राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कन्वीनर क़ादयानियों का कट्टर हामी

हैदराबाद 10 मार्च: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस एस) को ना सिर्फ़ हिन्दुस्तान बल्कि सारी दुनिया मे एक फ़ाशिस्ट-ओ- फ़िर्क़ा परस्त तंज़ीम की हैसियत से जाना जाता है।

1925 मे अपने क़ियाम के साथ ही इस का किरदार इंतिहाई मशकूक रहा। इस के बारे मे इंसाफ़ पसंद अवाम और दानिश्वरान क़ौम का ख़्याल है कि वो और इस की ज़ेली तंज़ीमें हिन्दुस्तान को फ़िर्क़ा परस्ताना पालिसीयों और प्रोग्राम्स के ज़रिये तबाह करने के ख़ाहां हैं। इस लिए कि जो अपने मुल्क से मुहब्बत रखता है हमेशा उस की तरक़्क़ी-ओ-ख़ुशहाली के बारे में फिक्रमंद रहता है। वो हरगिज़ खराबा करने वाली कार्यवाईयों में हिस्सा नहीं लेता और न ही एक मख़सूस तबक़े को हथियार चलाने और दूसरे मज़ाहिब बिलख़सूस अक़लियतों को निशाना बनाने उकसाता है। अगर कोई फ़र्द या तंज़ीम ऐसा करती है तो दरअसल वो मुल्क की ग़द्दार है और ग़द्दारों की सज़ा क्या होनी चाहीए इस का जवाब फ़िर्क़ापरस्त बाआसानी दे सकते हैं, जहां तक आर एस एस और उस की ज़ेली तंज़ीमों का सवाल है ये हमेशा मुसलमानों से दूर रहे लेकिन 2002 मे एक ख़ास प्रोग्राम-ओ-मंशा के तहत उन अफ़राद को अपने करीब करलिया जो नाम से बज़ाहिर मुसलमान लगते हैं ।

ऐसे ही लोगों को जमा करते हुए राष्ट्रीय मुस्लिम मंच क़ायम की गई जो दिन रात मुसलमानों से हमदर्दी के नाम पर दिन रात संघ परिवार के नापाक अज़ाइम को पूरा करने मे मसरूफ़ है । राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का सरबराह मुहम्मद अफ़ज़ाल है । कई अफ़राद का कहना है कि नाम से मुसलमान दिखाई देने वाला ये शख़्स हुलिया, सूरत शक्ल , लिबास, चाल ढाल , बात चीत और अपने किसी भी ज़ाविये से मुस्लमान नज़र नहीं आता ।

वो जब भी बात करता है, उस की ज़बान से बस आर एस एस और उस के सेवकों के लिए सताइशी कलिमात निकलते हैं। वो आर एस एस और बी जे पी को मुसलमानों का नजातदिहंदा तसव्वुर करता है। इस का ये भी कहना है कि हिन्दूतवा एक तहज़ीब एक तर्ज़-ए-ज़िदंगी है और उस को फ़रोग़ देना ज़रूरी है ।

गाव‌कशी पर पाबन्दी की वकालत करने वाले मुहम्मद अफ़ज़ाल का कहना है कि आज भी हमारे मुल्क मे गाय इंसाफ़ के लिए तरस रही है और ये सब अक़लीयतों को ख़ुश करने कांग्रेस की पॉलीसी का नतीजा है ।

मुहम्मद अफ़ज़ाल को आर एस एस हिन्दूत्वा का वफ़ादार और कादयानी अपना यार समझते हैं क़ादयानियों का जो प्रोग्राम होता है, उसको मेहमाने ख़ुसूसी के तौर पर बुलाया जाता है । पंजाब मे क़ादयानियों के 118 वें सालाना जलसे के मौके पर उसने इंद्रेश कुमार को अपना लीडर और उस्ताद तस्लीम किया और अहमदियों की ताईद की।

ऐसा लग रहा था कि वो क़ादयानियों के नाम निहाद किसी ख़लीफ़ा के घर पैदा हुआ और आर एस एस के इदारों में उस की तरबियत हुई हो । हिन्दुत्वा के बारे में अफ़ज़ाल कहता है कि ये हर हिन्दुस्तानी का तर्ज़-ए-ज़िदंगी है और आर एस एस इसे ज़िंदा कर रही है । उस की चापलूसी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो मुल्क के वज़ारत-ए-उज़मा पर आर एस एस क़ाइद को फ़ाइज़ करने की हिमायत करता है।

अफ़ज़ाल , कज़्ज़ाब ग़ुलाम अहमद कादियानी और आर एस एस के साबिक़ सरबराह के एस सुदर्शन के अलावा अटल बिहारी वाजपाई की तारीफ़ करते नहीं थकता । वो कहता है कि आज हिन्दुस्तान पर आर एस एस की हुक्मरानी की ज़रूरत है तब ही हिन्दुत्वा मे जान पैदा होसकती है ।

अफ़सोस तो इस बात पर होता है कि अफ़ज़ाल मुख़्तलिफ़ मौक़ों पर कुरआनी आयात की ग़लत तावील पेश करके लोगों को गुमराह करता है । इस के बारे में दिलचस्प तबसरे सुनने में आते हैं। एक साहिब ने तो उसे आर एस एस का अफ़रीत क़रार दिया ।

राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के क़ियाम के बारे में इस का कहना है कि दिल्ली मे दीपावली मिलन के मौके पर मंच का क़ियाम अमल में आया फिर इसे राष्ट्रीय वादी मुस्लिम आंदोलन एक नई राह का नाम दिया गया और आख़िर में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की हैसियत से उसे आर एस एस की सरपरस्ती हासिल होगई ।

जिस तरह बी जे पी मे मुख़तार अब्बास नक़वी और शाहनवाज़ हुसैन को मुक़ाम हासिल है इसी तरह आर एस एस अफ़ज़ाल और उसके साथियों को इस्तेमाल करती रहती है । राष्ट्रीय मुस्लिम मंच ने गावकशी के लिए ख़ुसूसी मुहिम चलाई थी इसी तरह अमरनाथ यात्रा तनाज़ा के मौके पर भी इस तंज़ीम को आर एस एस ने भरपूर तरीके से इस्तेमाल किया ।

ग़ौर-ओ-फ़िक्र की बात ये है कि मुसलमान कल तक के लिए लायेहा-ए-अमल को क़तईयत नहीं देते जब कि आर एस एस एक तवील मंसूबा पर काम करती है ।