जयपुर: चाईल्ड राइट्स एण्ड यू तथा सेंटर फॉर बजट्स गवर्नेन्स एण्ड अकाउन्टेबिलिटी (क्राई) की ओर से जारी रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि राजस्थान में स्कूली शिक्षा पर अपने कुल बजट का मात्र 16.7 फीसदी हिस्सा खर्च होता है, जो पिछले चार सालों से स्थिर बना हुआ है.
प्रदेश 18 के अनुसार, राज्य का प्रति विद्यार्थी व्यय 13,512 रुपए है जो उड़ीसा और छत्तीसगढ़ से भी कम है जो शिक्षा के मानकों पर खरा उतरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
क्राई की उत्तर क्षेत्र की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा के अनुसार राजस्थान में स्कूल जाने वाले 33 फीसदी बच्चे सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर वर्ग से हैं. सीमान्त आबादी के लिए शैक्षणिक योजनाओं पर स्कूली शिक्षा बजट का मात्र 20 फीसदी हिस्सा ही खर्च किया जाता है. इसके अलावा माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर 18.49 फीसदी है, जो प्राथमिक स्तर की तुलना में तीन से चार गुना अधिक है. प्राथमिक स्तर से उच्च माध्यमिक स्तर तक की लड़कियों के स्कूल में पंजीकरण की दर में भी गिरावट आई है.
उन्होंने वर्ष 2011 की जनगणना के हवाले से बताया कि राज्य में 6-18 वर्ष आयुवर्ग के 57 लाख बच्चे (28 फीसदी) स्कूल नहीं जाते और इनमें से तकरीबन 33 लाख बच्चों का स्कूल में नामांकन ही नहीं किया गया है. राज्य में 21.1 फीसदी स्कूली बच्चे प्राथमिक स्तर के है. इस दृष्टि से राजस्थान, अध्ययन किए गए राज्यों में तीसरे स्थान पर है. हालांकि, राज्य इन बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान बजट (2014-15) का मात्र 0.03 फीसदी हिस्सा ही खर्च करता है, गौरतलब है कि यह आंकड़ा भी 2013-14 की तुलना में गिरा है. 14-18 वर्ष आयुवर्ग के स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है.