रहेंगे। अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को मुसलमानों में नेतृत्व पैदा करने का सही अवसर करार देते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में मुसलमान अगर चाहें तो अपने दम पर कमोबेश सौ से अधिक सीटों पर चुनाव जीत सकते हैं।

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न्यूज़ नेटवर्क समूह प्रदेश 18 के अनुसार उन्होंने कहा कि जब तक मुसलमानों की राजनीतिक योगदान नहीं होगी तब तक उन्हें कोई पूछने वाला नहीं होगा। उन्होंने कहा कि मुसलमानों के अधिकांश समस्याओं का कारण उनकी राजनीतिक रूप से अपंग, गैर एकता, साम्प्रदायिक अशांति और राजनीतिक कलह है। उन्होंने कहा कि देश की राजनीतिक पार्टियों में मुसलमानों की हैसियत केवल एक मेहमान और किरायेदार की तरह होती है कुछ सम्मान तो मिल सकती है लेकिन कोई अधिकार नहीं मिलता।

उन्होंने कहा कि यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम अपने अंदर राजनीतिक चेतना पैदा करें और एकता का दामन किसी मामले में न छोड़ें । उन्होंने कहा कि मुसलमानों में नेतृत्व न होने की वजह से आज तक कोई समस्या हल नाहीं हुआ। किसी भी समस्या के समाधान में नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और जब संबंधित प्राधिकरण के सामने कोई समस्या या परेशानी पेश करने वाला नहीं होगा तो समस्या कैसे हल होगा। उन्होंने एक नेतृत्व के तले मुसलमानों को इकट्ठा होने की अपील करते हुए कहा कि जिस तरह दलित कांशीराम के बैनर तले एकत्र हो गए और आज वे निर्णायक स्थिति में हैं।

हाजी नजीर अहमद ने कहा कि राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक मामले में मुसलमान आज दलितों से बदतर हो गए हैं जैसा कि सच्चर समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, इसके लिए जिम्मेदार केवल हमारी राजनीतिक बे वज़नी उन्होंने कहा कि हजारों साल से शोषण का शिकार दलित जब अपना स्थान प्राप्त कर सकते हैं मुसलमान क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि दलितों की बात हर स्तर पर आज इसलिए की जाती है क्योंकि उनके पास नेतृत्व और राजनीतिक शक्ति है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद मुसलमान सिर्फ राजनीतिक दलों के उपकरण और वोट बैंक बने रहे और उनके राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को सांप्रदायिक ताकतों से भयभीत करने के अलावा कोई काम नहीं किया और न ही उनमें कोई नेता पैदा हुए.