रियास्ती कांग्रेस में नाराज़गीयाँ

आंधरा प्रदेश काबीना में हालिया तौसीअ और रद्दोबदल के बाद रियासत में कांग्रेस पार्टी के अंदर होने वाली उथल पुथल और हालात का रुख बता रहा है कि अगर हाईकमान ने कोई हमदर्दी का क़दम नहीं उठाया तो बहुत जल्द ग़ैर मुतवक़्क़े सूरत-ए-हाल का सामना करना पड़ेगा। काबीना में एक एम एल सी को शामिल करने के मसला पर कांग्रेस क़ाइदीन ने रियास्ती उमूर के इंचार्ज ग़ुलाम नबी आज़ाद से मुलाक़ात करके जिस तरह की शिकायत की है वो कांग्रेस में एक इंतिशार की कैफ़ीयत का मज़हर है।

पार्टी क़ाइदीन में अगर ओहदों का शौक़ इसी तरह बढ़ता रहा तो आगे चल कर कांग्रेस को आंधरा प्रदेश में अदम इस्तिहकाम से दो-चार होना पड़ेगा। पार्टी अरकान के अंदर नाराज़गी बढ़ रही है, लीडर ज़ाती मुफ़ादात के लिए पार्टी की साख से खेल रहे हैं। रियासत में सयासी फ़िज़ा-ए-तबदील होने की तरफ़ बढ़ रही है। अगर कांग्रेस के अंदर की कैफ़ीयत और हालात यूं ही चलते रहें तो बरसर-ए-इक़तिदार पार्टी और यहां के क़ाइदीन को आगे चल कर बहुत बड़े चैलेंज का सामना करना पड़ेगा। जगन मोहन रेड्डी तीसरी बड़ी सयासी क़ुव्वत बन कर सामने आ रहे हैं।

तेलंगाना तहरीक को कुचलने में कामयाब होने का दावा करने वाले कांग्रेस के हुकमरान लीडर को सब से ज़्यादा परेशानी अपने ही काबीनी रफ्क़ा से है। ए आई सी सी जनरल सेक्रेटरी-ओ-इंचार्ज ए पी उमूर ग़ुलाम नबी आज़ाद के दौरा के दौरान काबीना में तौसीअ के बाद पार्टी क़ाइदीन की नाराज़गी खुल कर सामने आई है। ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस क़ाइदीन को तीक़न दिया कि काबीना में एक और तौसीअ होने वाली है जिस में नाराज़गी को दूर करने की कोशिश की जाएगी।

सवाल ये है कि काबीना में तौसीअ के ज़रीया हर एक को ख़ुश नहीं किया जा सकता। नाराज़गीयाँ फिर भी बरक़रार रहेंगी। अगर चीका ग़ुलाम नबी आज़ाद ने समाज और ख़तों के तमाम गोशों को नुमाइंदगी देने का तीक़न दिया है। काबीना में तौसीअ और कांग्रेस क़ाइदीन की ओहदों से दिलचस्पी की सूरत-ए-हाल का जायज़ा लिया जाये तो ये मंज़र नामा सामने आता है कि उन्हें अवाम की ख़िदमत और रियासत की सूरत-ए-हाल की फ़िक्र नहीं है। नए मसाइल सामने आ रहे हैं।

अवाम को खासतौर पर रियासत के किसानों और पसमांदा तबक़ात की बहबूद-ओ-राहत कारी का मसला संगीन होता जा रहा है। किसी भी लीडर ने मर्कज़ी क़ाइद के सामने अवामी मसाइल और किरण कुमार रेड्डी हुकूमत की कारकर्दगी का तज़किरा नहीं किया बल्कि ये तमाम क़ाइदीन अपने ही मक़ासिद की रथ पर सवार नज़र आते हैं।

कांग्रेस के अरकान असेबली और अरकान कौंसल पार्टी क़ियादत पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं कि काबीना में एक और तौसीअ की जाये ताकि इस में एम एल सीज़ को भी नुमाइंदगी दी जा सके। इस में दो राय नहीं कि माज़ी में कांग्रेस की हुकूमतों में तीनता चार अरकान कौंसल को काबीना में शामिल किया जाता था मगर किरण कुमार रेड्डी हुकूमत में एक भी रुकन कौंसल को शामिल नहीं किया गया। प्रजा राज्यम पार्टी के रुकन कौंसल रामचंद्रया को नुमाइंदगी दिए जाने के बाद कांग्रेस क़ाइदीन की नाराज़गी बढ़ गई। जो क़ाइदीन अवामी ख़िदमत से ज़्यादा अपनी ख़िदमत करना चाहते हैं और कौंसल का रुकन बनने के लिए काफ़ी जद्द-ओ-जहद की है, इन का एहसास है कि हाईकमान उन की ख़िदमात को तस्लीम करके उन्हें काबीना में शामिल करे। कांग्रेस के अंदर ज़ात पात का मसला भी संगीन है।

कापू तबक़ा को नुमाइंदगी देने पर एहतिजाज करने वाले क़ाइदीन ने रियासत के पसमांदा और कमज़ोर तबक़ात का मसला उठाया है। गुज़श्ता 60 साल से कमज़ोर तबक़ात को पार्टी क़ियादत के रहम-ओ-करम पर छोड़ा गया है। इसके बावजूद ये तबक़ा कांग्रेस की हिमायत करता आ रहा है, इस लिए काबीना में अगर पसमांदा तबक़ात की नुमाइंदगी करने वाले दो क़ाइदीन को जगह मिलती है तो आला ज़ात के क़ाइदीन तो नाराज़ होंगे। उन्हें रियासत की तरक़्क़ी , अवामी ख़िदमत और मसाइल की यकसूई की कोई फ़िक्र नहीं है। ऐसे क़ाइदीन जो सिर्फ ओहदों के पीछे दौड़ते हैं, वो मुस्तक़बिल में आने वाले मसाइल को हवा देंगे।

कांग्रेस हुकूमत ने अपने हालिया बरसों पर मुहीत बदइंतिज़ामी और ख़स्ता मआशी मैनेजमेंट के ज़रीया रियासत की मईशत को कमज़ोर बना दिया है। अगर चीका चीफ़ मिनिस्टर किरण कुमार रेड्डी ने मईशत की तस्वीर को कुछ नए रंग दे कर बेहतर बनाने की कोशिश में पार्टनरशिप सिमट मुनाक़िद की और कई मुआहिदों पर दस्तख़त किए मगर हाल कुछ और ही ब्यान करता है।

मेक्रो इकनॉमिक की हालत बेहतर बनाने की फ़िक्र नहीं है। सरमाया कारों को एतिमाद में लेकर तवानाई, इन्फ़ार्मेशन टैक्नोलोजी, इंफ्रास्ट्रक्चर और सयाहत के शोबों में कई करोड़ के मुआहिदे हुए हैं, इस से हुकूमत के खज़ाने के बुनियादी ढाँचे में किस हद तक वुसअत पैदा होगी, ये नहीं कहा जा सकता। चीफ़ मिनिस्टर ने ए आई सी सी जनरल सेक्रेटरी ग़ुलाम नबी आज़ाद को रियासत की आला सतही तस्वीर बताई है।

अंदर ही अंदर पार्टी और हुकूमत को होने वाले नुक़्सानात से उन्हें बेख़बर रखा गया है। ग़ुलाम नबी आज़ाद ने भी अपने दौरा के दौरान पार्टी क़ाइदीन की नाराज़गियों को दूर करने और उन में इत्तेहाद पैदा करने की कोई कोशिश नहीं की। कांग्रेस हाईकमान अपने तैयार कर्दा सयासी ढांचा के अंदर ही सब कुछ ठीक करने की फ़िक्र करती है तो रियासत में कांग्रेस और अवाम के दरमयान दूरी बढ़ने लगी।

काबीना से शंकर राव के इख़राज के बाद रियासत भर में एक ग़लत पयाम पहूँचा है कि पार्टी में सोच-ओ-फ़िक्र का रुजहान घटता जा रहा है जिस के बाइस उस की तरक़्क़ी की रफ़्तार मद्धम और बदनामी की रफ़्तार तेज़ होरही है। गुज़श्ता चंद बरसों के दरमयान मआशी बदइंतिज़ामी से भी अवाम, हुक्मराँ पार्टी से बेज़ार हो रहे हैं।