वेल्फेयर पार्टी ऑफ इंडिया के रियासती कोंवेनर इंजीनियर आफताब अहमद ने ताज्जुब का इज़हार किया है के रघुराजन कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार को पसमान्दा रियासतों की फेहरिस्त में शामिल किए जाने को एक तोहफा के तौर पर देखा जा रहा है। जाबके हकीकत ये है के ये खुसी की बात नहीं बल्कि बिहार के लिए बदनसीबी की बात है। क्योंके हिंदुस्तान की आज़ादी के 66 साल बाद भी बिहार को 10 सबसे ज़्यादा पसमान्दा रियासतों के कतार में नौवें नंबर पर रखा गया है। सिर्फ उड़ीसा का दर्जा बिहार से नीचे है।
बिहार की इस बदतर हालत के ज़िम्मादार वही सियासी पार्टियां हैं जो इस वक़्त इस नामनिहाद तोहफे की तारीफ में रुत्ब हैं। ये वही लोग हैं जिनहो ने रियासत को माज़ी में माली साल अरबों रुपए के माली ईमदाद का बंदरबाट किया है। अगर उन रकमात का ईमानदाराना तौर पर तरक़्कियात कामों के लिए इस्तेमाल होता तो बिहार के आवाम को ये बदतरीन दिन देखने नहीं पड़ते।
बिहार का भी शुमार मुल्क की दूसरी तरक़्क़ी याफ़्ता रियासतों के सफ मे होता। अब ये कहा जा रहा है के रघुराजन कमेटी की रिपोर्ट पर अमलदार आमद के नताईज़ में बिहार को आइंदा सालों में इजाफा रकम मुहैया कराई जाएगी जिससे रियासत की तरक़्क़ी मुमकिन हो सकेगी। उन्होने सवाल किया है के इस बात की क्या गारेंटी है के माज़ी की तरह ही ईमदाद की तौर पर मिलने वाली इस रकम सियासी पार्टियों के लीडरों और रियासत की बदनाम नौकरशाही के जरिये लूट खसोट नहीं होगा।
गालिब उम्मीद है के बिहार की हैसियत बदस्तूर एक पसमान्दा तरीन रियासत के तौर पर बरकरार रहेगी और बिहार के सियासी लीडरान एक बार फिर हाथों में काशकुल ले कर ईमदाद की गुहार लगाते फिरेंगे।