लोक अदालत का सहारा ले बगैर शरायत गैर मनकूला ज़ायदाद का मुंतक़्ली मुमकिन नहीं होगा। लोक अदालत के हुक्म के बावजूद अफसरों को ऐसी गैर मनकूला ज़ायदाद का दाखिल खारिज करने से मना कर दिया गया है। सुलहनामा हुक्म जारी करनेवाले जज के पास नज़रसानी दरख्वास्त दाखिल किया जायेगा। जिससे आमदनी नुकसान की त्लाफ़ी की जा सके।
एक तरफ रियासत हुकूमत जमीन का सर्किल रेट बढ़ाकर अपनी आमदनी बढ़ाने की कोशिश कर रही है। दूसरी तरफ ऐसे चतुर सुजान भी हैं जो रजिस्ट्रेशन खर्च बचाने के लिए लोग लोक अदालत के हुक्म के सिलसिले में बगैर रजिस्ट्रेशन गैर मनकूला ज़ायदाद का मुंतक़्ली और दाखिल-खारिज करा ले रहे थे। इसकी भनक लगते ही हुकूमत ने ऐसी गैर मनकूला ज़ायदाद के दाखिल-खारिज पर रोक लगा दी। रजिस्ट्रेशन महानिरीक्षक की तरफ से तमाम जिला रजिस्ट्रेशन ऑफिस को हिदायत जारी किया गया है कि वे यह कोशिश करें कि ऐसी गैर मनकूला जायदाद के मुंतक्लि से पहले लोक अदालत से भी रजिस्ट्रेशन कराने का हुक्म जारी हो। जिससे महकमा को आमदनी की नुकसान न हो।
क्या हो रहा है खेल?
हाल के दिनों में जमीन का सर्किल रेट काफी बढ़ गया है। लोग अपनी ही ज़ायदाद पर झूठा तनाज़ा खड़ा कर उसपर अपना 12 साल से पहले का कब्जा दिखा देते हैं। इसके बाद लोक अदालत में सुलहनामा दायर होता है। फर्जी दूसरे फरीक़ से समझौता कर अदालत से समझौता की डिक्री ले ली जाती है। मौजूदा नियम के मुताबिक सुलहनामा की डिक्री मिलने के बाद बगैर रजिस्ट्रेशन ऑफिस के यहां से गैर मनकूला ज़ायदाद का दाखिल-खारिज करा लेते हैं। इस गड़बड़ झाले का खुलासा गुजिशता दिनों खज़ाना महकमा के चीफ़ सेक्रेटरी के बेगूसराय दौरे के दौरान हुआ। तफ़सीश के बाद पता चला कि इस तरह से हुकूमत को हर साल करोड़ों के आमदनी से हाथ धोना पड़ रहा है।