रियास्ती नज़म-ओ-नसक़ का मसला

रियास्ती हुकूमत और नज़म-ओ-नसक़ इन दिनों कश्मकश में मुबतला है। आई ए एस ऑफीसर्स में पैदा होने वाली बेचैनी, सी  बी आई की कार्रवाई से क्रप्शन के मुआमले बेनकाब होने के बाद सिर्फ आला ओहदेदारों को निशाना बनाए जाने के लिए मसला ने नज़म-ओ-नसक़ में फ़ैसला साज़ी के अमल को मफ़लूज बना दिया है।

आमार प्रापर्टीज़ स्क़ाम में आई ए एस ओहदेदार बी पी आचार्य की गिरफ़्तारी इस से क़बल गै़रक़ानूनी कानकनी में एक ख़ातून आई ए एस ओहदेदार की अदालती तहवील ने इन ओहदेदारों की यूनीयन को मुज़्तरिब बना दिया है तो ये रियास्ती नज़म-ओ-नसक़ और सरकारी कामों की अंजाम दही के लिए एक मसला बन जाएगा।

बदउनवानीयों और क़्रप्शन के मुआमलों में हुकूमत और वुज़रा से बाज़पुर्स के बजाय ओहदेदारों को गिरफ़्तार करने के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले आई ए एस यूनीयन के क़ाइदीन ने आइन्दा से किसी भी किस्म के मुआमलों पर फ़ैसला करने और अहकाम जारी करने से गुरेज़ करने पर ग़ौर किया है। सेक्रेट्रेट और रियासत के दीगर सरकारी दफ़ातिर में अगर फ़ैसले साज़ी का अमल अमलन रुक जाय तो कई मसाइल पैदा होंगे। ख़ासकर आराज़ीयात का अलाटमेंट,आराज़ीयात का हुसूल, कानकनी के कामों को लीज़ पर देने की फाईलें, ख़ानगी आसामीयों की जानिब से पेश करदा प्रोजेक्ट तजावीज़ को मंज़ूरी देने से ओहदेदारों ने हाथ खींच लिया है।

इनका एहसास है कि ओहदेदार तो सिर्फ फाईल तैय्यार करते हैं मंज़ूरी या ना मंज़ूरी का फ़ैसला हुकूमत और मुताल्लिक़ा वुज़रा करते हैं। ए पी आई ए एस ऑफीसर्स एसोसीएसन का इल्ज़ाम गौरतलब है कि माज़ी में उन के महिकमों में किए गए फ़ैसलों के लिए वुज़रा ज़िम्मेदार हैं। ख़ासकर वाई एस राज शेखर रेड्डी हुकूमत में जो फ़ैसले किए गए थे।

इसके लिए वुज़रा ही ज़िम्मेदार हैं। अब इस का ख़मयाज़ा आई ए एस ओहदेदारों को भुगतना पड़ रहा है। अब सूरत-ए-हाल कुछ ऐसी बन गई है कि क्रप्शन में मुलव्वस अनासिर अपनी हुकूमत को आरिज़ी और ग़ैर मुस्तहकम हालात से बचाना चाहते हैं। कांग्रेस के वुज़रा ने कुरप्शन के वाक़ियात के इन्किशाफ़ के बाद मुवाफ़िक़ मौक़िफ़ इख़तियार किया है। बाअज़ वुज़रा की ये तशवीश दरुस्त है कि अगर ओहदेदार फ़ैसले करने और फाईलों पर दस्तख़त करने से गुरेज़ करें तो इस से हालात अबतर होंगे और आगे चल कर मालीयाती पेचीदगियां पैदा होंगी। वुज़रा समेत इन दिनों बहुत से लोगों के बारे में ऐसी कहानियां ज़बान ज़द आम होगईं अब इन का दिफ़ा मुश्किल है।

वुज़रा ने साबिक़ वाई एस आर हुकूमत की ख़राबियों से ख़ुद को बचाने की कोशिश की है। इस के इलावा बाअज़ वुज़रा मिसाली किरदार और कारकर्दगी का मुज़ाहरा नहीं कररहे हैं। सरकारी काम काज में शफ़्फ़ाफ़ियत और दियानतदारी का जहां तक सवाल है इस के लिए नीयत अच्छी होनी चाहीए। आज जो आई ए एस ओहदेदार और उन की एसोसी उष्ण फ़िक्रमंदी का इज़हार कररही है इस के बारे में वो ख़ुद अपना एहतिसाब करें तो अंदाज़ा होगा कि हुकूमत की रहनुमाई करना और फ़ैसला साज़ी के अमल की राह हमवार करना एक ओहदेदार की इन्फ़िरादी नीयत और कारकर्दगी-ओ-फ़र्ज़शनासी पर मुनहसिर है।

अगर ओहदेदार ख़ुद बददियानती का पैकर होतो पूरा सिस्टम ख़राब होता है। नीचे से ऊपर तक ख़राबियों का साथ दिया जाय तो ये ख़राबी एक दिन आशकार होती है। अगर ब्योरोक्रेसी ही अपने काम के तईं शफ़्फ़ाफ़ियत इख़तियार कर ले तो कहीं भी कोई ग़लती नहीं होती लेकिन सयासी आक़ाओं को ख़ुश करने या उन की हामी भरने के नतीजा में बदनामी का मलबा उन पर ही गिरेगा। हुकूमत या सयासी
आक़ाओं की ख़राबियों के लिए बड़ी हद तक बयो रियो करीटस भी ज़िम्मेदार होते हैं। इस में शक नहीं कि बाअज़ सूरतों में बयो रियो करीटस पर सयासी आक़ाओं का ग़ल्बा हो जाता है और मजबूरी या तरफदारी के बहाने बदउनवानीयों को नजरअंदाज़ करदिया जाता है।

जहां तक तहक़ीक़ात के अमल में यकतरफ़ा कार्रवाई का सवाल है। सी बी आई या दीगर तहक़ीक़ाती एजैंसीयों को भी सयासी आक़ाओं का ख़ास ख़्याल रखते हुए देखा जा सकता है। आज आई ए ऐस ओहदेदार यही शिकायत कररहे हैं कि सी बी आई ने क्रप्शन के  मुआमले में सिर्फ ब्योरोक्रेटस को निशाना बनाया है बल्कि इस के असल ज़िम्मेदार वुज़रा को छोड़ दिया है।  या फिर उन से तहक़ीक़ात का अमल भी मुख़्तलिफ़ तरीक़ा से कर रही है। सोचने वाली बात ये है कि जो इल्ज़ाम आई ए एस ओहदेदार आइद कर रहे हैं वही काम सी बी आई के ओहदेदार भी कर रहे हैं। आख़िर सी बी आई ओहदेदारों को सयासी आक़ाओं के मुआमले में नरमी और अपने साथी ओहदेदारों के केस के साथ सख़्ती बरतने की क्या वजह है।

यहां यही बात वाज़िह हुई है कि सयासी आक़ाओं के आगे हर ब्योरोक्रेटस ख़ुद को बेबस महसूस करता है। होना तो ये चाहीए कि जो बे क़ाईदगीयाँ बरती हैं रिश्वत के मुआमले तय पाते हैं, उन की तहक़ीक़ात मुंसिफ़ाना हो वुज़रा और आई ए एस ओहदेदारों केसाथ यकसाँ तौर पर पूछगिछ की जाय, किसी प्रोजेक्ट की मंज़ूरी और फाईलों की क्लियेरेंस के लिए ब्योरोक्रेट्स ही नहीं इस से वाबस्ता अफ़राद और चीफ़ मिनिस्टर भी ज़िम्मेदार होते हैं।

वाई एस आर हुकूमत में बाअज़ ख़राबियां हुई हैं एक एक करके बाहर आ रही हैं। रियासत की तारीख़ में ये पहली मर्तबा है कि आई ए ऐस ऑफीसर्स और वुज़रा की एक बड़ी तादाद को पुलिस केसों का सामना करना पड़ रहा है। अब किरण कुमार रेड्डी हुकूमत ऐसी सूरत-ए-हाल से दो-चार है कि वो अपने वुज़रा और ब्योरोक्रेटस के अमल बार देने से पहूंचने वाली तकलीफ़ का इज़हार रेत पर लिख कर करना चाहती है क्योंकि रेत पर लिखा हुआ तो आरिज़ी होता है मगर इस नादानी का नज़म-ओ-नसक़ पर मनफ़ी असर पड़ रहा है।