राहुल की तफ़सीलात मालूम करना मामूल की कार्रवाई

नई दिल्ली

क़दीम रिवायत से पेशरू ओहदेदारान शायद वाक़िफ़ नहीं :कमिशनर पुलिस

दिल्ली पुलिस की जानिब से नायब सदर कांग्रेस राहुल गांधी की जासूसी के इल्ज़ामात से मुसलसल इनकार किया जा रहा है। पुलिस का ये मौक़िफ़ है कि ज़ाहिरी ख़द-ओ-ख़ाल के बारे में तफ़सीलात मालूम करना क़दीम और मामूल का तरीका-ए-कार है । चंद साबिक़ दिल्ली पुलिस सरबराहान ने इस पर शुबहात का इज़हार किया और मीडिया में उन के हवाले से कहा गया है कि वो इस तरह के अमल से वाक़िफ़ नहीं हैं।

कमिशनर पुलिस बी ऐस बसी ने कहा कि एक बड़ी तंज़ीम होने की बिना ये ज़रूरी नहीं कि हर बात को पुलिस सरबराह के इलम में लाया जाये । दिल्ली पुलिस एक बड़ी तंज़ीम है यहां बहुत ज़्यादा सरगर्मीयां अंजाम दी जाती हैं और बाज़ मामूल की सरगर्मीयां भी हैं जो सरबराहान के इल्म में लाई या नहीं भी लाई जा सकती हैं।

इस में एक तरीका-ए-कार इख़तियार किया गया है और इस पर अमल होरहा है । उन्होंने कहा कि जब ये मामला तनाज़े की शक्ल इख़तियार कर गया तब उन्हें ये बात बताई गई । वो अपने पेशरू को ना वाक़फ़ीयत की बना मौरिद इल्ज़ाम ठहराना नहीं चाहते और ना उन्हें इस बात पर कोई हैरत है कि बुनियादी-ओ-मामूल की सरगर्मीयों से वो बेख़बर थे।

उन्होंने कहा कि इस मामले को ज़्यादा तवालत नहीं दी जानी चाहिए कोई शख़्स जो तंज़ीम का सरबराह हो उसे उमूमन बड़े मसाइल या क्राइम्स मैनेजमेंट पर वजह देनी होती है। इस तरह की तफ़सीलात हासिल करने के कोई नापाक अज़ाइम नहीं हैं। पुलिस के मुताबिक़ वसती दिल्ली में रहने-ओ-अले अरकान-ए‍-पार्लियामेंट का सर्वे मुक़र्ररा नमूना दरख़ास्त के मुताबिक़ किया जाता है और ये रिवायत 1960 से चली आरही है। मुख़्तलिफ़ मौक़े पर इस पर नज़र-ए-सानी की जाती है इस पर 1957 987 और फिर 1999 में नज़र-ए-सानी की गई थी।