हुकूमत और अपोज़िशन ने मुत्तहदा तौर पर अदलिया की कारकर्दगी पर तन्क़ीद की और जजों के अदालत इलालिया में तक़र्रुर के लिए कालजीम निज़ाम बर्ख़ास्त करने की ख़ाहिश की और कहा कि ज़रूरी है कि इख़्तयारात का नाज़ुक तवाज़ुन बरक़रार रखा जाये जो मुतास्सिर हो चुका है।
राज्य सभा में दस्तूर में तरमीम के लिए ताकि अदालती तक़र्रुत कमीशन कालजीम सिस्टम का जांनशीन बन जाये।मर्कज़ी वज़ीर-ए-क़ानून कपिल सिब्बल, क़ाइद अपोज़िशन अरूण जेटली और दीगर कई अरकान का नुक्ता-ए-नज़र था कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टस में जजिस की तक़र्रुरी का मौजूदा निज़ाम शफ़्फ़ाफ़ और जवाबदेह नहीं है।
दस्तूर में 120 वीं तरमीम बिल 2013पेश करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि अदलिया 1993 में दस्तूर अज़सर-ए-नौ तहरीर करचुका है।जबकि हाइकोर्टस में जज के तक़र्रुत के लिए कालजीम निज़ाम इख़तियार किया गया था जिस से अदलिया, मुक़न्निना और आमिला के दरमयान नाज़ुक तवाज़ुन मुतास्सिर होगया था।उन्होंने कहा कि बाअज़ औक़ात किसी भी क़ौम की ज़िंदगी में ऐसे लमहात भी आते हैं जब आप को माज़ी का जायज़ा लेना और मुस्तक़बिल का इस्तिक़बाल करना होता है।
ऐसा ही मौक़ा आज आचुका है।नामवर क़ानूनदां कपिल सिब्बल ने कहा कि 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने आला अदालती तक़र्रुत के तरीका-ए-कार में तबदीली की ख़ाहिश की थी और दस्तूर की दफ़ा 124(2) में तरमीम करते हुए कालजीम निज़ाम क़ायम किया गया था।उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट आफ़ इंडिया का इंतेहाई एहतिराम करते हुए इनका ख़्याल है कि अदलिया ने दस्तूर अज़सर-ए-नौ तहरीर किया था।
जजस के तक़र्रुत की एहमीयत उजागर करते हुए उन्होंने कहा कि इनका अदालती कार्रवाई से कोई ताल्लुक़ नहीं है।तक़र्रुत और आमिला की कार्यवाहीयां मुख़्तलिफ़ होती हैं।लेकिन अदलिया ने दस्तूर की दफ़ा 124 अज़सर-ए-नौ तहरीर करते हुए आमला ना इख़्तयारात पर क़बज़ा करलिया है।ये तवाज़ुन बहाल किया जाना चाहीए। तक़र्रुत के मामले में आमिला की राय भी शामिल होनी चाहीए।उन्होंने कहा कि अदलिया आमिला की कारकर्दगी पर क़ाबिज़ नहीं हो सकता।