(मौलाना महमूद आलम कासमी) अल्लाह तआला ने यह रमजानुल मुबारक का महीना उम्मते मुस्लेमा को अता फरमाया है। इस वांस्ते हम पर इसका शुक्र अदा करना वाजिब है। बहुत ही खुश किस्मत हैं वह लोग जिनकी जिंदगी में रमजान का महीना आए और वह इसके आदाब और हुकूक अदा करे जो इसके हुकूक अदा करते हैं उनके गुनाह माफ हो जाते हैं।
शायद जिंदगी में दूसरा महीना आए या न आए इस वास्ते इसकी जितनी कद्रदानी हो सके करनी चाहिए। अल्लाह तआला ने इस महीने का नाम रमजान रखा है।
रमजान के मायनी है जला देने वाला। मालूम हूआ कि यह महीना मुसलमानों के तमाम गुनाहों को जला देता है और यह महीना अल्लाह तआला ने इस वास्ते मुकर्रर फरमाया है कि इंसान मुख्तलिफ काम करता रहता है कभी कभी कुछ नाजायज और गलत काम हो जाते हैं तो जो बुरे काम और गुनाह होते हैं उससे दिल पर नुक्ता लग जाता है अगर वह सच्ची तौबा कर लेता है तो वह द्दुल जाता है वरना लगा रहता है और अगर दूसरी बार गुनाह करता है तो दूसरा नुक्ता लग जाता है यहां तक कि जो गुनाह न छोड़े तो उसको इतने नुक्ते लगते हैं कि सारे दिल को घेर लेते हैं और पूरा दिल स्याह हो जाता है। इस वास्ते इस नुक्ते को तौबा से द्दो लो।
फिर मरते वक्त ऐसे लोगों को तौबा की तौफीक भी नहीं होती। अल्लाह ने उसकी मगफिरत के लिए यह महीना मुकर्रर किया। इसमें दोजख के सब दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत के सब दरवाजे खोल दिए जाते हैं, बड़े बड़े सरकश शैतान कैद कर लिए जाते हैं और लोगों में अल्लाह की तरफ से फरिश्ते निदा करते हैं जमीन के हर खित्ते,बस्ती,गली कूचे हर दरवाजे पर ऐ नेकी के तलबगार तू मुतवज्जो हो जा और ऐ बुराई के तलब करने वाले तू रूक जा।
अल्लाह के बंदे जिन के दिल साफ व शफ्फाफ हैं वह इसको सुनते हैं और रात को जागते हैं बल्कि फरिश्तों की एक जमात है वह गलियों में खड़े हो जाते हैं वह अल्लाह से सिफारिश करते हैं कि ऐ अल्लाह जो इस वक्त जागते हैं तू उनको बख्श दे। गरज कि इस स्याही को द्दोने के लिए जो ग्यारह महीनों में लगती है ग्यारह महीनों के बाद यह एक महीना तौबा व इस्तिगफार के लिए है।
इस महीने में अज्र व सवाब को बढा दिया जाता है, नफिलों का सवाब बाकी महीनों के फर्ज के बराबर और इस महीने में फर्ज बाकी महीनों के सत्तर फर्जों के बराबर कर दिया जाता है। इस वास्ते इंसान को चाहिए कि मौका गनीमत जान कर इसमें गफलत न करे इसमें जितनी नेकी हो सके बटोरे।
इस वास्ते इसको रमजान कहते हैं। रमजान इतना मुबारक महीना है कि अल्लाह ने इसकी अपनी तरफ निस्बत की है। फरमाया-यह अल्लाह तआला का महीना है। इससे मालूम हुआ कि इस महीने को बड़ी खुसूसियत हासिल है। इस महीने में तीन अशरे हैं पहला अशरा रहमत का, बीच का अशरा मगफिरत का और आखिरी अशरा दोजख से खलासी का है।
पहले अशरे में अल्लाह तआला की दिन रात रहमत बरसती है। ऐ लोगो जो रोजा का हक अदा करे, खेती करने वाले खेती करे मुलाजमत और नौकरी करने वाले लोग नौकरी करे उनका हर काम इबादत हो जाता है। इस वास्ते रोजेदार को चाहिए कि रोजा के हुकूक अदा करे। रोजे के हुकूक यह हैं -जबान की हिफाजत, झूट न बोले, चुगली न करे, गीबत न करे, बदगोई बदकलामी, झगड़ा वगैरह सब चीजें इस में शामिल हैं। रोजेदार को चाहिए कि जबान की तमाम बुरी बातों से हिफाजत करें।
दूसरे, अपने हाथ को महफूज रखे चोरी न करे नाजायज चीजों को न पकड़े। तीसरे, अपने पैरों को नाजायज कामों की तरफ चलने न दे। मसलन सिनेमा तमाशा फाजिर व फासिक की मजलिस की तरफ चलना गुनाह है। चैथे, दिल में बुरे ख्यालात न लाए। तो इस अशरे में बारिश की तरह अल्लाह की रहमत बरसती है। अब बारिश के कतरे शुमार नहीं किए जा सकते। इसी तरह चारों तरफ से अल्लाह की रहमत बरसती है।
दूसरा अशरा मगफिरत का है।जो गुनाह होते हैं माफ हो जाते हैं। बीसवें दिन सब माफ हो जाते हैं। अलबत्ता बंदों के हुकूक माफ नहीं होते। दूसरी सूरत यह है कि उस आदमी के सामने जाकर माफी मांगे कि मैंने तेरा फलां नुक्सान किया तू माफ कर दे।
अगर माफ न करे तो रकम अदा कर दे, नमाज अगर उसके जिम्मे रह गई है तो उस को कजा करे रोजे रह गए हैं तो उनकी भी कजा करे बाकी जो गुनाह कर लिए बुराई का इर्तिकाब हो गया है तो उसका बदला यह है कि तनहाई में नदामत के साथ तौबा कर ले, सब माफ हो जाएंगे।
हाथ उठाए वह खाली नहीं जाएगा। अल्लाह तआला फरमाता है ऐ बंदे जिस वक्त तू हाथ उठाता है तेरे इतने गुनाहं हैं जिनसे आसमान व जमीन के बीच जो खला है यह भी भर जाए तो मैं उनको भी माफ कर देता हूं। मुझे अपने बंदे के हाथ वापस करते हुए शर्म आती है।
फिर वह जन्नत का मुस्तहक हो जाता है। अल्लाह की रहमत यह है कि दुनिया के जितने काम हैं सबको इबादत में दाखिल माना गया है।
अब सवाल यह है कि हदीस में आता है कि इसमें सरकश शैतान कैद कर दिए जाते हैं फिर इसके बावजूद लोग बुराई जिना बदकारी चोरी क्यों करते हैं। उलेमा ने जवाब दिया कि सरकश शैतान तो कैद कर दिए जाते हैं छाटे छोटे बाकी रह जाते हैं वह वसवसा डालते हैं और बुरे ख्यालात में मुब्तला करते हैं तो यह गुनाह उनकी वजह से होते हैं।
शाह इस्हाक फरमाते हैं कि गुनाह दो वजह से होते हैं एक शैतान की वजह से यह लाहौल से भाग जाता है। अजान व अकामत से भी भाग जाता है। शैतान बड़ा दुश्मन होने के साथ कमजोर भी उतना ही है। दूसरी चीज है नफ्स। यह नफ्स हर वक्त मौजूद होता है। लाहौल वगैरह से नहीं भागता।
यह हर वक्त इंसान को बुराई की तरगीब देता है। तो इसकी वजह से भी गुनाह होते हैं। फिर अल्लाह की देन है यह है कि दोजख के दरवाजे बंद कर दिए ताकि लोग नेकी कर सकें और दोजख से बच सकें। जब हम रोजा खोलते हैं तो उस वक्त अल्लाह तआला सात लाख गुनाह गारों को माफ करते हैं।
रोजेदारों के रोजा खोलने की खुशी में और जुमा के दिन इतने गुनाहगारों को माफ कर देते हैं जितने हफ्ते में सारे माफ हुए थे और रमजान के आखिरी दिन इतने लोगों को बख्शते हैं जितने हर हर दिन में और हर हर जुमे को उस आखिरी दिन में अल्लाह की रजा नसीब होती है।
बशुक्रिया: जदीद मरकज़