“रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन की शादी में तारा शाहदेव के रिशतेदारों की तादाद काफी ज़्यादा थी। यूं कहें कि शादी मुकाम में लड़के वालों से भरा पड़ा था। निकाह के दिन भाभी के घर से कोई नहीं आया। निकाह क्या होता है, मैं जानती भी नहीं थी। वहीं निकाह के बारे में जानकारी मिली। रंजीत भइया के घर एक दाढ़ी वाले और एक सफेद पगड़ी वाले नेताजी आते थे। मैं उन्हें नाम से नहीं जानती, लेकिन बातचीत से पता चलता था कि दाढ़ी वाले बाबा कोई वज़ीर हैं। पगड़ी वाले नेताजी भी काफी रोबदार लगते थे। भइया इनकी जमकर खातिरदारी करते थे।मुश्ताक अहमद नामी एक साहब का तो घर पर अक्सर आना जाना लगा रहता था। उन्हें मैं अच्छी तरह पहचानती हूं।”
यह कहना है रंजीत उर्फ रकीबुल के घर नौकरानी का काम करने वाली हरिमति का। 14 साल की हरिमति से सहाफ़िर्यों ने उसके सिल्ली के हेसाडीह गांव जाकर बातचीत की। वह बातचीत के लिए सामने आने में थोड़ा घबड़ा रही थी। समझाने पर वह बातचीत के लिए तैयार हो गई।
रिचा नाम की एक लड़की घर आती थी। तीन-चार बार उसे रंजीत भइया के घर पर देखा। हर बार उसके साथ अलग-अलग लड़की होती थी। भइया ने रिचा का एडमिशन किसी कॉलेज में करा दिया था। इसके बाद उसका घर आना ज्यादा बढ़ गया था। रिचा भइया को सर-सर कह कर बुलाती थी। भइया कहता था कि रिचा उसकी भाभी है, लेकिन रिचा के शौहर को हमलोगों ने कभी नहीं देखा। जानते हैं सर, भइया की बहुत बड़े-बड़े लोगों से दोस्ती थी। लाल, पीली बत्ती वाली गाड़ी से बड़े लोग उनसे मिलने आते थे। भइया के आने का कोई टाइम फिक्स नहीं था। कभी रात को एक-डेढ़ बजे आते थे, तो कभी फोन कर देते थे कि आज नहीं आएंगे।