नांदेड़, 02 अप्रेल: ए लोगों जो ईमान लाएं हों अल्लाह से डरो, और हर शख़्स ये देखे कि इस ने कल के लिए किया सामान किया है। अल्लाह से डरते रहो, अल्लाह यक़ीनन तुम्हारे इन सब आमाल से बाख़बर है जो तुम करते हो। उन लोगों की तरह ना होजाओ जो अल्लाह को भूल गए तो अल्लाह ने उन्हें ख़ुद अपना नफ़्स भुला दिया, यही लोग फ़ासिक़ हैं। दोज़ख़ में जाने वाले और जन्नत में जाने वाले कभी यकसाँ नहीं हो सकते। जन्नत में जाने वाले ही असल में कामयाब हैं। अगर हम ने ये क़ुरआन किसी पहाड़ पर भी उतार दिया होता तो तुम देखते कि वो अल्लाह के ख़ौफ़ से दब जाता और फट पड़ता।
ये मिसालें हम लोगों के सामने इस लिए बयान करते हैं कि वो अपनी हालत पर ग़ौर करें। वो अल्लाह ही है जिस के सिवा कोई माबूद नहीं, ग़ायब और ज़ाहिर हर चीज़ का जानने वाला, वही रहमान और रहीम है। (तर्जुमा सूरा हश्र )मज़कूरा सूरह हश्र की आयात नंबर 18 ता 21की तिलावत-ओ-तर्जुमा मुअल्लिम अबदुर्रहीम साहब ने पीर बाद नमाज़े मग़रिब मस्जिद अनवरुल मसाजिद में दरसे क़ुरआन के तहत सुनाया। और उस की तशरीह करते हुए फ़रमाया कि रब्बुलइज़्ज़त अपने कलाम पाक में अहले ईमान से मुख़ातिब होकर फ़रमाता है कि ए मेरे बंदों तुम मेरी ही इबादत इख़तियार करो और तुम मेरा ही ख़ौफ़ अपने दिलों में प्रवान चढ़ाओ।
इसी तरह हर शख़्स को चाहिए कि वो इसी दुनया में रह कर कल आख़िरत के लिए क्या कुछ नेक आमाल किया हैं उस की फ़िक्र करें। अहले ईमान को चाहिए कि वो उस चंद रोज़ा दुनयवी ज़िंदगी में मसरूफ़ होकर अपनी आख़िरत की दाइमी ज़िंदगी से वो ग़ाफ़िल ना हों। अल्लाह तआला इंसानों के तमाम ज़ाहिर-ओ-पोशीदा आमाल से बाख़बर हैं। अल्लाह तआला सूरह हश्र की आयत में मज़ीद इरशाद फ़रमाता है कि अहले ईमान उन ग़ाफ़िल लोगों की तरह ना होजाओ जिन्होंने अपने रब को भुला कर चंद रोज़ा दुनयवी ज़िंदगी के ऐश-ओ-आराम की ख़ातिर अपनी दाइमी ज़िंदगी को भला चुके हैं।
इन ग़ाफ़िल लोगों को अल्लाह तआला शैतान मर्दूद के हवाले कर ख़ुद उन्ही के नफ़्सपरसती में मुबतला करदेता है। मुअल्लिम अबदुर्रहीम ने सूरह हश्र की इन आयात की तशरीह फ़रमाते हुए कहा कि जिस तरह से दिन और रात, नाबीना शख़्स और आंखें रखने वाला शख़्स में यकसानियत नहीं हो सकती बिलकुल इसी तरह दोज़ख़ में जाने वाले और जन्नत में जाने वाले कभी यकसाँ नहीं हो सकते।