रिया कारी से बचते हुए इबादत करने की तलक़ीन

नमाज़ की अदायगी ही इज़हार मुहब्बत की अलामत है।रसूल अकरम (स्०अ०व्०) ने फ़रमाया नमाज़ मेरी आँखों की ठंडक है और बरोज़ मह्शर सबसे पहले सवाल नमाज़ का ही होगा।

इन ख़्यालात का इज़हार मौलाना शाह ख़लीफ़ा मुहम्मद इदरीस अहमद कादरी ने आस्ताना कादरी बगदल शरीफ़ में मुनाक़िदा जश्न मीलाद-उन्नबी (स्०अ०व्०) व फ़ैज़ान सय्यदना ग़ौस आज़म दस्तगीर व फ़ैज़ान ए औलिया के मौक़ा पर सदारती ख़िताब करते हुए किया।

इस जलसा से मौलाना सैयद ग़ुलाम समदानी अली कादरी ने मुख़ातिब करते हुए कहा नबी रहमत (स्०अ०व्०) की आमद बातिल अक़ीदों को मिटाने और अल्लाह ताला की वहदानीयत को राइज करने के लिए है, भटकी हुई इंसानियत को राह रास्त पर लाते हुए
उन्हें अहकाम ए इलाही का पाबंद बनाया जाए।

मौलाना हाफ़िज़-ओ-क़ारी मुहम्मद मुबश्शिर अहमद रिज़्वी ने मुख़ातिब करते हुए कहा कि इस्लाफ़ कराम की तालीमात की रोशनी में अपनी इबादतों को अदा किया जाए और तकब्बुर-ओ-रिया से बचते हुए ख़ालिस रज़ा ए इलाही के लिए रुजू अल्लाह होने पर ज़ोर दिया।जलसा का आग़ाज़ हाफ़िज़ शाह नवाज़ की क़रा॔त से हुआ।