हुज़ूर पुरनूर स०अ०व० की इस दुनिया में तशरीफ़ आवरी का दिन तारीख़ आलम का सबसे बड़ा और मुतबर्रिक दिन क़रार पाया। आप के यौम-ए-विलादत बा सआदत की क़दर-ओ-मंजिलत दूसरे अय्याम से बढ़ कर है। आप ( स०अ०व०) की विलादत बासआदत ब वक़्त सुबह सादिक़ मक्का मुअज़्ज़मा में हुई। आप की विलादत से क़ब्ल ही आपके वालिद माजिद हज़रत अबदुल्लाह बिन अब्दुल मुतल्लिब का विसाल हो चुका था। चुनांचे आप के जद्द-ए-अमजद हज़रत अब्दुल मुतल्लिब आपको गोद में लेकर ख़ाना काअबा गए और वहां आपके लिए दुआ मांगी।
हुज़ूर रसूल कोनैन स०अ०व० की वालिदा माजिदा हज़रत बीबी आमना ने आपको अहमद कह कर पुकारा और आपके जद्द-ए-अमजद ने आपकी विलादत बासआदत की ख़ुशी में पूरे क़बीला की दावत की। आपकी विलादत बासआदत बहुत ही मुबारक साबित हुई, फ़ारस का एक हज़ार साला आतिशकदा ठंडा हो गया, क़ैसर-ओ-किसरा के चौदह कंगरे ज़मीन पर आ गिरे।
आपकी तशरीफ़ आवरी से दुनिया की गुमराही के स्याह बादल छट गए, वीराना गुलज़ारों में तब्दील हो गए। आदमी, आदमी का मूनिस और इंसान, इंसान का ग़म गुसार बन गया। इंसाफ़ और मुहब्बत-ओ-उखुवत की राह हमवार हुई और पूरी दुनिया सरसब्ज़-ओ-शादाब हो गई।
हुज़ूर पुरनूर स०अ०व०की ज़ात बाबरकत और आपकी तालीम-ओ-तदरीस ने दुनिया के ज़र्रा ज़र्रा को रोशन-ओ-मुनव्वर कर दिया। इस नूर मुबारक की रौशनी जब हब्श पहुंची तो वहां के बादशाह नजाशी ने हुज़ूर ए अक़्दस स०अ०व० का ख़ादिम बनने का शर्फ़ हासिल किया।
यही नूर जब फ़ारस पहुंचा तो हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ि० जैसे रईसज़ादे को दरबार रिसालत माबऐ का ख़ादिम बना दिया। यही नूर जब रोम पहुंचा तो हज़रत सुहैब रूमी जैसी अज़ीम एल्मर तिब्बत शख़्सियत ने हुज़ूर अनवर स०अ०व० के क़दमों में पनाह लेना बाइस सआदत समझा।
हुज़ूर सरकार ए मदीना स०अ०व० की बिअसत मुबारक से क़ब्ल अहल अरब गुमराही और तारीकियों ( अंधेरो) में भटक रहे थे, पूरी दुनिया माद्दापरस्ती में ग़र्क़ थी और इंसानियत पस्ती की इंतिहा को पहुंच चुकी थी। इलावा अज़ीं फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर, ऐशपरस्ती और माद्दापरस्ती आम थी।
बेहयाई, ज़िनाकारी, शराबनोशी, जूआ बाज़ी, क़त्ल-ओ-ग़ारतगरी, लूट मार, सूदी लेन देन, ग़र्ज़ी ये कि दुनिया की हर बुराई और गुमराही बाम उरूज पर थी। अहले अरब ने गुमराही के मज़बूत क़िले तामीर कर रखे थे, दरिंदगी और जहालत कूट कूट कर इनमें भरी हुई थी। अपनी बीवी और बच्चों को रहन रखना, भेड़ बकरीयों की तरह उनको ख़रीदना और बेचना उनकी आदत बन चुकी थी।
औरतों और बच्चों को बे दरेग़ क़त्ल कर दिया जाता। कुफ्र-ओ-ज़ुल्मत इतनी ग़ालिब आ चुकी थी कि साबिक़ा अदयान की असल सूरत बिलकुल मसख़ हो चुकी थी। ऐसे नाज़ुक लम्हात और इस ज़ुल्मत कदा-ए-जहां में ईमान-ओ-हिदायत की रौशनी फैलाने और इंसान की हिदायत-ओ-रहनुमाई के लिए अल्लाह तबारक ओ तआला ने आक़ाए दो जहां रसूल मक़बूल स०अ०व० को मबऊस फ़रमाया।
इरशाद बारी तआला है कि ऐ नबी! हमने आपको गवाही देने वाला और ख़ुशख़बरी देने वाला और अल्लाह के हुक्म से उसकी तरफ़ बुलाने और रौशन चिराग़ बनाकर भेजा। इसीलिए १२ रबी उल मुनव्वर शरीफ़ की फ़ज़ीलत-ओ-एहमीयत को समझना हमारे लिए अज़हद ज़रूरी है।
इस मुक़द्दस-ओ-मुबारक यौम को तमाम अय्याम से अफ़ज़ल-ओ-बरतर इसीलिए कहा गया है कि इस यौम मुक़द्दस को अल्लाह जल् ए शाना के प्यारे महबूब साहब लौलाक स०अ०व० इस दुनिया में तशरीफ़ फ़र्मा हुए और अल्लाह तआला ने आपको तमाम आलम के लिए रहमत बनाकर रहमतुल आलमीन के लक़ब से सरफ़राज़ फ़रमाया।
आक़ाए नामदार स०अ०व० पर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हिदायत-ओ-नेअमत की तकमील फ़रमा दी, आपको नबी आख़िर-ऊज़-ज़मा बनाकर भेजा और आपकी ज़ात पर नबुव्वत का सिलसिला ख़त्म फ़रमा दिया। अब वही आमाल और इबादात मक़बूल होंगे, जो हुज़ूर नबी करीम स०अ०व० की इताअत-ओ-पैरवी में होंगे।
इरशाद रब्बुल आलमीन है कि अगर तुम अल्लाह से मुहब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी करो, अल्लाह तआला तुम से मुहब्बत फ़रमाएगा |