राष्ट्र के विरोधी हैं आजकल के “छदम राष्ट्रवादी”

राष्ट्रवाद, ये एक ऐसा शब्द है कि बचपन से लेकर बड़े होने तक जितनी बार सुना है अच्छे मन से सुना है लेकिन पिछले कुछ महीनों में या पिछले एक दो सालों में इस लफ्ज़ का जितना दुरूपयोग हुआ है उससे अब इस लफ्ज़ से भी मन हट सा गया है. राष्ट्रवाद जैसे मज़बूत शब्द का इस्तेमाल लोग अपनी अलगाव-वादी राजनीति के लिए करने लगे हैं और अक्सर को इस शब्द का इस्तेमाल वो लोग कर रहे हैं जिन्हें इस शब्द का मतलब भी नहीं पता. हम अभी तक जो राष्ट्रवाद पढ़ते और समझते आये थे उस राष्ट्रवाद से भिन्न है इनका राष्ट्रवाद.

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हमारे राष्ट्रवादी नेता पंडित जवाहर लाल नेहरु हैं तो इनके विनायक दामोदर सावरकर, हमारे राष्ट्रवाद की भावना में गाँधी का नाम है तो इनके राष्ट्रवाद में नाथूराम गोडसे. बचपन से जो राष्ट्रवाद हमने जाना था उसमें अलग अलग धर्मों के लोगों का साथ में रहना पहली शर्त थी और आजकल के छदम राष्ट्रवादी “मुस्लिम-मुक्त” भारत की बात करते हैं. इनके राष्ट्रवाद में कई महान महापुरुषों के लिए गालियों का भण्डार है, इनकी गालियों में पंडित नेहरु, इंदिरा गाँधी, मौलाना आज़ाद ही नहीं बल्कि महात्मा गाँधी तक शामिल हैं. भारतीय इतिहास को पढने में इनका कोई यक़ीन नहीं है क्यूंकि इन्हें ये लगता है इतिहास को सही तरह से नहीं लिखा गया. इन्हें जवाहर लाल यूनिवर्सिटी से ख़ासी चिढ रहती है क्यूंकि वो तार्किक यूनिवर्सिटी है. इन लोगों के राष्ट्रवाद में गाय को खाना खिलाना नहीं बल्कि गाय के नाम पे दंगा कराना शामिल है. राष्ट्रवाद एक वो था जो रविन्द्र नाथ टैगोर ने बताया था और कुछ तार्किक चर्चा उन्होंने अपनी किताब “राष्ट्रवाद” में की भी थी, मुझे तो लगता है कि अगर ये लोग रविन्द्र नाथ टैगोर को पढेंगे तो उन्हें भी राष्ट्रविरोधी मान लेंगे. इन लोगों का राष्ट्रवाद माँ-बहनों की इज़्ज़त करने के बजाय उन्हें बेइज़्ज़त करने से है. इनके राष्ट्रवाद की बुनियाद वन्दे मातरम् गीत पे टिकी है, अगर आप इनसे पूरा गीत पूछ लेंगे तो बगलें झांकेंगे.. और आख़िर ये वन्दे मातरम् के इतने दीवाने क्यूँ हैं क्या वन्दे मातरम् ही इस देश की एक मात्र पहचान है. ये एक ऐसे गीत को लेकर पगलाए घूमते हैं जिसे ख़ुद रविन्द्र नाथ टैगोर ने बेहतर नहीं माना था. बहरहाल इंसान का किसी गीत को सम्मान देना ठीक है लेकिन उसको लेकर झगडे लड़ाई करना तो बिलकुल ठीक नहीं है. जो एक दौर में तिरंगे को झंडा मानने को तय्यार नहीं थे अब वो उस तिरंगे को भी अपने राजनितिक फ़ायदे के लिए नहीं बख्श रहे हैं. राजनितिक फ़ायदे के लिए कुछ भी, राजनितिक फ़ायदे के भी बहुत से तरीक़े हैं इनका जो तरीक़ा है वो बड़ा ख़तरनाक है.
आजकल दलितों के ऊपर जिस तरह की कार्यवाही इन छदम राष्ट्रवादियों द्वारा की जा रही है निहायत ख़तरनाक है, ये मुसलमानों से तो नफ़रत करते ही रहे हैं लेकिन दलितों से भी इनकी नफ़रत गाहे बगाहे ज़ाहिर हो ही जाती है. ये वो लोग हैं जो रोहित वेमुला की ख़ुदकुशी का जश्न मनाते हैं, ये जेएनयू को बंद करने की बात करते हैं, कलबुर्गी की हत्या का समर्थन करते हैं ये “अ-राष्ट्रवादी” गुन्डे. कभी गाय के नाम पर कभी धर्म के नाम पर ये राष्ट्र को बर्बाद करने पे तुले हैं.
मैं तो समझ नहीं पा रहा हूँ कि इन छदम राष्ट्रवादियों का राष्ट्रवाद है क्या? ये किस राष्ट्र की बात कर रहे हैं? सेक्युलर लोगों को गाली देने वाले ये दक्षिण पंथी गुन्डे राष्ट्रवादी कम “अ-राष्ट्र्वादी” ज़्यादा हैं.

(अरग़वान रब्बही)
(लेखक के विचार निजी हैं)