राम लीला कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट का फैसला

गुज़शता साल जब क़्रप्शन के ख़िलाफ़ सारे मुल्क में जद्द-ओ-जहद का सिलसिला जारी था और सारा मुल़्क एक तरह से क़्रप्शन के ख़िलाफ़ जद्द-ओ-जहद का हिस्सा बन गया था । मुल्क का कोई शहर और कोई गोशा ऐसा नहीं था जहां क्रप्शन के ख़िलाफ़ राय आम्मा नहीं पाई जाती थी ।

ये मुहिम गाँधियाई क़ाइद अन्ना हज़ारे की शुरू कर्दा थी । इसको देखते हुए योगा गुरु बाब रामदेव ने भी जद्द-ओ-जहद का अमला हिस्सा बनने का फैसला किया था । इनका ये फैसला किस तरह की मसलिहतों का शिकार था और उनके मक़ासिद क्या था उसकी तफ्सीलात तो आम नहीं हैं लेकिन कहा ज़रूर जाता है कि बाबा राम देव ने अपनी ख़ुद की सयासी जमात क़ायम करने के मक़सद को सामने रखते हुए क्रप्शन के ख़िलाफ़ जद्द-ओ-जहद का हिस्सा बनने का फैसला किया था ।

उन्होंने भी अन्ना हज़ारे की तरह दिल्ली के राम लीला मैदान पर एहतिजाजी इजतिमा का फैसला किया था । उन्होंने यहां हज़ारों अफ़राद को जमा कर लिया था और उनके ट्रस्ट की जानिब से मुहिम को मज़ीद आगे बढ़ाया जा रहा था । उसेमें 24 जून की रात देर गए यहां कार्रवाई करते हुए दिल्ली पुलिस ने बाबा राम देव को ज़बरदस्ती वहां से उठा दिया ।

वहां मौजूद अफ़राद के ख़िलाफ़ ताक़त का इस्तेमाल करते हुए उन्हें मुंतशिर कर दिया गया । बाबा राम देव को फ़ौरी तौर पर ना मालूम मुक़ाम को मुंतक़िल करते हुए उन्हें ब ज़रीया तय्यारा बाद में दिल्ली से बाहर रवाना कर दिया गया ।

इस कार्रवाई पर दिल्ली पुलिस पर मुख़्तलिफ़ गोशों से तन्क़ीदें की गयी और ये इल्ज़ाम आइद किया गया कि दिल्ली पुलिस ने दस्तूरी हुक़ूक़ की ख़िलाफ़वर्ज़ी की है और इसने ताक़त का इस्तेमाल करते हुए तमाम क़वानीन को पामाल कर दिया है ।

इस मसला को अदालत से रुजू कर दिया गया । सुप्रीम कोर्ट ने इस पर समाअत करते हुए आज दिल्ली पुलिस को तन्क़ीद का निशाना बनाया और कहा कि इसने अपनी कार्रवाई वज़ारत-ए-दाख़िला की उमा पर अंजाम दी है और वज़ारत-ए-दाख़िला ने ही दिल्ली पुलिस को एसा करने को कहा था ।

अदालत ने रिमार्क किया कि ये कार्रवाई उन अफ़राद के माबेन एतिमाद का फ़ुक़दान को वाज़िह करता है जो हुकूमत करते हैं और जिन पर हुकूमत की जा रही है । ये हुकूमत की कार्रवाई पर शदीद रिमार्क कहा जा सकता है । इसी कार्रवाई की समाज के मुख़्तलिफ़ तबक़ात की जानिब से भी मुज़म्मत की गई थी ।

अदालत ने ना सिर्फ दिल्ली पुलिस की कार्रवाई को बनाया है बल्कि बाबा राम देव और उनके ट्रस्ट की भी सरज़निश की गई है । अदालत ने जहां दिल्ली पुलिस की कार्रवाई को गैरकानूनी और ज़बरदस्ती से ताबीर किया है वहीं बाबा राम देव के ट्रस्ट पर लापरवाही से काम लेने का इल्ज़ाम आइद किया है और कहा कि इसी वजह से एक कारकुन राजन बाला की मौत वाक़्य हुई है ।

अब अदालत के इस फैसले के बाद इस कार्रवाई के ताल्लुक़ से एक बार फिर मुबाहिस का सिलसिला शुरू हो गया है । अदालत की जानिब से अपने ट्रस्ट की सरज़निश को नज़र अंदाज करते हुए बाबा राम देव हरकत में आ गए हैं और उनका कहना है कि अदालत ने दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पर जो तन्क़ीद की है वो दर असल उनकी कामयाबी है ।

वो अपने ट्रस्ट पर तन्क़ीद के ताल्लुक़ से लब कुशाई से गुरेज़ कर रहे हैं। इसके इलावा बी जे पी ने भी इस मसला पर सयासी रवैय्या इख्तेयार किया हुआ है और इसने कहा कि अदालत के रिमार्कस के बाद ये वाज़िह हो जाता है कि जो कुछ भी कार्रवाई की गई थी इसके  लिए वज़ीर आज़म डाक्टर मनमोहन सिंह और सदर कांग्रेस सोनिया गांधी ज़िम्मेदार हैं।

जहां बाबा राम देव इस मसला पर अपने आप को पाक दामन बनाना चाहते हैं और ये वाज़िह करना चाहते हैं कि उन्होंने जो कुछ किया था वो दुरुस्त था और दिल्ली पुलिस की कार्रवाई ग़लत थी वहीं बी जे पी उसको एक बार फिर तन्क़ीद का निशाना बनाते हुए सयासी रंग देना चाहती है ।

बी जे पी क्रप्शन के मसला पर वैसे तो हुकूमत को मुसलसल निशाना बनाती रही है और अब अदालत के फैसले को बुनियाद बनाकर वो मज़ीद सयासी फ़ायदा हासिल करने की कोशिश कर रही है । बाबा रामदेव हो या बी जे पी दोनों ही का रवैय्या अपने अपने मक़ासिद के लिए है और इसकी वाजबीयत का कोई जवाज़ दोनों भी पेश नहीं कर सकते ।

ये इसी कोशिश है जिसे समाज के किसी भी गोशे की ताईद हासिल होना भी बज़ाहिर मुम्किन नज़र नहीं आता ।
दोनों फ़रीक़ैन की कोशिशें अपने अपने मुफ़ादात की हद तक महिदूद हैं और इसके बैन उलसतूर में अदालत की जानिब से जो पयाम देने की कोशिश की गई है उसे किसी ने समझने की कोशिश नहीं की है ।

अपनी जगह हुकूमत ने हालाँकि कोई रद्द-ए-अमल ज़ाहिर नहीं किया है लेकिन हुकूमत से भी अदालती अहकाम का संजीदगी से जायज़ा लेने की कोई उम्मीद फ़ुज़ूल ही हो सकती है । जो मुहिम क्रप्शन के ख़िलाफ़ जद्द-ओ-जहद के नाम पर शुरू की गई थी इसके बाद सयासी अज़ाइम से इनकार नहीं किया जा सकता और दिल्ली पुलिस ने जो कार्रवाई की थी इसके भी सयासी मुहर्रिकात ख़ारिज अज़ इम्कान नहीं हैं और अब बी जे पी जो रद्द-ए-अमल ज़ाहिर कर रही है वो भी सयासी मक़सद बरारी की कोशिश है ।

अफ़सोस की बात ये है कि क्रप्शन जैसे हस्सास मसला पर हर एक का मक़सद-ओ-मंशा सयासी मक़ासिद की तकमील ही है और कोई भी गोशा इस ताल्लुक़ से संजीदा नहीं है । अब मुल्क के अवाम को चाहीए कि वो बुलंद बाँग दावे करने वालों की हक़ीक़त को जानें।