लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जानने वाले बताते हैं कि उनकी कट्टर हिन्दूवादी और विद्रोही प्रवृत्ति ने ही उन्हें यूपी के सत्ता में अर्श तक पहुंचाया। बगावत शुरू होता है उनके कॉलेज के दौर से। कोटदवार के पत्रकार गिरीश तिवारी बताते हैं कि योगी कोटदवार डिग्री कॉलेज, उत्तराखंड में पढ़ते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े थे।
वर्ष 1991 में यहां छात्र संघ चुनाव हो रहा था। उन्होंने महासचिव पद के लिए टिकट मांगा। लेकिन संगठन ने किसी और को मौका दिया।
फिर योगी ने एबीवीपी के खिलाफ बगावत कर दी। वह चुनाव बुरी तरह हार गए। पांचवें नंबर पर आए थे। उन्हें छात्र नेता अरुण तिवारी ने हराया। इस घटना ने योगी का जीवन बदल दिया। फिर वह अपने मामा महंत आदित्यनाथ के पास गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मंदिर आ गए।
पत्रकार टीपीए शाही बताते हैं कि गोरखपुर में भी योगी के बगावती शैली देखने को मिला। वर्ष 2002 में उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया। इसी साल विधानसभा चुनाव में उनके इस तेवर का भाजपा ने सामना किया। गोरखपुर सीट से पार्टी ने उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री रहे शिव प्रताप शुक्ला को उम्मीदवार बनाया जबकि यहां से योगी अपने खास राधा मोहन दास अग्रवाल के लिए टिकट मांग रहे थे।
पार्टी ने अपने कैबिनेट मंत्री को टिकट देना उचित समझा। फिर क्या था योगी ने अखिल भारतीय हिंदू महासभा के टिकट पर उन्हें चुनाव मैदान में उतार दिया।
योगी का वहाँ प्रभाव इतना है कि अग्रवाल चुनाव जीत गए और शुक्ला को तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा। शुक्ला इस समय भाजपा से राज्यसभा सांसद हैं। दिल्ली में भाजपा कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुभाष निगम का मानना है कि आक्रामक और विद्रोही तेवर न होता तो शायद ही योगी को पार्टी यहां तक पहुंचाती। इसीलिए उन्हें जनता ने भी पसंद किया और पार्टी ने भी। भाजपा कि उनसे डर भी लगता है, और उनकी जरूरत भी पड़ती है। आक्रामक रवैये की वजह से ही वह आरएसएस के चहेते भी हैं।
न्यूज़ 18: ओम प्रकाश की रिपोर्ट