राजनाथ सिंह के अंग्रेज़ी पर तबसरा , कांग्रेस की तन्क़ीद का निशाना

एन डी ए दौर की शरह तरक़्क़ी के मौजूदा शरह तरक़्क़ी से तक़ाबुल पर तन्क़ीद: मनीष तीवारी
नई दिल्ली 19 जुलाई (पी टी आई) सदर बी जे पी राज नाथ सिंह पर अंग्रेज़ी की तरवीज-ओ-इशाअत से हिन्दुस्तानी सक़ाफ़्त को नुक़्सान पहूंचने के तबसरा पर तन्क़ीद करते हुए कांग्रेस ने आज कहा कि अप्पोज़ीशन पार्टी ख़ुद ही अपनी नज़रियाती दस्तावेज़ बराए अवाम को आउट सोर्स करचुकी है और ये दस्तावेज़ सिर्फ़ अंग्रेज़ी अवाम के लिए तैय्यार की गई है।

मर्कज़ी वज़ीर‍-ए‍-इत्तेलात-ओ-नशरियात मनीष तीवारी ने कहा कि उन्हें बाअज़ वक़्त अपने दोस्तों पर हंसी आती है। एक तरफ़ तो वो अपनी नज़रियाती दस्तावेज़ सिर्फ़ उनके लिए तैय्यार करते हैं जो अंग्रेज़ी के अलावा कोई और ज़बान नहीं बोल सकते। दूसरी तरफ़ वो अह्द वुसता की तरफ़ वापसी की बातें करती है।

ये मुनाफ़क़त नहीं तो और किया है। मनीष तीवारी ने कहा कि स्कूल में दाख़िले से पहले बच्चों को इंग्लिश सिखाई जाती है ताकि वो इंटरनेट इस्तेमाल करसकें और दीगर ममालिक में भी अपना मुक़ाम बना सके। ज़बान पर तनाज़ा पैदा करने की ये कोशिश या ये कहना कि एक ज़बान बेहतर या बदतर है,दूसरी ज़बान के, मुल्क को इस्तिहकाम अता नहीं करता और उसकी किसी ज़िम्मेदार सियासी पार्टी से तवक़्क़ो नहीं रखी जा सकती।

मर्कज़ी वज़ीर‍-ए‍-इत्तेलात-ओ-नशरियात ने मईशत के मसाइल से हुकूमत के निमटने के तरीक़े पर बी जे पी क़ाइद यशवंत सिन्हा की तन्क़ीद को भी मुस्तर्द कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें बाअज़ औक़ात हंसी आती है कि आलमी मईशत माहौल किस तरह का है और हमारी कोई भी ज़िम्मेदार सियासी पार्टी पाँच ता छः फ़ीसद मआशी शरह तरक़्क़ी का निशाना हासिल नहीं कर सकती जबकि दुनिया की बड़ी मईशतें मनफ़ी और बमुश्किल मुसबत शरह तरक़्क़ी हासिल कर पा रही हैं।

मनीष तीवारी ने कहा कि वज़ीर-ए-आज़म ने इन बातों की निशानदेही की है जो इमकानी तौर पर अच्छी नहीं हैं या चंद साल पहले अच्छी नहीं थीं। उन्होंने कहा कि हुकूमत हिन्दुस्तान की आला शरह तरक़्क़ी के अहया की पाबंद है। रास्त ग़ैर मुल्की सरमायाकारी के शोबे में इस्लाहात का हाल ही में ऐलान किया गया है।

काबीनी कमेटी बराए इनफ्रास्ट्रक्चर के फ़ैसलों के ज़रीये इस सिम्त में तमाम इक़दामात किए जा रहे हैं ताकि रुकावटें दूर की जा सके। मनीष तीवारी ने कहा कि सिर्फ़ तक़ाबुल करना 1998 से ता 2004 के दौर और मौजूदा दौर का मुनासिब नहीं है क्योंकि 1998 से 2004 तक आलमी मईशत बेहतर हालत में थी जबकि एन डी ए बरसर-ए-इक्तदार थी।

इस के बावजूद शरह तरक़्क़ी सिर्फ़ 5.8 फ़ीसद थी। 2007 से 2012 तक आलमी मईशत बोहरान का शिकार रही जो 1930 की दहाई के बाद का अज़ीमतरीन बोहरान था। इस के बावजूद हिन्दुस्तान की शरह तरक़्क़ी 8.2 फ़ीसद और बाअज़ बरसों में 9 फ़ीसद तक पहूंच गई थी।