रबीउल अव्वल के महीने का पैगाम और इसके तकाजे

(मुफ्ती सलमान अकबर) रबीउल अव्वल का महीना एक बार फिर अपनी तमामतर बहारों के साथ आया है। यह वह पुर बहार मुबारक महीना है जिसमें इस दुनिया की सबसे मुकद्दस हस्ती, सबसे बाबरकत शख्सियत, सबसे सच्चे, सबसे पाक दामन, दुनिया की तमामतर खूबियों और कमालात के सबसे अव्वलीन और सही तरीन मिस्दाक सबसे आखिरी नबी और रसूल हजरत मोहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की इस दुनिया में तशरीफ आवरी हुई।

यह वही मुबारक महीना है जिसमें आप ((सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम)) की विलादत हुई लेकिन अगर सरसरी तौर पर नजर दौड़ाई जाए तो यह मुबारक महीना ‘‘याद आवरी’’ है। उस अहद की जो हर मुसलमान तौहीद व रिसालत की गवाही देते हुए करता है, ‘‘मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद बनने के लायक नहीं और मोहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) अल्लाह के बंदे और रसूल है।

यही वह अहद है जिसे अपने दिल में पुख्ता करते ही मजकूरा आयत का मजमून अपनी तमामतर अहमियत के साथ हमारी तरफ मुतवज्जो हो जाता है और हम से मुखातिब होता है कि जब तुम ने मोहम्मद अरबी (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) को अल्लाह का सबसे आखिरी रसूल मान लिया तो अब दुनिया व आखिरत की भलाई के लिए दोनों जहानों में कामयाबी हासिल करने के लिए तुम्हारे पास इस मोहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के सिवा कोई नमूना अमल नहीं।

यही नमूना अमल है जिसके बचपन से तुम अपने बच्चों का बचपन संवारोगे। यही वह नमूना अमल है जिससे तुम अपनी औलाद की अद्देड़ उम्री और बुढ़ापे की जिंदगी संवारोगे। यही वह नमूना अमल है जिस से तुम अपनी दुनिया और आखिरत संवारोगे और यही वह नमूना अमल है जिससे तुम अल्लाह तआला की कुर्बत हासिल करके हमेशा-हमेशा के लिए जन्नती बन जाओगे।

गौर व फिक्र का मकाम है। एक तरफ इतनी जबरदस्त दावते फिक्र व अमल जिसके मुखातिब सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोग हैं चाहे वह मुसलमान हों या न हों। ऐसी दावत जो दुनिया में अम्न व सलामती की जामिन है। ऐसी दावत जो दुनिया में भाईचारे और मोहब्बत की जामिन है।

ऐसी दावत जो आलमी सतह पर एक दूसरे से बेहतरीन ताल्लुकात की जामिन है। ऐसी दावत जो दुनिया में बेहतरीन सियासी निजाम की जामिन है जो पूरी दुनिया में सबसे बेहतरीन इंसाफ और कानूनी निजाम की जामिन है जो बेहतरीन इंफिरादी और इज्तिमाई निजामे जिंदगी की जामिन है जो अपने दामन में हर एक के लिए सैकड़ों-हजारों कामयाबियां लिए बल्कि कामयाबियां ही कामयाबियां लिए सबके सामने मौजूद हैं साफ, सुथरा ठंडे मीठी पानी का सरचश्मा जिससे सैराब होकर पीने की प्यास बुझाने की हर एक को इजाजत है किसी पर कोई पाबंदी नहीं, कोई रूकावट नहीं जो चाहे फायदा उठाए और जितना चाहे फायदा उठाए।

क्या यह गलत है कि आलमी सतह पर ही नहीं बल्कि मुल्की सतह पर भी हम कई हिस्सों और टुकड़ों में बंट चुके हैं। क्या यह गलत है कि हम जेहनी व फिक्री गिरावट का शिकार होते चले जा रहे हैं। हमारे उलूम और तरक्की जेहनी व फिक्री सतह पर ठहराव का शिकार हो चली है। हम अलहाद व लादीनियत के सैलाब में बहते-बहते ऐसे बेबस हो गए हैं कि हर कस व नाकस दुनिया के सबसे मुकम्मल व मुकद्दस बल्कि दुनिया में पाई जाने वाली हर खूबी और कमाल के सही तरीन मिस्दाक पर उंगलियां उठाने को अपना मशगला बनाए हुए हैं।

हमारी फिक्री व जिस्मानी बेबसी की वजह सिर्फ और सिर्फ हद से बढ़ी हुई गफलत और लायानी कामों में मशगूलियत है। यह मुबारक महीना इसी गफलत और बेबसी की गहरी नींद से झिझोंड कर हमें जगा रहा है यह हमें जां फरोज मजदा सुना रहा है कि उठ बैठो! अभी वक्त है। हम अब भी इस दावत पर लब्बैक कह सकते हैं। हम अब भी अक्ल व दानिश के सरासर हिदायत व रहमत के इस साफी सरचश्मे से सैराब हो सकते हैं। हम अपनी महरूमियां दूर करने की सकत रखते हैं। हम अब भी ऐसी छलांग लगाने की ताकत रखते हैं जो हमें जिंदगी के हर शोबे में मदे मुकाबिल से आगे बहुत आगे पहुंचा दे।

सच तो यह है कि साहबे जमाल व कमाल, रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की बेमिसाल दावत का असर हमारी जिंदगियों में कहीं दिखाई नहीं देता न इबादात में, न अखलाकियात में, न मामलात में न इंफिरादी जिंदगी में न इज्तिमाई जिंदगी में, न सियासी जिंदगी में बल्कि जिंदगी के किसी भी पहलू में हमने अपने प्यारे नबी (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) का नमूना मुकम्मल तौर पर नहीं अपनाया।

हालांकि आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ही सबसे ज्यादा नर्म दिल, बाअखलाक, सखी, पाक दामन, अच्छे पड़ोसी, अच्छे दोस्त, अच्छे शौहर, अच्छे ताजिर, अच्छे रहनुमा, अच्छे मुशीर बल्कि हर शोबे में सबसे आगे थे।

हजरत अनस (रजि0) फरमाते हैं कि मैंने कभी कोई कपड़ा चाहे वह बारीक रेशम हो या मोटा आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की मुबारक हथेली से ज्यादा नर्म नहीं देखा और न कोई खुशबू ऐसी सूंघी जो आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के मुबारक पसीने से ज्यादा उम्दा महक रखती हो। (सही बुखारी)

एक और मौके पर फरमाया- मैंने मुसलसल दस साल आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की खिदमत की लेकिन कभी आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने उफ तक न कहा। जो काम मैं कर गुजरा था। आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने कभी न कहा कि तुमने यह काम क्यों किया। जो काम मैंने नहीं किया था कभी आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने न दरयाफ्त फरमाया कि यह काम क्यों नहीं किया। (सही बुखारी)

हजरत अब्दुल्लाह बिन अल हारिस (रजि0) फरमाते हैं मैंने आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) से ज्यादा किसी को मुस्कुराते नहीं देखा। (तिरमिजी)
हजरत अनस (रजि0) फरमाते हैं एक बार मैं आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के साथ कहीं जा रहा था। आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने मोटे किनारों वाली चादर ओढ़ रखी थी इतने में एक देहाती सामने आ गया और चादर को पकड़ कर जोर से अपनी तरफ खींचा। मैंने देखा कि आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के मुबारक कंद्दों के बीच चादर के किनारों से निशान बन गए थे फिर कहने लगा तुम्हारे पास अल्लाह का जो माल है उसमें से मेरा हिस्सा भी दो।

नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) उसकी तरफ मुतवज्जो हुए मुस्कुराए और उसे अतिया देने का हुक्म फरमाया। (बुखारी)
हजरत अब्दुल्लाह बिन रवाहा (रजि0) ने कितनी प्यारी बातें कही हैं जिनका तर्जुमा है- हर रोज जब सुबह होती तो रौशनी के साथ कोई नेकी सामने आती है अल्लाह के रसूल हमारे बीच मौजूद हैं जो इस की किताब पढ़कर हमें सुना रहे होते हैं। उन्होंने हमें नाबीना से बीना कर दिया इसलिए अब हम दिल से यकीन रखते हैं कि वह जो फरमाते हैं वह होकर रहेगा।

जब मुशरिकीन के पहलू बिस्तरों पर पड़े पड़े भारी बोझ बन जाते हैं उस वक्त आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) अपने बिस्तर से दूर अपने रब के हुजूर रात गुजार रहे होते हैं। हजरत अली (रजि0) फरमाते हैं जब कभी दो फौजें आपस में टकराती तो हम आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के पीछे छिपते थे क्योंकि दुश्मन के करीब आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) से ज्यादा कोई न होता था। (मसनद अहमद)

यह और ऐसे ही दीगर कई वाक्यात से सीरते तैयबा भरी पड़ी है जो जिंदगी के हर पहलू पर रहनुमाई का फरीजा अंजाम दे रही है। सोंचने की बात यह है कि क्या हम इन तालीमात पर अमल करने के लिए तैयार हैं। क्या हम अपनी इस्लाह करने के लिए तैयार हैं? क्या हम खुलूस नीयत से इस साफी चश्मे से सैराब होना चाहते हैं? क्या हम बेबसी और गफलत की मोटी चादर अपने ऊपर से उतार फेंकने को तैयार हैं? क्या हम इस आलमी दावत पर लब्बैक कहने को तैयार हैं जो सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि हर इंसाफ पसंद इंसान के लिए माहे रबीउल अव्वल एक बार फिर हमारे सामने है।

अपनी तमामतर बहारों और तमामतर रौनकों और हुस्न व कमाल के साथ अपनी तमामतर अजमत के साथ हम पर साया फगन है। यही वह मुबारक महीना है जिसमें दुनिया के सबसे सच्चे इंसान हक और सच की दावत लेकर हम इंसानों की भलाई के लिए इस दुनिया में आए। यही वह महीना है जिसमें दुनिया के सबसे ज्यादा सच्चे और बाकमाल इंसान हमें दावत देते देते इस दुनिया से पर्दा फरमा गए। आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की दावत पर लब्बैक कहना आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की इत्तबा और पैरवी ही दर हकीकत दीन व दुनिया में हमारी कामयाबी की जामिन है और आखिरत में निजात की कलीद है।

—————-बशुक्रिया: जदीद मरकज़