राय दही का बदलता रुजहान

हिंदूस्तान में हर ख़ित्ता का सयासी रुजहान मुख़्तलिफ़ होने के बावजूद जब सयासी पार्टीयों की कारकर्दगी और उन के कामों के मेरिट का सवाल पैदा होता है तो राय दहिंदा अपने हक़ वोट का इस्तेफ़ादा करने में मुहतात हो जाता है। मुल्क के हालिया इंतेख़ाबी माहौल से ये तो पता चल रहा है कि सैक़्यूलर अज़म का दम भरने वाली पार्टीयां अपना असर खो रही हैं।

कारकर्दगी के मुआमले में सिफ़र रिकार्ड रखने के बाइस ये पार्टीयां राय दहिंदों के ग़ुस्सा का सामना कर रही हैं। ये अगर वाक़ई मुसबत रुजहान है तो मुल्क को आने वाले दिनों में हुक्मराँ तबक़ा या सियासतदानों की कारकर्दगी और काम काज के मेरिट की बुनियाद पर पार्टीयों को वोट मिलेंगे लेकिन दिल्ली म्यूनसिंपल कारपोरेशन में जहां कांग्रेस की हुकूमत है, बी जे पी को भारी अक्सरीयत से कामयाबी कांग्रेस के लिए लम्हा फ़िक्र है।

इसके दौर में काम कम, बदउनवानीयाँ ज़्यादा होने का सबूत अवाम का वोट है। हर सरकारी-ओ-ग़ैरसरकारी दफ़्तर में रिश्वत का राज, हर सरकारी काम में स्क़ाम की ख़राबियों ने हुक्मराँ पार्टी कांग्रेस की शबिया बिगाड़ दी है। अगर चीका कांग्रेस ने दिल्ली म्यूनसिंपल कारपोरेशन में अपने कमज़ोर मुज़ाहिरे को एहमीयत नहीं दी है मगर ये शिकस्त इसके लिए सयासी मौक़िफ़ को जांच लेने का मौक़ा फ़राहम करती है।

दिल्ली मुल़्क की राजधानी होने के इलावा यहां पर होने वाली हर सयासी तब्दीली के असरात मुल्क भर में कुछ ना कुछ मुरत्तिब होते हैं। इस मर्तबा म्यूनसिंपल इंतेख़ाबात में बी जे पी की कामयाबी अगर मुक़ामी सतह पर राय दहिंदों की तब्दीली की लहर का हिस्सा है तो फिर ये लहर मुक़ामी हद तक बरक़रार नहीं रह सकती क्योंकि इसके असरात दीगर इलाक़ों पर भी पड़ेंगे।

इससे क़ब्ल दिल्ली म्यूनसिंपल कारपोरेशन पर बी जे पी ने कामयाबी हासिल की थी मगर असेंबली का इक़्तेदार तो कांग्रेस को मिला था। इस ख़्याल के तहत कांग्रेस क़ाइदीन इन्हेतात पज़ीर होने वाली अपनी सयासी सरगर्मीयां बरक़रार रखेंगे तो उन का बुनियादी वोट फ़ीसद घटता जाएगा। दिल्ली में आइन्दा साल असेंबली इंतेख़ाबात होने वाले हैं।

इससे पहले म्यूनसिंपल इंतेख़ाबात में बी जे पी की कामयाबी इसके लिए सेमीफाइनल है तो फाईनल में कामयाबी के लिए बी जे पी मज़ीद मेहनत करेगी। कांग्रेस को दाख़िली इंतेशार का सामना है तो बी जे पी को मुख़ालिफ़ हुक्मरानी लहर का फ़ायदा हो रहा है।

2007 में बी जे पी को सबसे ज़्यादा 164 नशिस्तें मिली थीं , अब 272 वार्डस में 138 नशिस्तें हासिल की हैं, अगर चीका साबिक़ के मुक़ाबिल इसका वोट फ़ीसद और नशिस्तें घट गई हैं लेकिन दिल्ली के राय दहिंदा की राय भी तब्दील हो गई है।

ये रुजहान कांग्रेस के लिए महंगा पड़ेगा। उसे आने वाले दिनों में असेंबली इंतेख़ाबात की तैयारी करनी है। मुसलसल दूसरी मीयाद तक हुकूमत करने वाली दिल्ली की शीला दीक्षित हुकूमत या मर्कज़ की यू पी ए हुकूमत को आइन्दा के इंतेख़ाबात में इस की ख़ालिस कारकर्दगी पर वोट मिलेंगे।

इसके इलावा चोर बाज़ारी , काला धन, स्क़ाम्स, महंगाई और नाक़िस हुक्मरानी की वजह से भी कांग्रेस को शिकस्त का मुंह देखना पड़ेगा। अफ़सोस इस बात का है कि इन नाकामियों से सबक़ हासिल करने के बजाय मुल़्क की क़दीम पार्टी और इस के क़ाइदीन हर शिकस्त को गेरा हम क़रार दे कर अपनी ख़राबियों का नोट नहीं ले रहे हैं।

आंधरा प्रदेश ज़िमनी इंतेख़ाबात उत्तर प्रदेश, पंजाब के असेंबली इंतेख़ाबात में इसकी शिकस्त ख़ास मेरिट की जांच का नतीजा है तो आगे भी कांग्रेस को दीगर रियास्तों में इस मेरिट की बुनियाद पर वोट मिलेंगे। दाख़िली तौर पर इंतेशार से दो-चार पार्टी अपने मुहासिबा में ताख़ीर से काम लेगी तो फिर एक बार क़ौमी सतह पर दीगर पार्टीयों की हुक्मरानी का मौक़ा मिलेगा।

सैक़्यूलर और फ़िर्कापरस्त के ख़ानों में बटी मुल़्क की सियासत को अगर तारीख़ से सबक़ सीखने का मौक़ा नहीं दिया गया तो फिर ये सैक्यूलर पार्टीयां ,फ़िर्कापरस्ती की सियासत पर मातम करती रहेंगी। दिल्ली के म्यूनसिंपल इंतेख़ाबात से असेंबली के लिए होने वाली इंतेख़ाबी तैयारीयों और फिर आइन्दा 2014 के आम इंतेख़ाबात कांग्रेस या सैक़्यूलर मिज़ाज की पार्टीयों को अपनी सयासी ज़हानत और अवामी ख़िदमत वाली हिक्मत-ए-अमली में सख़्त जान पैदा करने की ज़रूरत की जानिब तवज्जा दिलाते हैं।

इस बात में कहां तक हक़ीक़त है कि कांग्रेस ने ही मुल्क में फ़िर्कापरस्त पार्टीयों को मज़बूत होने का मौक़ा फ़राहम किया,ये गौरतलब है। मसला सिर्फ दिल्ली म्यूनसिंपल कारपोरेशन की जीत या नाकामी नहीं है बल्कि पूरे मुल्क में अब कांग्रेस को अपनी ख़राबियों का ख़मयाज़ा भुगतना पड़ रहा है।

अवाम के अंदरूनी ग़म-ओ-ग़ुस्सा को समझे बगै़र ये कांग्रेस और दीगर सैक़्यूलर-ओ-क़ौमी इलाक़ाई पार्टीयां अपने दामन पर राय दहिंदों से किए गए वायदा ख़िलाफ़ी का दाग़ लगाने की ग़लती करेंगी तो फिर एक बार क़ौमी सतह पर फ़िर्कापरस्त एजेंडा के साथ ऐसी पार्टी को उभरने का मौक़ा मिलेगा जिस की हुक्मरानी के दौरान माज़ी में मुल़्क की बहुत बदनामी हुई थी और ये मुल़्क तरक़्क़ी के महाज़ पर पीछे चला गया था।

हिंदूस्तानी अवाम के ज़हनों में अक़ल्लीयतों के ताल्लुक़ से दुश्मनी पैदा करते हुए ख़तरनाक ज़हर घोला गया था और गुजरात फ़सादाद इस ज़हर का नतीजा थे। अब यहां सैक़्यूलर पार्टीयों के सामने तवील तज़किरा करने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें ख़ुद हालात का इदराक कर लेना चाहीए।