सुप्रीम कोर्ट किसी भी रियासत के इन इख़्तयारात जिन के तहत किसी भी क़त्ल के मुल्ज़िम की सज़ाए मौत को खत्म क़रने और मुल्ज़िम की रिहाई के अहकामात जारी करने के इख़तियार के मुआमले को चैलेंज करनेवाली एक दर्ख़ास्त की समाअत करेगी।
ख़ुसूसी तौर पर तामिलनाडो में साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म राजीवगांधी के क़ातिलों को रिहा करदेने के हुक्म ने सियासी हलक़ों में उथल पुथल मचा दी है। यहां इस बात का तज़किरा ज़रूरी है कि दर्ख़ास्त गुज़ारों में राजीव गांधी के क़त्ल के दौरान हलाक होने वाले दीगर अफ़राद के अरकान ख़ानदान भी शामिल हैं जिन्हें इस बात पर हैरत है कि हुकूमत तामिलनाडू ने सात मुल्ज़िमीन की रिहाई के अहकामात क्योंकर जारी किए?
दर्ख़ास्त में कहा गया है कि सज़ाए मौत को रहम की दर्ख़ास्त के बाद रद करदेने के इख़्तयारात दस्तूर हिंद में सिर्फ़ सदर जम्हूरिया या गवर्नर को दिए गए हैं। याद रहे कि 21 मई 1991 को उस वक़्त के वज़ीर-ए-आज़म राजीव गांधी को तमिलनाडू के श्री परम्बटूर में एक इंतिख़ाबी दौरे के दौरान एक ख़ुदकुश हमले में क़त्ल कर दिया गया था जबकि हमले की शिद्दत का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राजीव गांधी के इलावा दीगर 14 अफ़राद भी उनके साथ हलाक होगए थे।
दर्ख़ास्त गुज़ारों जान जोज़िफ, वे नारायण, आरमान, सामोवील, वीरावीम, एस अब्बास और के राम सोनगदम का कहना है कि हुकूमत ने सज़ाए मौत पाने वाले मुल्ज़िमीन को रिहा करके कोई अच्छी मिसाल क़ायम नहीं की। हुकूमत ने अपने फ़ैसले में सिर्फ़ मुल्ज़िमीन के मुफ़ाद को मद्द-ए-नज़र रखा जबकि महलूकीन के अरकान ख़ानदान के जज़बात को मजरूह कर दिया गया। समाज में अब इस तरह के वाक़ियात के बाद मुल्ज़िमीन की रिहाई के मुतालिबात भी शुरू होजाएंगे।
याद रहेकि हुकूमत तमिलनाडू ने 19 फ़रवरी को मर्कज़ी हुकूमत को मतला किया था कि वो राजीव गांधी क़त्ल मुआमले के तमाम सात मुल्ज़िमीन को रिहा करने का फ़ैसला करचुकी है जबकि हैरतअंगेज़ तौर पर सिर्फ़ एक रोज़ क़बल एक फ़ाज़िल अदालत ने तीन मुल्ज़िमीन की सज़ाए मौत को सज़ाए उम्र क़ैद में तबदील कर दिया था।