यू पी इंतेख़ाबात और मुस्लमान

मुल्क की पाँच रियासतों में असेंबली इंतेख़ाबात  के ऐलान के साथ ही तक़रीबा तमाम सयासी जमाअतें राय दहिंदों को राग़िब करने केलिए शब-ओ-रोज़ मसरूफ़ होगई हैं। हर जमात चाहती है कि राय दहनदे इस के झांसे में आ जाएं और ज़्यादा से ज़्यादा वोट इस के उम्मीदवारों के हक़ में इस्तेमाल करें ताकि इस जमात को इक़तिदार पर क़बज़ा करने का मौक़ा मिल जाय ।

एक बार इक़तिदार हाथ आ जाए तो बस  हर जमात अपनी सयासी ज़िंदगी की मेराज इक़तिदार के हुसूल को ही समझती है और किसी के भी ज़हन-ओ-दिल में अवाम की फ़लाह-ओ-बहबूद और क़ौम की ख़ुशहाली का मक़सद नहीं है । हर रियासत में मुक़ामी मसाइल हैं और वहां के मसाइल के एतबार से ये जमायतें राय दहिंदों को रिझाने में मसरूफ़ हो गई हैं। उत्तर प्रदेश मुल़्क की सब से बड़ी और सयासी एतबार से भी सब से ज़्यादा अहमियत की हामिल रियासत समझी जाती है । यहां मुख़्तलिफ़ अवामिल इंतेख़ाबात पर असर अंदाज़ होते हैं ।

इन में सब से ज़्यादा फ़िर्क़ा ज़ात पात और आली-ओ-उद्दिनी के अवामिल इंतिख़ाबात पर असरअंदाज़ होते हैं और शायद यही वजह है कि ये रियासत ज़ात पात और फ़िर्क़ा के झगड़ों में उलझ कर रह गई है और इस की तरक़्क़ी मुल़्क की दूसरी रियासतों की बनिसबत काफ़ी कम है । उत्तर प्रदेश में भी इंतेख़ाबी बगल बज चुका है और तमाम सयासी जमाअतें राय दहिंदों को रिझाने के अमल में मसरूफ़ होगई हैं। राय दहिंदों को तरह तरह के वादों के ज़रीया राग़िब करने की कोशिशें तेज़ होगई हैं।

हर जमात कोई ना कोई ऐसा वायदा ज़रूर कर रही है जो इस के ख़्याल में राय दहिंदों पर ख़ासा असर अंदाज़ हो सकता है । ये अलग बात है कि कोई भी जमात इस वायदा पर अमल करने और इस के इमकानात पर ग़ौर करने को तैयार नहीं है । हर जमात का मक़सद-ओ-मंशा यही है कि राय दहिंदों को किसी भी तरह से मनाते हुए उन के वोट हासिल कर लिए जाएं और बस । इस के आगे की सोच उन के ज़हन में कुछ नहीं है ।

अगर है तो इक़तिदार के मज़े लूटने की है और अवाम से किए गए वादों की तकमील की सोच हरगिज़ नहीं है । किसी भी जमात को इस सोच से असतसनी हासिल नहीं है ।

जिस तरह हर बार इंतेख़ाबात में राय दहिंदों का एक मख़सूस तबक़ा सयासी जमातों का मर्कज़ तवज्जा होता है इस बार भी एसा ही है । उत्तर प्रदेश में खासतौर पर मुस्लमान तमाम सयासी जमातों की तवज्जा का मर्कज़ बने हुए हैं । हर जमात चाहती है कि मुस्लमान इस के हक़ में वोट दें।

मुस्लमानों की ताईद हासिल करने केलिए कोई कसर बाक़ी नहीं रखी जा रही है । कांग्रेस जनरल सेक्रेटरी राहुल गांधी बहर क़ीमत मुस्लमानों के वोट हासिल करना चाहते हैं। शायद इन ही की कोशिश का नतीजा था कि मर्कज़ी हुकूमत ने इंतिख़ाबात के ऐलान सीएन क़बल अक़ल्लीयतों केलिए 4.5 फीसद ज़ेली कोटा तहफ़्फुज़ात का ऐलान किया है । इस के इलावा उत्तरप्रदेश में मुस्लमानों को नौ फीसद तक तहफ़्फुज़ात फ़राहम करने का वायदा किया गया है ।

ये लालच है मुस्लमानों के वोट हासिल करने केलिए । इसी तरह समाजवादी पार्टी भी एक तवील वक़्त के बाद फिर इक़तिदार हासिल करना चाहती है और उसे भी फिर मुस्लमानों के वोटों की ज़रूरत है । इस मक़सद केलिए दिल्ली से शाही इमाम मौलाना अहमद बुख़ारी को उत्तरप्रदेश लाया गया है जो हर बार रियासत क सियासत में अपना वज़न ज़ाहिर करने की कोशिश करते हैं और इस में उन्हें अक्सर नाकामी का मुंह देखना पड़ा है ।

रियासत में बरसर-ए-इक्तदार बहुजन समाज पार्टी भी मुस्लमानों को तरह तरह के लालच दे रही है और उन की ताईद और वोट हासिल करने की अनथक कोशिश कर रही है । कुछ दूसरी और छोटी जमायतें भी हैं जो मुस्लमानों की अहमियत को समझते हुए उन्हें कई तरह के लालच दे रही हैं । दूसरी जानिब बी जे पी है और वो भी मुस्लमानों पर ही तवज्जा मर्कूज़ किए हुए है ।

ताहम उस की तवज्जा मुसबत नहीं बल्कि मनफ़ी है और वो मुस्लमानों को तहफ़्फुज़ात फ़राहम करने मर्कज़ के ऐलान के ख़िलाफ़ मुहिम चला रही है और रास्त यह बिलवासता अंदाज़ में मुस्लमान ही उस की तवज्जा का मर्कज़ बने हुए हैं । बी जे पी मुस्लमानों के ख़िलाफ़ मुहिम के ज़रीया रियासत में अपना हिन्दू वोट बैंक मुस्तहकम करने का मंसूबा रखती है । ये उस की मनफ़ी हिक्मत-ए-अमली है ।

इसने राम मंदिर की तामीर और मथुरा में भी मंदिर की तामीर का मसला अपने इंतिख़ाबी मंशूर में शामिल करते हुए अपना मंसूबा ज़ाहिर कर दिया है ।

रियासत में हर जमात ख़ुद को मुस्लमानों की हक़ीक़ी हमदर्द ज़ाहिर कर रही है और इत्तिफ़ाक़ की बात है कि हर जमात रियासत में किसी ना किसी मरहला पर इक़तिदार में रही है । इस के बावजूद मुस्लमान पसमांदा से इंतिहाई पसमांदा होते गए और इस मुल्क में इन की हालत पसमांदा और पिछड़े हुए तबक़ात से भी अबतर है ।

इस हालत के लिए कोई भी जमात अख़लाक़ी ज़िम्मेदारी क़बूल करने और अपनी नाकामी का एतराफ़ करने को तैयार नहीं है । हर जमात उस की ज़िम्मेदारी दूसरी जमातों पर आइद करके ख़ुद बुरी-उल-ज़मा होना चाहती है । ये सयासी जमातों की मौकापरस्ती और गैर ज़िम्मेदारी है । मुल़्क की सब से बड़ी अक़लियत और 20 करोड़ से ज़्यादा आबादी के साथ इंतिहा-ए-दर्जा की नाइंसाफ़ी आज़ादी के बाद से जारी है और कोई भी जमात उस को रोकने के लिए संजीदा नज़र नहीं आती ।

अब जबकि इंतेख़ाबात हैं तो हर जमात मुस्लमानों की पसमांदगी पर अफ़सोस करते हुए हमदर्दी करती नज़र आती है । अब यू पी के मुस्लिम राय दहिंदों को शऊर का सबूत देते हुए मिल्लत की फ़लाह को पेश नज़र रखते हुए कोई दानिशमंदाना फैसला करना होगा ।