हमारे प्यारे नबी (स०अ०व०) का इरशाद मुबारक है लेने वाले हाथ की बनिसबत देने वाला हाथ बेहतर है । इस हदीस मुबारका का मफ़हूम ये है कि अल्लाह ताला के हाँ मांगने या किसी के आगे हाथ फैलाने से बेहतर ये है कि किसी को दिया जाय और यही अमल बारगाह रब उल इज़त में बंदा की बख़शिश-ओ-मग़फ़िरत का सबब बनता है । इंसान मांगने की बजाय मेहनत करता है तो वो बात कुछ और होती है ।
मेहनत इंसान के लिये सेहत-ओ-इज़्ज़त दौलत-ओ-शौहरत का बाइस बनती है । लेकिन मेहनत इसी होनी चाहीए जिस में दियानतदारी इमानदारी हो और आप जो कमा रहे हैं इस कमाई की पाई पाई हलाल हो । अगर आप की कमाई हलाल होती है तो ये सब से बड़ी कामयाबी होगी वर्ना दौलत तो मिल जाएगी लेकिन ज़िंदगी से बरकत ख़त्म हो जाएगी और लाख दौलत मंद होने के बावजूद ज़िल्लत इस का मुक़द्दर बन जाएगी ।
रमज़ान उल-मुबारक के दौरान कई तलबा-ए-ईद के मसारिफ़ के लिये मुख़्तलिफ़ कारोबार करते हैं जब कि कुछ एसे गरीब अफ़राद या बच्चे भी होते हैं जो इस माह बाबरकत में पूरे एक माह तक पत्थर गट्टी और चारमीनार के दरमियान मुख़्तलिफ़ अशिया-ए-फ़रोख़त करते हैं ।
राक़िम उल-हरूफ़ ने भी सोचा कि चलो आज एसे ही मेहनती अफ़राद और नौजवानों से बात करते हैं जिन्हों ने किसी के आगे हाथ फैलाने की बजाय मेहनत की कमाई का बहतरीन ज़रीया तिजारत का इंतिख़ाब किया है । हम ने मुख़्तलिफ़ मुक़ामात पर कई उसे नौजवानों को देखा जो कॉलेजस और स्कूलस में तालीम हासिल कर रहे हैं ।
लेकिन रमज़ान उल-मुबारक के दौरान बंडियों , टेबलों वगैरह पर मुख़्तलिफ़ एशिया-ए-रख कर कारोबार कर रहे । उन लोगों का मक़सद यही है कि ईद के मसारिफ़ का इंतिज़ाम होजाए । क़ाज़ी पूरा के साकिन लईक के मुताबिक़ चैतन्य कॉलिज से वो एंटर मेडेट कर रहे हैं । वालिद किसी होटल में मैनिजर हैं ।
ये लड़का ख़वातीन के मैक अप का सामान जैसे लिप स्टिकस , चूड़ियां , बालियां वगैरह फ़रोख़त करता है । तीन बजे बाज़ार पहुनचकर 12 बजे रात तक कारोबार में मसरूफ़ रहने वाले लईक गुज़शता 3 बरसों से ये काम कर रहे हैं । हर रमज़ान में लईक यही कारोबार करते हैं ।
इन का कहना है यहां जगह बहुत ही मुश्किल से मिलती है । टेबल पर माल रखा हुआ है । ट्रैफिक पोलीस के आते ही माल उठाकर भागना पड़ता है । बारिश होजाए तो सहारे की तलाश करनी पड़ती है । अस्र-ओ-मग़रिब और इशा की नमाज़ों के लिये जाने पर दुबारा जगह मिलनी मुश्किल होती है ।
में अपने मामूं से पैसे लेकर ये कारोबार कर रहा हूँ । उन्हों ने मज़ीद बताया कि वो सारा माल बेगम बाज़ार से खरीदते हैं । ये लड़का भी हमें मुतवस्सित (मिडिल)ख़ानदान का ही नज़र आया । पत्थर गट्टी में अपनी मिल्लत के मेहनती नौजवानों से बात चीत के दौरान दूसरे लोगों की तरह हमारे नज़र भी एक मासूम शक्ल-ओ-सूरत के हामिल 13 साला मुहम्मद उबैद उलरहमन साकिन मुस्तफ़ा नगर पर पड़ी 7 वीं जमात का ये तालिब-ए-इल्म अपने ख़ालाज़ाद भाई की दुकान पर काम करता है ।
दोपहर ढाई या तीन बजे वो पत्थर गट्टी पहूंच जाता है । इंतिहाई मासूम-ओ-ख़ुश अख़लाक़ ये लड़का घर में बड़ा है चूड़ियां वगैरह फ़रोख़त करता है । मुहम्मद उबैद अलरहमन ने अपने ख़्यालात का इज़हार युं क्या मैं गुज़शता साल भी अपने ख़ालाज़ाद भाई का हाथ बटाने आया था और इस साल भी यही काम कर रहा हूँ । बड़ा हो कर इनजीनयर बनने का ख़ाहां हूँ । पत्थर गट्टी ता चारमीनार गुज़रने वालों की नज़र उस लड़के पर ज़रूर पड़ती होगी ।
चेहरा और अंदाज़ गुफ़्तगु से मुहम्मद उबैद अलरहमन किसी अच्छे ख़ानदान का लग रहा था । इस हुजूम में कई पाकेटमार भी होते हैं । मेहनती लोगों की ग़फ़लत का फ़ायदा उठाने की ताक में रहते हैं । बहरहाल तालीम याफ्ता नौजवानों और तालिब-ए-इल्मों को मेहनत करते हुए हलाल कमाते देख कर एसा लगा कि हमारी मिल्लत में शऊर जाग रहा है और इस से अंदाज़ा होगया है कि कारोबार छोटा हो या बड़ा कारोबार होता है और इस में बरकत होती है ।
तिजारत को अपनाते हुए ना सिर्फ ये नौजवान अपनी मदद कर लेते हैं बल्कि अपने ख़ानदानों की मदद का बाइस भी बने रहते हैं । कोई काम छोटा नहीं होता इस लिये कारोबार करने में शर्माने या घबराने की ज़रूरत ही नहीं । किसी के आगे हाथ फैलाने चोरी-ओ-बे इमानी से रोटी का इंतिज़ाम करने हलाल के लुक़मा से महरूम होने की बजाय छोटा सा कारोबार करलें तो यक़ीनन हमारे लिये और सारी मिल्लत के लिये फ़ायदेमंद साबित होगा ।।