रमज़ान में नमाज़ पढने से फिर रोके गए मुसलमान, जुमा पर नहीं कर पाये इबादत

दिल्ली से सटे गुरुग्राम में  एक बार फिर शुक्रवार के दिन चार-पांच मुस्लिम मजार के समीप नमाज पढ़ने के लिए पहुंचे तो करीब 50 स्थानीय हिंदू युवाओं ने उन्हें कथित तौर पर धमकी दी और कहा कि मुस्लिम वहां नमाज ना पढ़ें।

खबर के मुताबिक कुछ हिंदू संगठनों के लोगों ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को मजार के पास नमाज अदा करने से रोक दिया गया। इसके बाद से इलाके में तनाव है और मुस्लिम समुदाय के लोग खासे नाराज भी है।

हरियाणा वक्फ बोर्ड ने की स्थाई समाधान की कोशिश, जमीनों की तलाश शुरू नहीं पढ़ने दी गई जुमे की नमाज पूरी घटना गुरुग्राम से तीस किलोमीटर दूर पटौदी जाने वाले रास्ते पर भोरा ककलान गांव की है, जहां बीते शुक्रवार (18 मई) को दो समुदायों के बीच पैदा हुए से विवाद से माहौल तनावपूर्ण है। इस इलाके में करीब तीस हजार लोगों की आबादी रहती है।

जानकारी के मुताबिक, इलाके में एक डाकघर के पास एक मजार है और पूरी घटना इसी मजार के पास की है। 50 की संख्या में हिंदू युवाओं ने धमकाया जानकारी के मुताबिक, बीते शुक्रवार के दिन चार-पांच मुस्लिम मजार के पास नमाज पढ़ने के लिए पहुंचे तो करीब 50 स्थानीय हिंदू युवाओं ने उन्हें कथित तौर पर धमकी दी और कहा कि मुस्लिम वहां नमाज ना पढ़ें।

इसके बाद काफी देर तक मुस्लिम युवा वहीं मजार के पास खड़े रहे, लेकिन उन्हें नमाज अदा नहीं करने दी गई और आखिर में उनकी जुमे की नमाज छूट गई। खुले में नमाज पढ़ने पर सीएम खट्टर ने तोड़ी चुप्पी, ‘मस्जिद या ईदगाह में ही पढ़ें’ पुलिस की मौजूदगी में भी रोक दी गई नमाज एक अंग्रेजी अखबार की खबर के मुताबिक, स्थानीय लोगों ने बताया है कि शुरू में पचास युवा मजार के पास पहुंचे, बाद में इनकी संख्या 200 के करीब पहुंच गई। तब दोपहर के करीब 12 बज रहे होंगे।

माहौल बिगड़ता देख करीब 12:30 बजे पुलिस वहां पहुंची, लेकिन इसके बाद भी लोगों को नमाज नहीं पढ़ने दी गई। इस तरह रमजान के पहले जुमे के दिन हम नमाज नहीं पढ़ सके। गुरुग्राम: नमाज विवाद के पीछे की सियासत की सच्‍चाई क्‍या है? इससे पहले भी घट चुकी है ऐसी घटना आपको बता दें कि गुरुग्राम में नमाज को लेकर हुआ विवाद ये कोई पहला नहीं है, बल्कि इससे पहले भी गांव में मुस्लिम को यहां नमाज पढ़ने से रोका गया है। इससे पहले भी गांव में इस तरह की घटनाएं सामने आ चुकी है।

साल 2013 में गांव के हिंदुओं ने मुस्लिमों से कहा कि वह शुक्रवार की नमाज के लिए गांव के बाहर से किसी मौलवी या इमाम को ना बुलाएं। इसका परिणाम यह निकला की करीब एक साल तक गांव में मुस्लिम शुक्रवार यानी जुमे की नमाज नहीं पढ़ सके। हालांकि साल 2014 में नमाज फिर से शुरू की गई। बताया जाता है कि गांव के हिंदुओं ने सीधे तौर पर उन्हें नमाज नहीं पढ़ने के लिए कहा, बल्कि कहा गया कि हम किसी और गांव से मौलवी या इमाम को नहीं बुला सकते हैं।

इसका मतलब ये हुआ कि जुमा और रमजान में नमाज नहीं पढ़ सकते हैं। शख्स ने आगे बताया कि बाद में इस मामले को सुलझा लिया गया। और वह पिछले दो सालों से बिना किसी परेशानी की नमाज पढ़ रहे हैं, लेकिन पिछले शुक्रवार को एक बार फिर से नमाज को लेकर यहां विवाद हो गया। ऐसी घटनाओं को लेकर गांव के लोगों का कहना है कि हम अपनी धार्मिक आस्था की आजादी चाहते हैं। नमाज पढ़ने की आजादी चाहते हैं। हम इसके अलावा कुछ नहीं चाहते।

हमारे बच्चे और हमारी पत्नियां हमारे लिए डरते हैं। अगर यहां का माहौल और भी बदतर हो जाता है तो हम गांव छोड़ देंगे और कहीं चले जाएंगे।